महामारी से मन्‍दी के दरवाजे पर

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अर्थव्‍यवस्‍था, सभ्‍यता का आधार होती है। संस्‍कृति सदैव पर्यावरण पर निर्भर करती है।

सत्‍यम् लाइव, 30 मार्च 2020, दिल्‍ली। विश्‍व स्‍वास्‍थ संगठन ने कोरोना को महामारी घोषित कर रखा है और भारत में पिछले तीन दिनों लॉकडाउन चल रहा है। दिल्‍ली में हर व्‍यक्ति डरा सहमा सा अभी भी निवास कर रहा है। पार्क हो या बाजार हो या फिर सडक पर घूमता हुआ आदमी एक दूसरे से ऐसे कटता है जैसे लगता है कि दूसरे के शरीर से निकल कर बीमारी अभी उसको पकड लेगी। मैं जब सुबह सुबह अपने एक परिचित व्‍यक्ति के पास पहुॅचा तो वो मुझसे दूर हट गये ये कहते हुए कि फासला बना कर रखो। जब मैंने उनसे कुछ बात करनी चाही तो जबाव भी वैसे ही थे जैसा कि टीवी पूरी ताकत लगातार चिल्‍ला रहा है परन्‍तु जैसे ही मेरे साथी वहॉ पहुॅचे और उन्‍हें लगा कि मेरी फोटो आयेगी तब सारे व्‍यक्ति को संकट समाप्‍त हो गया। ऐसा लगा जैसे कि अब ये नॉवल कोरोना वायरस अब इन्‍हें नहीं पकड सकता है। ये कैसी बिडम्‍बना है? कि राजनीति की भेंट चढता पलायन करता गरीब आदमी को सब गलत ठहराने लगे। किसी केे पास ये समझ में नहीं आ रहा था कि कुछ समय पहले हम सब अलग अलग बैठेे थे अब एक साथ बैठे हैं और उस दिहाडी कामगारों की कमियॉ गिनवा रहे हैं।

ये कहना बिल्‍कुल उचित होगा कि इस महामन्‍दी की तरफ बढता कदम की जिम्‍मेदार आज की राजनीति ही है वो चाहे किसी पार्टी के द्वारा हो या आम जनता केे द्वारा। उसी सभा में खडे आर्य समाजी और गायत्री परिवार से जब पूछा कि उनके आयुर्वेद की पुस्‍तकों में जो लिखा है उसमें क्‍या इस वायरस को मारने के बारे में कुछ लिखा है तो उनका जबाव वही था जो बडे टीवी चैनल दिखा रहे है कि ये नया वायरस है। दशा यहॉ तक थी कि वायरस का हिन्‍दी नाम भी नहीं बता सकने वाले लोग समाज को अइना दिखा रहे हैं। वैसे तो कोरोना कोई नया नाम नहीं है पर मान भी लें तो वायरस का तो हिन्‍दी नाम होगा। वो भी नहीं पता था वहाॅॅ उन खडे लोगों को इससे ये कहने में बिल्‍कुल संकोच नहीं करना चाहिए कि सभी राजनैतिक दल की तरह धर्म की स्‍थापना के लिये बने समुदाय भी अपनी संख्‍या बढा रहे हैं। जबकि आपको बता दें कि आर्य समाज और गायत्री परिवार की किताबों में संक्रमण काल तक वर्णन किया गया है। महामारी किसे घोषित किया जाये उसका भी वर्णन है?

नॉवल कोरोना महामारी के चलते भारत भर में लॉकडाउन चल रहा है लॉकडाउन पर पेट की आग भारी पडी और धता करते हुए दिहाडी मजदूर अपने बच्‍चों के साथ पैदल ही निकल पडा। रेलवे बन्‍द होने पर 300 से 2100 किलोमीटर तक पैदल चलने की ताकत अपने अन्‍दर जुटाए, पुलिस से दण्‍डे खाता हुआ बेचरा अपनी किस्‍मत को दोष देता रोटी को मुहताज अपने घर की ओर चल पडा। जब मीडिया ने उसकी सुध ली तब हर राजनीति पार्टी अपनी रोटी सेंकने से बाज नहीं आ आयी एक ने हजारों बसों को लगाकर किराये से भेजना प्रारम्‍भ किया तो दूसरे से अपने प्रदेश की जनता से अपील कर डाली कि आप सबको खाना देगें जबकि सच्‍चाई ये है किसी भी सरकार के पास इस दिहाडी मजदूरों का अधिकारी डाटा उपलब्‍ध नहीं है। दूसरा सच ये है सरकारें एक दूसरे के ऊपर दोष मढ रही है और अपना पीछा छोड लेना चाहती है। दिहाडी मजबूर से बात करो वो कहता कि अपने घर पहुॅच जाये तो नमक रोटी खाकर जिन्‍दा रह लेगें।

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दिल्‍ली में कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीति का शिकार हो रही है जनता तो दूसरी तरफ उत्‍तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्‍ता इलाहाबाद में पकडे गये है आरोप है कोरोना पर अफवाह फैला रहे थे। विश्‍वस्‍त सूत्रों केे अनुसार ये समाजवादी पार्टी नेता धारा १४४ को तोडकर लोगों को साथ लेकर कोरोना बीमारी के बारे में कुछ सचेत कर रहे थे। ये समाजवादी पार्टी का कथन है। दिल्‍ली सरकार का कहना है कि योगी सरकार दिल्‍ली से आये हुए लोगों को पिटवा रही है तो दूसरी तरफ उत्‍तर प्रदेश सरकार का कहना है दिल्‍ली सरकार ने बिजली पानी काट कर रात में माइक कहलवाया है कि दिल्‍ली छोडकर चले जाओ। सोशल मीडिया पर पाटियों के चाहने वाले घरों में बैठे अपने अपने नेता का पक्ष लेकर प्रशांसा कर रहे हैं परन्‍तु वो दिहाडी लेबर की कोई सुध नहीं ले रहा है। आपको ये जानकार आश्‍चर्य होगा कि उस दिहाडी मजदूरों में हिन्‍दु और मुस्लिम दोनों ही है। क्‍योंकि गरीबी कभी जाति पाति देखकर नहीं आती है।

जो व्यक्ति राजनीति से दूर थे उन्‍होंने राह में बिना जाति पाति के एक दूसरे की मदद करने उतर आये। उत्‍तर प्रदेश के बुलन्‍दशहर में एक ऐसा ही वाक्‍या सामने आया जहॉ पर हिन्‍दु परिवार के एक व्‍यक्ति की मौत हो गयी। लॉकडाउन के कारण कोई आ नहीं सका तब मुस्लिम घर के लडकों ने राम नाम सत्‍य है के नारे लगाते हुए न सिर्फ शमशान तक पहुॅचाया बल्कि अग्नि संस्‍कार भी करवाया। सच ही कहता है, हर राजनीति से दूर बैठा व्‍यक्ति कि जातिवाद की राजनीति तो राजनीतिज्ञ फैलाते हैं नीचे स्‍तर पर सदैव सब अपने पेट को पालने में लगे रहते हैं।

बहराल कुछ भी हो हम सबको राजनीति से दूर रहकर, इस आपदा से जैसे भी हो निपटना ही पडेगा छोटे बच्‍चों को अपने कंधे पर बिठाये पिता 600 किलोमीटर जा रहा है बच्‍चा इतना छोटा है कि उसे याद भी नहीं रहेगा कि मेरे पिता ने कैसा कष्‍ट उठाया है। छोटे बच्‍चे जिनका जीवन अभी खेलने का है वो इतनी दूर कैसे जायेगें जिन्‍हें स्‍वयं नहीं पता है कि मीटर क्‍या होता है। वो 1000 किलोमीटर दूरी का सफर तय करने निकल पडे हैं।

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