अभिनन्‍दन नववर्ष तुम्‍हारा

ज्ञानेच्‍छक्रियाणां तिसृृणाव्‍यष्‍टीनां। महासरस्‍वती, महाकाली, महालक्ष्‍मी रित।

सत्‍यम् लाइव, २९ मार्च २०२० दिल्‍ली। चैत्र के नवरात्र से प्रारम्‍भ हुआ २०७७ सम्‍वत् के नववर्ष के विशेष अवसर पर अष्‍ठदशाभुजाधारी अर्थात् महालक्ष्‍मी की पूजा की जाती है। ज्ञानेच्‍छक्रियाणां तिसृृणाव्‍यष्‍टीनां। महासरस्‍वती, महाकाली, महालक्ष्‍मीरित। इसी तरह से अपने जीवन को चलाने न लिये पहले ज्ञान की आवश्‍यकता होती है इसी ज्ञान से अपने जीवन को क्रियाशाील मनाया जाता है इस क्रिया में सबसे पहले प्रकृति की रक्षा कर महालक्ष्‍मी की प्राप्ति का विधान बताया गया है।

नववर्ष के अभिनन्‍दन के साथ ही नवरात्रि के प्रारम्‍भ में दुर्गासप्‍तसती का पाठ प्रारम्‍भ किया जाता हैै सबसे पहले तो ये समझना अनिवार्य है कि जो मार्कण्‍डेय पुराण से ली गयी है मार्कण्‍डेय ऋषि के बारे में आप सभी जानते हैं कि वो अल्‍पआयु थे और भगवान शंकर के महामृृत्‍युजय जाप से उन्‍हें दीर्घआयु हुए और ज्ञान की प्राप्ति हुई। अल्‍प आयु व्‍यक्ति जो दीर्घ आयु होगा वो निश्चित तौर पर जीवन के बारे में ही सोचेगा। दुर्गासप्‍तसती के कवच में प्रथम: शौलपुत्री द्वितीय ब्रम्‍हाचारिणी ……………………………………………. नवम् सिद्धदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता। लिखा यहाॅॅ पर नवदुर्गा के नवरूप का वर्णन मिलता है अध्‍यात्‍म की दुनिया का बदशाह भारत की संस्‍कृति में जब इन शब्‍दों को देखा गया तो शैलपुत्री के पहाडों की पुत्री कहा गया हरड को पहाडो की पुत्री कहलाती है पर्यायवाची संस्‍कृत में अभया, पथ्‍या, कायस्‍था, पूतना, अमृता, विजया, चेतकी मराठी में हिरडा, हर्त्‍तकी, पंजाबी में हडहरड, तैलगु में करकाया, द्राविडी कडुक्‍काय अरबी में अहलीलज, फारसी में हलैलाह। शैलपुत्री का अर्थ है पहाडो की पुत्री। हरड ५००० फीट ऊपर पहाडों पर होती है इसका वृक्ष ८०-१०० फीट तक ऊॅॅॅॅचा होता है। शैलपुत्री सम्‍पर्ण कष्‍टों को हरने वाली है और हरड तीनों दोषों को हरने वाली है।

प्रथम हरड, है द्वितीय ब्रम्‍हाचारिणी – ब्राम्‍ही, तृतीय चन्‍द्रघण्‍टा- चन्‍दुसूर, चतुर्थ कूष्‍माडा – कूूमडा, पंचम स्‍कन्‍द मातेती – अलसी, षष्‍ठं कात्‍यायनीति – मोइया तथा सप्‍तम् कालरात्री – नागदोन तथा आठवे नम्‍बर पर महागौरी अर्थात् तुलसी तथा सिद्धदात्री का रूप रखकर स्‍वयं शतावरी हमारे साथ रहती हैंं।

हरड के गुण धर्म: प्रथम तिथि प्र‍तिपदा है इसका इस तिथि का देवता अग्नि है सुश्रुत जी के अनुसार चबाकर खाई हुए हरड भूख बढाती है, पीसकर खाई हुई दस्‍‍‍‍‍‍तावर होती है जबकि उबालकर खाई गयी हरड दस्‍त को बन्‍द कर देती है। भूनकर हरड खाई जाये तो तीनों दोषों को हरने वाली होती है। यदि भोजन के साथ खाई जाये तो बुद्धि बर्धक होती है भोजन केे बाद खायी गयी हरड गलत गये भोजन को भी पचाने वाली होती है।

निषेध: भोजन न करने पर हरड का उपयोग वर्जित है, अत्‍यधिक पित्‍त वाले को तथा अत्‍यधिक थकावट होने पर। गर्भवती स्‍त्री को हरड का सेवन कभी नहीं करना चाहिए।

द्वितीय तिथि का देवता ब्रम्‍हा बताये गये है ब्रम्‍हचारिणी अर्थात् ब्राम्‍ही का रूप रखकर स्मृृ‍ति शक्ति को बढाती हैंं। ब्राम्‍ही के लिये कहते हैंं कि इसका उपयोग वही करता है ब्रम्‍हा की उपसना करता है अर्थात् ज्ञान पाने का इच्छित व्‍यक्ति। ब्राम्‍ही का सेवन करने से स्‍मृति शक्ति बढ जाती है यह व्‍यक्ति के भाव प्रकाश जी के अनुसार ये हद्धय के लिये बलकारक है। मनु स्‍मृति के अनुसार धर्म के चार चरण होते हैं कलयुग मेें एक ही चरण शेष रह जाता है परन्‍तु धर्म के दस लक्षणों को अपने हद्धय में धारण करके जो व्‍यक्ति अपने जीवन का जितना ज्‍यादा समय बीता सके उसे ब्रम्‍हा जी की दया अवश्‍य प्राप्‍त होती है।

ब्राम्‍ही के गुण धर्म: ब्रम्‍ही मेध्‍या शक्ति बढाती है, श्‍वॉस-कास, हद्धय की दुर्बलता, शोधकारक, विविध चर्मरोग, आम पाचन करती है। मस्तिष्‍क की दुर्बलता को दूर करती है निन्‍द्रा पूर्ण कराती है तनाव कम कराकर रक्‍तचाप को बढाती है। मस्तिष्‍क शूल, मिर्गी के दौरे, उन्‍माद, पागलपन को दूर करती है। देशी गाय के दूध से बना पंचगव्‍‍‍य भी मस्तिष्‍क के लिये अति उपयोगी है।

निषेध: अत्‍यधिक होने पर शीतजन्‍य वात वृद्धि के कारण मद, शिर: शूल, भ्रम, अवसाद तथा त्‍वचा में लालिमा, खुजली पैदा कर देती है। ि‍निवारक हेतुु धनिया उपयोगी बताई गयी है।

तृतीय तिथि का स्‍वामी गौरी जी हैं। चन्‍द्रघण्‍टा अर्थात् चन्‍द्रूूसुर नामक पौधे का रूप रखकर शक्ति को बढाने तथा रक्‍त को शुद्ध करने का काम करती है। इस चर्महन्‍ती कहलाती हैं क्‍योंकि यह पौधा बढी हुई मोटापे को भी समाप्‍त करता है। क्षारिय होने के कारण हद्धय रोगियों के भी आवश्‍यक है।

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चतुर्थ तिथि का स्‍वामी गणेश जी हैं। कुष्‍माडा अर्थात् कुमडा के फल के रूप में मिर्गी जैसे रोग को समाप्‍त करती हैंं कुष्‍माडा देवी तो कहती हैैं कि कुत्सित: ऊष्‍मा कूष्‍मा त्रिविधता युक्‍त: संसार: स अण्‍डे मांसथेश्‍यामुदर रूपायां यस्‍सा सा कूष्‍माण्‍डा अर्थात् त्रिविधतायुक्‍त संसार जिसके उदर में स्थिति हो वो कूष्‍माडा देवी कहलाती हैं।

गुण धर्म: ब्रम्‍हाण्‍ड की समस्‍त ऊष्‍मा को नियंत्रित करने का कार्य कूष्‍माण्‍डा माता का है उदर अर्थात् मूलाधार चक्र (सूर्य का प्रतिनिधि मण्‍डल) से उत्‍पन्‍न होकर मस्तिष्‍क तक की ऊष्‍मा और कुऊष्‍मा को नियत्रित करने का काम कूष्‍माण्‍डा देवी करती हैं।

पंचम तिथि का स्‍वामी शेषनाग हैं। अलसी का संस्‍कृत नाम उमा, नील पुष्‍पी, क्षुमा, अलसी, तीसी अरबी में कत्‍तान, फारसी में तुख्‍मे कत्‍तान, जागिरा।

अलसी का गुण धर्म:- बलकारक, भारी, गर्म, मलकारक, स्न्ग्धि, ग्राही, कफ नाशक, त्‍वक् दोष हर है। अलसी का पुष्‍प रक्‍त पित्‍त नाशाक है। अलसी का पुल्टिस सबसे ज्‍‍‍‍‍‍यादा उपयोगी माना जाता है। संधि शूल में अलसी बीजों के साथ ईसबगोल की भूसी को मिलाकर बॉधा जाता है। उल्‍टे फोडेंं में अलसी का चूर्ण + दूध या पानी + हल्‍दी का चूर्ण का लेप पान के पत्‍ते पर रखकर बॉध लो बिना दर्द के मुॅॅॅह बनाकर फोड देता है।

षष्‍ठम् तिथि का स्‍वामी कार्तिकेय हैं मोइया औषधि के रूप में कात्‍यायनी देवी हमारे बीच में उपस्थित रहती हैं। मोइया या माचिका कफ, पित्‍त, रूधिर विकार कण्‍ठ रोगनाशक है।

सप्‍तम् तिथि का स्‍वामी सूर्य है। सप्‍तम् कालरात्री माता हैै जो नागदौन सर्वत्र रोगों से विजय दिलाने वाली हैं। नागदौन महौषधि है। इस पौधे को घर पर लगाने मात्र से ही समस्‍त प्रकार के कष्‍टों का ि‍निवारण हो जाता है क्‍योंकि माता कालरात्रि शत्रुओं का नाशा करने वाली हैं तथा सूर्य भी समस्‍त कीटाणु का नाश करने वाला है।

अष्‍ठम् तिथि का स्‍वामी शिव जी हैं तथा महागौरी का वर्णन तो आप सभी जानते हो तीन माताओं से घर चलता है गौ माता, तुलसी माता और एक घर की स्‍वामिनी माता। महागौरी माता तुलसी माता के रूप में घर घर आज भी पूजी जाती हैं।

नवम् तिथि का स्‍वामी दुर्गा जी हैं इसकी औषधि सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी या शतावरी भी कहते हैं। शतावरी वृृ‍द्वि, बल, वीर्य के लिये उत्‍तम है। रक्‍त विकार तथा वात पित्‍त शोध नाशाक है। हद्धय को बल देने वाली त्रिदोषनाशाक महौषधि है। ये रक्‍त शोधक है।

मार्कण्‍डेय पुराण का ये बहुत छोटा सा समीकरण अभी यहॉ पर प्रस्‍तुत किया है। चण्‍ड, मुण्‍ड रक्‍त कैंंसर होना का समीकरण आप तक पहुॅच चुका है। निमेष अर्थात् पलक झपकना अर्थात् तीसरा नेत्र ये बात भगवान शंकर के लिये प्रसिद्ध है त्रुटि महालक्ष्‍मी के लिये कहा गया है इसको आर्यभट्ट जी ने लिखा हुआ है।

उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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