बडी चेचक में शरीर के अन्दर खून को पूरी तरह से साफ करने वाला भोजन जैसे गाजर, चुकन्दर, पालक, चौलाई रस के अधिक लेना उचित माना जाता है साथ ही शरीर के दाग को साफ करने के लिये नीम के पत्ते को पीसकर साबुन के रूप में लगाना चाहिए। साथ तुलसी का उपयोग भी बढा देना चाहिए। ये वायरस पूरे घर में गौनायल से सफाई करने से समाप्त हो जाता है।
सत्यम् लाइव, 11 अप्रैल 2020, दिल्ली।। पन्द्रहवीं सदी के अन्त तक आते आते चेचक महामारी के रूप आयी। बीमारी के इतिहास को देखने के बाद सबसे बडा आश्चर्य इस बात का होता है कि जब उपनिवेश की बात आती है तो उससे पहले कोई बडी महामारी वहाॅ पर आती ही है ऐसा ही अमेरिका का इतिहास भी पन्द्रहवी सदी के अन्त का है। ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी काॅलेज आॅफ लन्दन के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन करके लिखा है कि अमेरिका के 6 करोड़ की आबादी में केवल 60 लाख की जाने ही बची थीं आगे कहते हैं कि अमेरिका में यूरोपीय उपनिवेश स्थापित होने के बाद अधिकतर मौतों के लिये वो बीमारियाॅ जिम्मेदार थी जो उपनिवेशवादी अपने साथ अमेरिका लेकर पहुॅचे थे। खसरा, मलेरिया, काली खाॅसी, हैजा तथा इनमें सबसे बडी बीमारी चेचक थी। स्माल पोक्स, चिकन पोक्स अर्थात् चेचक की महामारी ने ब्रिटेन यूनिवर्सिट की गणना के अनुसार इतनी मौत होती है तो विचारणीय हैं कि भूतपूर्व भारतीय वैज्ञानिक एवं स्वदेशी रक्षक प्रवक्ता राजीव दीक्षित द्वारा कही गयी बातो को कैस इन्कार किया जा सकता है? कि उनके पास जो भी दवा है वो तो जहर है आपके शरीर में कितनी ताकत है उसको पचाने की आप देखो।
भारत में चेचकः- भारत देश चेचक को मैनें बचपन से सुना और समझा। एक तरफ नवरात्रि में जगतारिणी जगदम्बिके की पूजा-पाठ का कर्म काण्ड तो दूसरी तरफ शीतला माता, बड़ी माता या हसनी खेलनी माता अपनी बुजुर्ग माताओं के मुख से सुना करता था। ये तो बाद में ज्ञात हुआ कि ये एक विषाणु जनित रोग है ये श्वाॅसशोध संक्रामक रोग है जिसमें दो तरह के वायरस होते हैं वायरोला मेजर और वायरोला माइनर। दोनों वायरस के नाम हिन्दी में लिये गये कीटाणु का अंग्रेजी अनुवाद लग रहा है। आयुर्वेद की जानकार महर्षि राजीव दीक्षित जी बताते हैं कि जब भारत में अंग्रेजों ने आकर देखा तो पाया कि जब यूरोप, ब्रिटेन में इतनी बडी संख्या में लोग मर रहे थे तब भारत के लोग हाथ में टीका लगाकर उस बीमारी को आने ही नहीं देते थे। परन्तु भारतीय इतिहास पर आज भी अपना इतिहास थोपकर बताया जा रहा है कि सन् 1716 मंे जेनर ने इसके टीके का अविष्कार किया और सन् 1718 यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले माॅटाग्यू ने पहली बार इसके लिये सुई प्रचलित हुई।
श्री राजीव दीक्षित के माध्यम से इतना आयुर्वेद का ज्ञान मैनें पाया कि 2019 के नवम्बर में जिले औरेया के सौधेंमऊ गाॅव में, देशी गौ माता के घी से सत्चण्डी महायज्ञ कराया तब उसी समय वहाॅ के मूल निवासी में एक कन्या को चेचक उत्पन्न हो गयी। मुझे इतना ज्ञात हो चुका था कि ये छोटी माता को हसनी खेलनी को अनार चढाकर प्रसाद लिखाने से दूर हो जाती है, साफ और हल्का भोजन के साथ मुझे अपनी नानी की याद आयी वो कहती थी कि माता है अतः शुद्धता की ध्यान रखना पडता है तो शतचण्डी चल रही थी तो शुद्धता तो थी ही बस उस लड़की को शुद्ध तुलसी और नीम के साबुन से नहाना तथा शाम को देशी गाय के दूध से पीने पिलाना। देशी गाय के घी से हवन तो हो ही रहा था बस मैनें उसके हाथ से देशी गाय के गोबर से बना धूप जलवाना और प्रारम्भ कर दिया। आप सच में विश्वास नहीं कर पायेगें कि पांचवे दिन उस लडके के शरीर से वो माता विदा हो गयी। आयुर्वेद का पहला स्थान रसोई ही है और उसकी शुद्धता ही शरीर सहित विचारों को शुद्ध करती है। आयुर्वेद कहता है कि चेचक सदैव खून की गन्दगी से होता है बस आपको करना ये है कि अपने शरीर के गन्दे खून को बाहर करना है अब आप ऋतु को थोडा सा जानिये। अनार, चुकन्दर, पालक, चैलाई बहुत तेजी से खून का साफ करते हैं इसी कारण से माता का भोग लगाकर इसे ग्रहण किया जाता है।
चेचक का घरेलू सफल उपचार
चेचक में दो प्रकार की होती है पहली जिसे छोटी माता कहते हैंं वो चिन्ताजनक नहीं होती है और येे ही ज्यादातर भारत के मौसम के हिसाब से निकलती हैं। बडी चिन्ताजनक होती है परन्तु ऐसा कोई विशेष उपचार आयुुर्वेद इसमें नहीं बताता है क्योंकि ये सिर्फ पाक-साफ रहने पर ही सूर्य देव की गर्मी से इसके कीटाणु अपने आप मर जाते हैं इसीलिये इनको हंसनी खेलनी भी बुर्जुगबार कहते हैं। बडी चेचक में शरीर के अन्दर खून को पूरी तरह से साफ करने वाला भोजन जैसे गाजर, चुकन्दर, पालक, चौलाई रस के अधिक लेना उचित माना जाता है साथ ही शरीर के दाग को साफ करने के लिये नीम के पत्ते को पीसकर साबुन के रूप में लगाना चाहिए। साथ तुलसी का उपयोग भी बढा देना चाहिए। ये वायरस पूरे घर में गौनायल से सफाई करने से समाप्त हो जाता है।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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