नई दिल्ली: इन दोनों महापुरुषों के व्यक्तित्व, कार्य-प्रणाली, सोच एवं जीवन-दर्शन में कई समानताएं दृष्टिगत हैं। दोनों का सैद्धांतिक लक्ष्य एक ऐसे शोषणविहीन, समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना का था जिसमें कोई व्यक्ति किसी का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो। लोहिया, भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे, जब उन्हें फांसी हुई तो लोहिया ने इसका प्रतिकार लीग ऑफ नेशन्स की जेनेवा बैठक के दौरान सत्याग्रह कर किया था। भगत की शहादत के कारण ही लोहिया 23 मार्च को अपना जन्मदिन मनाने से अनुयायियों को मना करते थे।
पुस्तकों के प्रेमी
भगत सिंह व लोहिया दोनों मूलत: चिंतनशील और पुस्तकों के प्रेमी थे। भगत सिंह ने जहां चंदशेखर आजाद की अगुआई में हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन का गठन किया था, वहीं लोहिया 1934 में गठित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सूत्रधार बने। दोनों ने समाजवाद की व्याख्या स्वयं को प्रतिबद्ध समाजवादी घोषित करते हुए किया। दोनों अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए छोटी पुस्तिकाओं, पर्चे, परिपत्रों एवं अखबारों में लेखों के प्रकाशन का प्रयोग करते थे। भगत सिंह ने कुछ समय पत्रकारिता भी की। वे लाहौर से निकलने वाली पत्रिका दि पीपुल, कीरती, प्रताप, मतवाला, महारथी, चांद जैसी पत्र पत्रिकाओं से जुड़े रहे। इन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए लोहिया ने भी जनमत बनाने के लिए कांग्रेस सोशलिस्ट, कृषक, इंकलाब जन, ‘चैखंभाराज’ और ‘मैनकाइंड’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन व संपादन किया।
दोनों में समानता
भगत सिंह ने आत्मकथा, समाजवादी का आदर्श, भारत में क्रांतिकारी आंदोलन, मृत्यु के द्वार पर जैसी पुस्तकें लिखीं तो लोहिया ने इतिहास-चक्र, अर्थशास्त्र-मार्क्स के आगे, भारत में समाजवादी आंदोलन, ‘भारत विभाजन के अपराधी’ जैसी अनेक पुस्तकों को लिखकर भारतीय मन को मजबूत किया। दोनों के प्रिय लेखकों की सूची भी यदि बनाई जाए तो बर्टेड रसल, हालकेन, टालस्टॉय, विक्टर, ह्यूगो, जॉर्ज बनार्ड शॉ व बुखारिन जैसे नाम दोनों की सूची में मिलेंगे। भगत सिंह व लोहिया दोनों को गंगा से विशेष लगाव था। शिव वर्मा ने लिखा है कि पढ़ाई-लिखाई से तबीयत ऊबने पर भगत सिंह अक्सर छात्रवास के पीछे बहने वाली गंगा नदी के किनारे जाकर घंटों बैठा करते थे, लोहिया ने अपने जीवन का बहुत समय गंगा तट पर बिताया है। लोकबंधु राजनारायण के अनुसार जब लोहिया गंगा की गोद में जाते थे तो सब कुछ भूल जाते थे।
दोनों अपने को नास्तिक कहते थे
दोनों अपने को नास्तिक कहते थे, लेकिन अपनी बातों को जनमानस तक पहुंचाने के लिए धार्मिक तथा पौराणिक नायकों एवं इनसे जुड़े कथानकों का जमकर इस्तेमाल करते थे। दोनों की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। दोनों कोमल और कवि हृदय भी थे, नाटक एवं सिनेमा के शौकीन थे। नारी के प्रति दोनों के विचार एक जैसे थे। भगत सिंह ने अपने लेखों में नारी को सामाजिक तथा क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की तो लोहिया न ‘सीताराम राज्य’ व ‘पंचम वर्ण’ की अवधारणा देते हुए सत्याग्रहों में नारियों को नेतृत्व देने की खुली पैरवी की है। दोनों साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थी। 1942 से लेकर 1944 के मध्य भूमिगत जीवन के दौरान लोहिया ने आजाद दस्ता का गठन किया और स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए उसी गोरिल्ला नीति का अनुसरण किया, जिसके लिए भगत सिंह का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।1दोनों जीवन-र्पयत अविवाहित और फक्कड़ रहे।
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