दिल्ली : देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तवर्ष 2014-15 से सितंबर, 2017 तक 2,41,911 करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित आस्तियों वसूल नहीं हो पाए कर्ज़ों को बट्टेखाते में डाला है. यह जानकारी वित्त राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में दी. इस पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फेसबुक पर पोस्ट किया है कि मैं यह देखकर हैरान हूं कि जब देश का किसान रो रहा है, अपने कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर रहा है और ऋण माफ़ी की मांग कर रहा है पर सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है.
वित्त राज्यमंत्री ने बताया कि इन बैंकों के वैश्विक परिचालनों पर भारतीय रिजर्व बैंक, यानी रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की रपट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 2,41,911 करोड़ रुपये के एनपीए को बट्टेखाते में डाला है. एनपीए को बट्टेखाते में डाला जाना एक सामान्य प्रक्रिया है, और बैंकों द्वारा अपने बही-खातों को साफ-सुथरा करने के लिए यह कार्रवाई की जाती है. कर लाभ और पूंजी के महत्तम इस्तेमाल के लिए भी अवरुद्ध ऋणों को बट्टेखाते में डाला जाता है.
ऐसे कर्ज़ों को बट्टेखाते में डालने के बाद भी कर्ज़दारों पर देनदारी बनी रहती है और उन्हें इसे अदा करना होता है. वसूली की प्रक्रिया कानूनी व्यवस्था के तहत सतत आधार पर चलती रहती है. उन्होंने कहा कि वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (सरफेसी) कानून, ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) और लोक अदालतों के ज़रिये बट्टेखाते में डाले गए कर्ज की वसूली की प्रक्रिया चलती रहती है.
वित्त राज्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि किसी कर्ज़ को बट्टेखाते में डालने का अर्थ कर्ज़दार को फायदा पहुंचाना नहीं है. कर्ज़दार से कर्ज़ की वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है. केंद्रीय बैंक का कहना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक कानून, 1934 की धारा 45 ई के तहत हर कर्ज़दार के आधार पर कर्ज संबंधी सूचना का खुलासा नहीं किया जा सकता. इस धारा के तहत किसी बैंक द्वारा ऋण के बारे में दी गई सूचना को गोपनीय माना जाएगा और उसे सार्वजनिक या प्रकाशित नहीं किया जाएगा.
Discover more from Satyam Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.