दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की मात्रा सात से नौ प्रतिशत तक है और इसका मुख्य कारण शहर में ठोस कचरे का जलते रहना है।
दिल्ली के भलस्वा डेयरी इलाके में स्थित कचरा निपटान केंद्र में उठते धुएं से उपजी चिंता नई नहीं है। करीब पांच महीने पहले भी जब वहां कचरे के ढेर में आग लगी थी, तो उससे पैदा होने वाले प्रदूषण को लेकर काफी तीखे विवाद उठे थे। मगर उसका कोई हल निकलने के बजाय आखिर वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में गुम होकर रह गया। ऐसी जगहों पर अक्सर कहीं किसी कोने से धुआं उठ रहा होता है और फैलता रहता है। पर लापरवाही का आलम यह है कि जब वह आग में तब्दील में हो जाता है और बड़े नुकसान की आशंका खड़ी होती है, तब संबंधित महकमे की नींद खुलती है।
दिल्ली की वायु की गुणवत्ता पर एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की मात्रा सात से नौ प्रतिशत तक है और इसका मुख्य कारण शहर में ठोस कचरे का जलते रहना है। जलता हुआ कचरा हवा में क्लोराइड की मात्रा बढ़ाता है, जिसकी जद में आने वाले लोगों के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, फेफड़े और सांस से संबंधित बीमारियां हो जाती हैं। शायद यही वजह है कि दिल्ली के कचरा निपटान केंद्रों को ‘कचरा बम’ के रूप में भी देखा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर उचित निपटान की व्यवस्था हो तो पचास फीसद कचरे को कंपोस्ट खाद में बदला और तीस फीसद का पुनर्चक्रण किया जा सकता है। इस तरह, कचरा निपटान केंद्रों तक सिर्फ बीस फीसद कचरा पहुंचेगा। लेकिन बदइंतजामी की हालत किसी से छिपी नहीं है।
देश की राजधानी दिल्ली को अगर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक माना जाता है, तो वाहनों और दूसरी वजहों से होने वाले प्रदूषण के साथ-साथ यहां के कई कचरा संग्रहण केंद्रों पर फैला कुप्रबंध और व्यापक लापरवाही भी बड़ी वजह है। विडंबना यह है कि दिल्ली की इस तस्वीर के लिए जिम्मेदार वजहों की पहचान के बावजूद सरकार और संबंधित महकमे कभी इस समस्या को अपनी प्राथमिकता सूची में शुमार नहीं करते। यही वजह है कि यहां की हवा में चुपचाप जहर फैलता रहता है और गाहे-बगाहे गंभीर रूप धारण कर लेता है। लापरवाही और गंभीरता से नहीं लेने से उपजी यह स्थिति अकेले दिल्ली की नहीं है। अलग-अलग वजहों से फैलता प्रदूषण समूचे देश के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है।
इस चिंता को दर्ज करते हुए संसद की एक समिति ने कहा है कि शौचालयों की कमी, पानी की पर्याप्त और नियमित आपूर्ति के अभाव, ठोस और द्रव्य कचरे के कारण उत्पन्न समस्याओं, जल निकायों में बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ती स्थिति से मानव बस्तियों और पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। सवाल है कि समिति ने चिंता के तौर पर जो कारण बताए हैं, उनमें से क्या ऐसा है, जिन्हें लेकर सालों से चिंता नहीं जताई जा रही है! हर क्षेत्र में उच्च तकनीकी और आधुनिकतम संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद आखिर क्या वजह है कि प्रदूषण पैदा करने वाले तत्त्वों से निपटने के लिए कोई ठोस योजना सामने नहीं आ पाती! संसदीय समिति ने उम्मीद जताई है कि अगले तीन सालों में स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्यों को हासिल कर लिया जाएगा। पर जब दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण की मुख्य वजहों से पार पाना कठिन बना हुआ है तो देश के दूसरे इलाकों की स्थिति के बारे में क्या कहा जा सकता है।
योगेश कश्यप
संपादक-सत्यम् लाइव
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