सत्यम् लाइव, 23 जुलाई 2020, दिल्ली।। इस लाॅकडाउन में लगभग सभी क्षेत्रों की कार्य शैली अव्यवस्थित कर दिया है। खास कर शिक्षा व्यवस्था को, इसमें पढाई के पूरे के पूूरे समीकरण को बदल दिया है। अब शिक्षा डिजिटल हाेेकर अभिभावको के लिए और मॅहगी हो गयी है। वह भी उस समय जब पूूरे देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी पड़ी हो क्योंकि मार्च के आखिरी सप्ताह से पूरे देश में, लाॅकडाउन के कारण सब कुछ बंद पडा है। लोगो का जीवनयापन बड़ी मुशिकलों से हो रहा है। मन्दी चरम सीमा पर पहुॅच ही रही थी, कि लाॅकडाउन के कारण मन्दी का महादौर आ गया और जब अनलाॅक हुआ तो बच्चों की पढाई को लेकर मुश्किलेंं आ खड़ी हई है निजी स्कूल वाले फीस चाहिए तो क्योंकि स्कूल के नवयुवक एवं नवयुवती िशिक्षक को कहॉ से भुगतान करें। अभिभावको की बात करें तो कम आय वर्ग वाले हैं या जा निजी व्यापार करने वाले का व्यापार, नौकरी सब पिछले दिनों लगातार बन्द रहा है उनके लिए अब स्कूल के खर्चें भारी पड़ रहेे हैंं ऐसे सभी अभिभावकों का रूख अब, सरकारी स्कूलों के तरफ बढ रहा है क्योंंकि कम आय वाले परिवारों के छात्र, हर माह 500 से 700 रूपये के बीच स्कूल फीस देते थे। दरअसल काेेराेेना के कारण ऑनलाइन क्लास की फीस में जैसे मोबाईल, लैपटाॅप के साथ नेट रिचार्ज का खर्चा और बढ गया है इसी कारण से एक बहुत बडे अभिभावक का वर्ग, निजी स्कूल से सरकारी स्कूल की तरफ मोड चुका है। यह खुलासा सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन की प्राइवेट स्कूल इन इंडिया रिपोर्ट में हुआ। नीति आयोग के सी.ई.ओ. अमिताभ कांत ने बुधवार को वर्चुअल रिपोर्ट जारी की। उन्होंंने कहा कि कोरोना के कारण करीब 45 फीसदी छात्र, अब निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों का रूख कर रहे हैं साथ ही सरकार शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए माॅडल रेग्युलेटरी एक्ट का ड्राफ्ट तैयार कर रही है। सरकार का लर्निंग आउटक्रम और गुणवत्ता युक्त शिक्षा पर जोर है इस प्रकार 4.5 लाख निजी स्कूलों में 12 करोड़ छात्र पढ़ते हैंं और गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लिए 74 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढाते है।
मंसूर आलम
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