सत्यम् लाइव, 27 जनवरी 2024, दिल्ली! ज्ञानवापी मस्जिद जिसे आलमगीर मस्जिद भी कहा जाता है, वाराणसी में स्थित एक विवादित मस्जिद है। यह मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। 1669 मे मुग़ल आक्रमणकारी औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर यह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी थी।
ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है इसका अर्थ है ज्ञान का कुआं। 1991 से इस मस्जिद को हटाकर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई चल रही है। लेकिन 2022 में सर्वे होने बाद से ये बहुत ज्यादा चर्चा में है। मस्जिद के वाजुखाने मे 12.8 व्यास का शिवलिंग प्राप्त हुआ है जिसे आक्रमण से बचाने के लिए तत्कालीन मुख्य पुजारी द्वारा ज्ञानवापी कुएं में छुपा दिया गया था। जेम्स प्रिंसेप ने ज्ञानवापी मस्जिद को ‘विश्वेश्वर मंदिर’ के रूप में वर्णित किया है। तोड़े गए मंदिर की असली दीवार आज भी मस्जिद में मौजूद है। इसमें दो गुम्मबदें हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर और उससे सटी ज्ञानवापी मस्जिद को किसने बनवाया, इसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। लेकिन ठोस ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। सामान्यत: यह माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और वहां एक मस्जिद का निर्माण कराया गया था। चौथी और पांचवीं शताब्दी के बीच, चंद्रगुप्त द्वितीय, जिसे विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, ने गुप्त साम्राज्य के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करने का दावा किया है।
635 ई०, प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआन त्सांग ने अपने लेख में मंदिर और वाराणसी का वर्णन किया है। ईसा पश्चात 1194 से 1197 तक, मोहम्मद गोरी के आदेश से मंदिर को काफी हद तक नष्ट कर दिया गया था, और पूरे इतिहास में मंदिरों के विध्वंस और पुनर्निर्माण की एक श्रृंखला शुरू हो गई थी। अनेक हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और उनका पुनर्निर्माण किया गया। ईस्वी 1669 में, मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश से, मंदिर को अंततः ध्वस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर एक ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। 1776 और 1978 के बीच, इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के पास वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया।
1936 में पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र में नमाज अदा करने के अधिकार के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था। वादी ने सात गवाह पेश किए, जबकि ब्रिटिश सरकार ने पंद्रह गवाह पेश किए। ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने का अधिकार स्पष्ट रूप से 15 अगस्त, 1937 को दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ज्ञानवापी क्षेत्र में ऐसी नमाज कहीं और नहीं पढ़ी जा सकती। 10 अप्रैल 1942 को उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और अन्य पक्षों की अपील को खारिज कर दिया। पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और अन्य लोगों द्वारा ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और पूजा की स्वतंत्रता के लिए 15 अक्टूबर, 1991 को वाराणसी की अदालत में मुकदमा दायर किया गया।
अंजुमन इंतजमिया मस्जिद और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ ने 1998 में हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर कर इस आदेश को चुनौती दी थी। 7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया। पूर्व जिला लोक अभियोजक विजय शंकर रस्तोगी को 11 अक्टूबर, 2018 को मामले में वादी नियुक्त किया गया था। 17 अगस्त 2021 में शहर की 5 महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी सत्र न्यायलय में याचिका दायर की और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी का उन्हें नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी जिसके बाद मस्जिद में सर्वे कराया गया। विदित हो कि मंदिर परिसर के ही शृंगार गौरी, श्री गणेश और हनुमानजी के स्थानों को भी ध्वस्त कर दिया गया था।
मान्यता है कि पश्चिमी दीवार जो की पूरी तरह किसी मंदिर के मुख्य द्वार जैसा प्रतीत होती है वह शृंगार गौरी मंदिर का प्रवेश द्वार रहा होगा जिसे बांस-मिट्ठी से बंद कर दिया गया है और मस्जिद के अंदर गर्भगृह रहा होगा। इसी पश्चिमी दीवार के सामने एक चबूतरा है जहां शृंगार गौरी की एक मूर्ति है जो सिंदूर से रंगी है, इसमें साल में एक बार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन हिन्दू पक्ष के द्वारा यह पूजा होती है परंतु 1991 के पहले यह नियमित पूजा होती थी जिसपर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने रोक लगा दी थी। 2021 में पांचों महिलों द्वारा इसी मंदिर में नियमित पूजा करने के लिए याचिका दायर की गई थी जिसके सर्वे का आदेश कोर्ट द्वारा किया गया था।
17 अगस्त 2021 में शहर की 5 महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी सत्र न्यायलय में याचिका दायर की थी और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी का उन्हें नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी थी जिसकी सुनवाई करते करते अप्रैल 2022 आ गया। 8 अप्रैल 2022 को सत्र न्यायलय ने सिविल जज सीनियर डिविजन ने वकील अजय कुमार मिश्र को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया और मस्जिद में सर्वे करवाने की अनुमति दी जिसकी रिपोर्ट 17 मई तक दाखिल करने को कहा गया। जिसपर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई और हाई कोर्ट पहुंच गए परंतु न्यायालय ने सर्वे पर रोक से इनकार कर दिया। 6 और 7 मई को लगभग ढाई घंटे कोर्ट कमिश्नर के नेतृत्व में सर्वे हुआ पर 7 मई को सर्वे टीम को मुस्लिम पक्ष का विरोध देखना पड़ा जिसके कारण उसस दिन सर्वे नहीं हुआ और मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में कोर्ट कमिश्नर को हटाने की मांग की लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को न केवल खारिज कर किया बल्कि विशाल सिंह को विशेष कमिश्नर बनाया गया, जो पूरी टीम का नेतृत्व करेंगे।
उनके साथ अजय प्रताप सिंह को भी शामिल किया गया और कोर्ट ने आदेश दिया था कि मस्जिद समेत पूरे परिसर का सर्वे होगा। 14 मई को कोर्ट कमिश्नर अजय कुमार मिश्र की अगुवाई में पहले दिन सर्वे हुआ। पहले दिन सुबह 8 बजे से 12 बजे तक सर्वे हुआ। राउंड 1 में सभी 4 तहखानों के ताले खुलवा कर सर्वे किया गया। अगले दिन 15 मई को दूसरे राउंड का सर्वे हुआ। दूसरे दिन भी चार घंटे सर्वे का काम चला, लेकिन कागजी कार्रवाई के कारण सर्वे टीम डेढ़ घंटे देर से बाहर निकली। राउंड 2 में गुंबदों, नमाज स्थल, वजू स्थल के साथ-साथ पश्चिमी दीवारों की वीडियोग्राफी हुई। मुस्लिम पक्ष ने चौथा ताला खोला।
साढ़े तीन फीट के दरवाजे से होकर गुंबद तक का सर्वे हुआ। 16 मई को आखिरी दौर का सर्वे हुआ जहां 2 घंटे में सर्वे का काम पूरा कर लिया गया। इस दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने का दावा किया। इस दावे के बाद कोर्ट ने शिवलिंग वाली जगह को सील करने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश पर डीएम ने वजु पर पाबंदी लगा दी और आदेश दिया कि अब ज्ञानवापी में सिर्फ 20 लोग ही नमाज पढ़ पाएंगे। टीम ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए और समय मांगा जिससे कोर्ट की कारवाई अगले दिन 18 मई तक टल गई। इसी बीच कोर्ट ने अजय मिश्र को कोर्ट कमिश्नर के पद से हटा दिया जिसके कारण 18 मई को न्यायलय में हड़ताल हो गई और उस दिन सुनवाई नहीं हो पाई। 19 मई को अजय मिश्र ने 6 और 7 मई को हुए सर्वे और विशाल सिंह (विशेष कोर्ट कमिश्नर) ने 14 से 16 मई के सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर दी।
अब कोर्ट में दाखिल करने के बाद सार्वजनिक की गई एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चार महीने के अपने सर्वे में “वैज्ञानिक अध्ययन/सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प अवशेषों, विशेषताओं, कलाकृतियों, शिलालेखों, कला और मूर्तियों के अध्ययन के आधार पर यह आसानी से कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहाँ एक हिंदू मंदिर मौजूद था।”
नीरज दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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