सत्यम् लाइव, 2 फरवरी, 2023, दिल्ली।। कलयुग में ज्ञान समाप्त हो जाता है ये बात कभी भी ऐशोआराम से जीवन यापन करने वाला स्वीकार नहीं करता है। आज कभी श्रीराम के चरित्र पर तो कभी किसी लेखक की लेखनी पर जो प्रश्न चिन्ह आज कलयुगी राजनैतिज्ञ उठाते हैं उसका बीज अंग्रेजी सत्ता ने बोया था। अंग्रेजों की योजना ही थी कि यदि धर्म को अवैज्ञानिक सिद्ध दिया जाये तो भारत की भूमि से उनकी अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का मार्ग खुल जायेगा क्योंकि भारत की भूमि सदैव से विश्व की पालक रही है और सदैव रहेगी। स्वदेशी प्रचारक तथा भारतीय वैज्ञानिक राजीव दीक्षित का कथन था कि भारत भूमि के ऊपर जितना है उतना ही खजाना अन्दर भी है।
भारतीय वैज्ञानिक राजीव दीक्षित का कथन था कि भारत भूमि के ऊपर जितना है उतना ही खजाना अन्दर भी है। वैसे जब से धरा पर जीवन आया है तब से दो तरह की सोच मानव की रही है जिसे विज्ञान का नाम दिया गया एक अध्यात्म विज्ञान और दूसरा उपभोगवादी विज्ञान। अध्यात्म विज्ञान जो वैदिक गणित के आधार पर सदैव ही सत्य सिद्ध होती रही है। वैदिक गणित के आधार पर गौस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि कलयुग में धर्म ग्रन्थ विलुप्त हो जाते हैं और संसारिक कर्मों तक का ज्ञान समाप्त हो जाता है।
सत्ता पाने के स्वार्थ ने एक बार फिर अंग्रेजों की तरह सत्ता पाने के लिये हिन्दु बॉटो अभियान के तहत् पर ‘‘ढोल गवॉर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।’’ चौपाई को समाज विरोधी सिद्ध करने का प्रयास किया। आश्चर्य इस बात का है कि शिक्षा मंत्री ने यह प्रसंग उठाया। उससे भी ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब ज्ञात हुआ कि कहने वालों में से एक को भी न तो प्रसंग का ज्ञान है और न ही अर्थ का। इतना ही नहीं हिन्दी के किस भाषा में श्रीरामचरितमानस का वर्णन किया गया है ये भी ज्ञान नहीं है। उत्तरकाण्ड में तुलसीदास जी ने तो कलयुग में गुरू और शिष्य को अन्ध का लेखा बताया है यहॉ तो शिक्षा मंत्री भी उसी में शमिल है।
तुलसीदास जी समुद्र का दर्द लिखते हुए कहते हैं कि ‘‘मकर उरग झष गन अकुलाने।’’।। जल में पलने वाले मगर, मछली आदि अन्य जीवों की अकुलाहट को समझकर समुद्र देव कनक से भरी थाली को लेकर ब्रम्हाण के भेष में श्रीराम के सामने खड़े हो गये और बोले ‘‘छमहु नाथ सब अवगुण मेरे।’’ तुलसीदास जी लिखते हैं कि समुद्र देव बोले ‘‘पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु को भी माया ने आपके आदेश से ही प्रेरित कर रखा है जिससे सृष्टि चलायमान हो रही है।
आपका यह आदेश ग्रन्थों में वर्णित है सृष्टि पालन के इन्हीं मर्यादाओं अर्थात् नियमों के अनुसार जल में पलने वाले जीवों की रक्षा करना हमारा परम् कर्त्तव्य है। परन्तु फिर भी आपके हाथों से यदि जल सूखा तो अवश्य ही हम सबका वैसे ही मर्यादाओं का पालन करते हुए जीवन पूर्ण होगा‘।‘ जैसे ‘‘ढोल, गवॉर, सूद्र, पसु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।’’
अर्थात् ढोल, गवॉर, सूद्र, पसु और नारी ये सब आपकी बताई मर्यादाओं को पूर्ण करते हुए पूरा जीवन दूसरे की भलाई में लगा देते हैं। ये सब सृष्टि पालक के रूप में अपने परिवार तथा समाज का पालन करते हैं। आपकी बताई दिनचर्या और ऋतुचर्या के माध्यम से ये सभी सृष्टि के पालक बनकर अपने कर्मों को पूर्ण करते हुए मोझ को प्राप्त होते हैं।
इसी तरह से यदि जीवन सृष्टि की रक्षा करते हुए और उत्तम कर्मों को प्राप्त करते हुए यदि आपके बाणों से …. मेरे सूखने के पश्चात् आपकी सेना को मार्ग मिल जाये तब तो मेरे साथ, मेरे अन्दर पलने वाले समस्त जीव भी इन्हीं कर्म योगियों की तरह स्थिरप्रज्ञ कहलायेगें और मोझ को प्राप्त करेगें।
तब प्रभु ने पार उतरने का मार्ग समुद्र से पूछा तो समुद्र ने नल-नील का नाम सुझाया और कहा कि बचपन में इन दोनों ने अपने गुरू को प्रसन्न करके बड़े से बड़े पत्थर को जल में कैसे स्थिर किया जाये? उसका ज्ञान पाया था। इस श्लोक को यदि आज के कलयुग ज्ञानियों को समझना हो तो ऐसे समझना चाहिए कि ढोल, गवॉर, सूद्र, पसु, नारी। सृष्टि के पालक हैं ये सारे
तुलसीदास जी ने लिखा है कि कलयुग में धर्म ग्रन्थ विलुप्त हो जाते हैं और ज्ञान नहीं होता है। भारतीय शास्त्रों की सबसे बड़ी विशेषता है कि हर मानव को कर्म प्रधान बनाना चाहते हैं। चरक ऋषि के अनुसार ‘‘समस्त जीवों में श्रेष्ठ मानव के श्रेष्ठ कर्म ही सृष्टि के पालक हैं और अकर्म ही सृष्टि में विनाशा लीला करते हैं जैसे आज विज्ञान का जिसे विकास मानकर सब अपनाते जा रहे हो।
सुनील शुक्ल
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