सत्यम् लाइव, 5 फरवरी, 2024, दिल्ली। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में बरनावा में बने लाक्षागृह पर पिछले करीब 53 सालों से विवाद चल रहा था। इस मामले में हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष दोनों की तरफ से कोर्ट में केस चल रहा था। अब कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है। यहां पर बने लाक्षागृह और मजार के मामले में हिंदू पक्ष को अदालत द्वारा मालिकाना हक दिया गया है। आपको बताते चलें कि मेरठ की एक अदालत में 1970 में यह मुकदमा दायर किया गया था। इसकी सुनवाई फिलहाल बागपत जिला एवं सत्र न्यायालय में हो रही थी।
साथ ही, 1970 में शुरू हुए ट्रायल में बागपत के सिविल जज शिवम द्विवेदी ने यह फैसला सुनाया है। मेरठ के सरधना कोर्ट में बरनावा निवासी मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से वाद दायर कराया था जिसमें मुकीम खान ने लाक्षागृह के गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। मुकीम खान ने इस पर वक्फ बोर्ड के मालिकाना हक की दावेदारी की थी जो कि टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और बड़े कब्रिस्तान की जमीन थी।
मुस्लिम पक्ष ने जब कोर्ट में अपील दायर की थी, उस वक्त मुस्लिम पक्ष ने प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज को बाहरी व्यक्ति बताया था। मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा था कि कृष्णदत्त महाराज मुस्लिम कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। हिंदू पक्ष की ओर से साक्ष्य पेश करने वाले और मुस्लिम पक्ष से वाद दायर करने वाले मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का ही निधन हो चुका है। इनकी जगह पर दूसरे लोग ही कोर्ट में पैरवी कर रहे थे। मुस्लिम पक्ष ने यह भी दावा किया था कि उनके शेख बदरुद्दीन की यहां पर मजार भी है, जिसे हटा दिया गया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लाक्षागृह और मजार-कब्रिस्तान विवाद के मामले में कुल 108 बीघा जमीन है। फिलहाल कोर्ट के फैसले के बाद इस जमीन पर पूरी तरह से मालिकाना हक हिंदू पक्ष का होगा। यहां पर एक पांडव कालीन सुरंग भी बनी हुई है, जिस पर दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर निकले थे। इस मामले में इतिहासकारों की भी राय ली गई है। इतिहासकार अमित राय ने इस मामले में बताया था कि इस जमीन पर जितनी भी खुदाई की गई है, वहां पर हजारों साल पुराने साक्ष्य मिले हैं जो कि हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब हैं।
नीरज दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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