‘‘उत्तम खेती, मध्यम वान, करत चाकरी, कुकर निदान’’ अर्थात् भारत में खेती का कर्म उत्तम माना गया है, व्यापार करना मध्यम दर्जे का काम है और नौकरी करना तो कुत्ते के बराबर काम करने को माना गया है।
सत्यम् लाइव, 29 मई 2020, दिल्ली।। सम्पूर्ण विश्व में, भारत देश की भूमि ही सबसे अधिक उपजाऊ है। भारत देश का मौसम भी इतना ही और भारत की भूमि को सहयोग करने वाला है। सूर्य की गति की निश्चित होने के कारण ही, भारत को ‘‘भारत माता’’ का दर्जा दिया गया है। साथ ही भारत माता के पुत्र, किसान को अपनी माता सहित, प्रकृति का ज्ञान भी बहुत अच्छा सदैव से रहा है। भारत में एक कहावत प्रसिद्ध है कि ‘‘उत्तम खेती, मध्यम वान, करत चाकरी, कुकर निदान’’ अर्थात् भारत में खेती का कर्म उत्तम माना गया है, व्यापार करना मध्यम दर्जे का काम है और नौकरी करना तो कुत्ते के बराबर काम करने को माना गया है परन्तु अंग्रेजी शासन काल के साथ ही भारत में, नौकरी करना सबसे अच्छा काम माना जाने लगा है और खेती करना सबसे निचले दर्जेे का काम कहा जाने लगा है। आज उद्योग जगत में, पश्चिमी सभ्यता से आये हुई हर वस्तु को, विकास के पैमाने बताकर किसान को दिखाया जा रहा है परन्तु अपने यहाॅ फैली पड़ी सम्पदा नहीं दिखाई जाती है। ये जो विकास का भ्रम, हमारी नजरों पर चढाया गया है उसको समाप्त करने के लिये, भारत के महान स्वदेशी प्रवक्ता को, आज फिर याद कर लेते हैं जिनका नाम भारतीय वैज्ञानिक स्व. राजीव दीक्षित था। उनके सारे व्याख्यान, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के रक्षक के रूप में हैं। आज जब भारत में भारी मात्रा में टिड्डे की बात चल रही है, तब भी उनकी ही लिखी पुस्तक ‘‘गौवंश आधारित स्वदेशी खेती” पर नजर गयी तो ज्ञात हुआ कि खेती पर उन्होंने जो शोध कार्य किये हैं- वो भी अद्भूत है। भारतीय वैज्ञानिक स्व. राजीव दीक्षित का कथन था कि ‘‘किसान की मेहनत और पशु की मेहनत जब साथ मिलती है तब धरती, बीज, खाद, पानी आदि सब मिलकर, खेतों में लहलहाते हुई फसल, सम्मोहित कर लेती है। वो लहलहाते फसल, सिर्फ किसान को ही नहीं, बल्कि पूरे भारत को आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बना देती है। ऐसी सुन्दर व्यवस्था को छोडकर, हम सब क्यों इन पश्चिमी सभ्यता के उपदेशक बने हुए हैं। किसी भी उद्योग में जितना पैसा लगाओ, उसका आधा पैसा भी आ जाये तो धन्य भाग्य मानते हैं परन्तु भारत की भूमि पर, भारत माता का पुत्र, एक बीज बोता है और उसके 100 गुना उत्पादन करता है।’’ तो अब आप स्वयं सोचिये कि सच में नौकरी करना कुत्ते के काम करने के बराबर ही है बस यहाॅ एक शर्त आवश्यक है कि स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर खेती जानवरों की मदद से ही की जा सकती है। न की पराधीनता की शर्तो पर की जाये, अब आपको अपने पूर्वजों से ये पुनः सीखकर। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिये स्वयं ही, भारतीय शास्त्रों के अनुसार ही चलकर खेती करनी होगी। देशी गाय तो सच में माता है परन्तु अन्य जानवर भी हमारे लिये बहुत उपयोगी रहे हैं। इसी कारण से भारत भूमि पर, सदैव ही अहिन्सा की बात होती रहीे है। खेती तो युगों-युगों से भारत की भूमि पर होती आयी है और वो भी बिना बिजली के। जानवरों के सहयोग से, किसान पूरी उपज करता ही रहा है। किसान स्वयं बीज को लगाता रहा है और अगले वर्ष के लिये बीज को सुरक्षित भी रखता रहा है। सहयोगी जानवर से, खेत की सिंचाई, खाद एवं कीटनाशक बनाना और फिर तैयार फसल की कटाई के लिये, एक दूसरे का सहयोग करना, इसी वासुदेव कुटुम्बकम् की भावना से, भारत काम करता रहा है। फिर आज क्यों विकास के नये सपने, किसान को दिखाये जा रहे हैं? क्या पश्चिमी बंगाल और ओडिश में, प्रकृति की मार ने, विकास के नये पैमाने को ध्वस्त नहीं कर दिया है? क्या प्राकृतिक आपदा का कारण, प्रकृति के विरोध में किया गया विकास नहीं है? इतने सारे प्रश्नों के अम्बार लेकर भविष्य, आपके सामने एक दिन अवश्य खडा होगा अतः उचित मानक को अपनाना ही बुद्धिमानी होगी।

यह वास्तव में, एक विडंबना ही है कि जिस काम को किसान स्वयं कर सकता है उसे पूँजीवादी युग की मार ने, अपने आधीन बना रखा है। वास्तव में, उत्पादन और पूँजी का निर्माण करने वाले, खाद, बीज और कीटनाशकों की बाजार खड़ी करने वालों के कारण ही, किसान के हाथ में कुछ नहीं आता और अन्त में, किसान जीवन का अन्तिम फैसला करता है, आत्महत्या! भारतीय वैज्ञानिक स्व. राजीव दीक्षित जी का कथन साफ था कि ‘‘गौवंश आधारित खेती’’ सम्पूर्ण स्वदेशी और स्वास्थ रक्षक है। इस खेती से किसान तो पूँजीपति होगा ही साथ में, भारत देश का जीडीपी अपने आप बढ़ जायेगा चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। अन्य देशों के पास इतनी अच्छी खेती होती तो अवश्य ही वो पहले खेती करते, बाद में वो अन्य उद्योग लगाते तो फिर हम भारतवासी ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं ? इसके पीछे जो भी गतिविधियाॅ हों परन्तु हमें पहले भारतीय ज्ञान से, संचित होना होगा। भारतीय मौसम को, सूर्य की गति के अनुसार समझना होगा। खाद, बीज, कीटनाशक में, भारतीय किसान को किसी की मदद की आवश्यकता नहीं है और आत्मनिर्भर तभी बना जा सकता है जब किसान स्वयं अपनी शक्ति को, अपने पर्यावरण के हिसाब से समझ ले। खेती के विषय पर भारतीय वैज्ञानिक राजीव दीक्षित ने जो गहरा शोध करके कहा वो ये कि ‘‘श्रीराम के जमाने से भारत की भूमि खेती हो रही है। उसमें उन्होंने बताया कि खेती और किसानी में, भारत के घर-घर में, जो पालतू जानवर पाले जाते थे वो सब दूध के कारण तथा खेती के कारण ही पाले जाते थे। ये जानवर खेती करने में, बहुत सहायक होते हैं। जैविक खेती कैसे करें ? खाद्य कैसे बनायें ? तथा इसी जानवर के मल और मूत्र सहित किस पेड़ के पत्ते या उस पेड़ की जड़ से, मिट्टी को मिलाकर कीटनाशक कैसे बनायें ? ये भी किसानों को समझाया। इसी श्रृंखला की शुरूवात करते हुए, भारतीय किसान गौरक्षा दल के कुछ नवयुवकों ने, अपने कंधे पर जो कार्य-भार उठाया है। उसका सूक्ष्म वर्णन करते हुए, अभी टिड्डे से बचाव केे लिये किया जा रहा है। इस संगठन में देवेन्द्र मित्तल, मंसूर आलम, आकाश गौतम, शशांक पाल, नितिश पाण्डेय, सी.वी. सिंह इत्यादि ने, शमिल होकर एक टीम तैयार की है जो भारतीय वैज्ञानिक राजीव दीक्षित जी द्वारा लिखित पुस्तकों तथा दिये गये व्याख्यान सहित अन्य खोज को, किसानों तक पहुॅचाने का कार्य कर रहे हैं जिसकी शुरूवात करते हुए तथा आज की समस्या को देखते हुए कीटनाशक बताने का प्रयास किया है। नीेचे दिये गये सूत्रों में से जो आपको सुविधा जनक लगते हों, उन पर आप कीटनाशक स्वयं बना सकते हैं। साथ ही, अब समय-समय पर बिना पैसे खर्च किये जैविक खेती कैसे करें ? इसके लिये आप हमारे साथ जुडें रहें। किसानों की समस्या के समाधान लिये स्वयं ही खाद्य बनाये, कीटनाशक बनायें और अगले वर्ष के लिये अपने पास बीज बचाकर रखें।

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उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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