नई दिल्ली। देश की भारतीय सेना को और मजबूत करने के लिए मोदी सरकार ने बड़े कदम उठाने शुरु कर दिए हैं। सरकार के इस कदम के बाद भारत को रक्षा सामानों के लिए विदेशों का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। ब्लूमबर्ग में छपी खबर के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र की करीब 200 से ज्यादा कंपनियों ने सेना के साथ मिलकर उनको ताकतवर करने की पहल शुरू कर दी है। इन कंपनियों में देशी-विदेशी छोटी-बड़ी सभी कंपनियां शामिल थीं।
अहमदनगर में आयोजित दो अलग-अलग समारोहों में शिरकत करने पहुंची इन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने टैंक के अंदर घुसकर जायजा लिया, भारतीय सेना की साजो-सामान की जरूरतों की पड़ताल की और जवानों से बात की। दरअसल, वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को रक्षा सामानों की मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाना चाहते हैं। इसके तहत आगामी 10 सालों में 150 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बनाई गयी है।
साल 2007 से 2012 के बीच ही भारतीय सेना की तरफ से महत्वपूर्ण हथियारों और सैन्य साजो-सामान का दो-तिहाई ठेका पूरा हो गया था। अब कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ठेके पूरे होने में देरी हो रही है जिसकी वजह से सेना के आधुनिकीकरण की योजना में विलम्ब हुआ है और रक्षा तैयारियां प्रभावित हुई हैं। रिपोर्ट में विदेशी हथियारों पर निर्भरता के नुकसान का जिक्र हुआ है। वैसे सरकार ने भारतीय सेना के ‘रहस्यों’ से वाकिफ होने कंपनियों के प्रतिनिधियों के बारे में अच्छे से पड़ताल कर ली थी। वे सभी भारतीय नागरिक हैं। इसकी जांच के बाद सेना में प्रवेश होने की अनुमति दी।
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