सत्यम् लाइव, 28 मार्च 2020।। दिल्ली एक तरफ जहॉ नॉवल कोरोना को लेकर इतनी लम्बी लम्बी योजनाऐं बन रही है और इतनी लम्बी लम्बी सतर्कता बरतने को कही जा रही है। भारतीय शास्त्रों में तो सदैव से ही स्वस्थ रहने को ही महत्व दिया गया है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय शास्त्र अर्थात् वेदो से लेकर आज के साहित्य में समय की बडी विशेषताऐं बताई गयी हैंं कि किसी संक्रमण काल मेें कौन सा संक्रमण अर्थात् कीटाणु जन्म लेता है? भारतीय शास्त्रों में आजीवन बीमार न पडने को लेकर, आयुर्वेद लिखा गया है जिस आयुर्वेद में वर्णन है कि आप बीमार ही न पडो अर्थात् शेष कोई भी पैथी में आप जाकर देखो तो समझ मेें आता है कि पहले बीमार पडो फिर आपको दवा दी जायेगी परन्तु आयुर्वेद में तो इसके बिल्कुल विपरीत है कि कहा गया है कि आप बीमार ही मत पडो।
इतनी अन्दर तक जाकर तो दावा वही शास्त्र कर सकता है जिसमें इतना गहन अध्ययन किया हो कि कोई भी संक्रमण हमारे पर्यावरण में जीवित ही न रह पाये। इतना बडी खोज के बाद आज यदि आपातकालीन जैसा समय आ जाये तो निश्चित तौर कहा जा सकता है कि हम अब काल अर्थात् समय को नहीं जानते है जबकि भारत ही है जो समय का जनक कहा जाता है। काल को पहचानने का अर्थ क्या ये है कि हम सिर्फ समय देख लें या फिर आगे भी कुछ है जब देखा तो पता चला कि भारत के शास्त्रों में एक शब्द है ”हम काल को जानते हैं इसलिये महाकाल के भक्त है” हम सब ऋतुओं को इतनी अच्छी तरह से जानते थे कि कभी भी संक्रमण काल हमारे लिये घातक नहीं होता था आज इतना घातक हो चुका है। संक्रमण काल से हम अपने नववर्ष को मनाते हैं आर्यभट्ट सहित कई ज्योतिष शास्त्रीयों का मानना है कि एक निश्चित संक्रमण काल में कीटाणु उत्पन्न ही होता है और सूर्य की गर्मी के कारण समाप्त भी हो जाता है उस संक्रमण काल को पहचानने के लिये हमें अपने भारतीय शास्त्रों का अध्ययन करना पडेगा जो आज न के बराबर हैै और काल की गणना करके समयानुसार संक्रमण काल को पहचान पाना ही मुश्किल हो चला है। जबकि एक राशि से दूसरी राशि पर भ्रमण करने को ही आर्यभट्ट जी ने संक्रमण काल कहा है उसे मेष संक्रमण या मेष संक्रान्ति कह कर पुकारा गया है इतनी सी बात तो समझ मेें आती है कि सूर्य की गति परिवर्तित होने के काल को संक्रान्ति कहा गया है। जब संक्रान्ति से सूर्य की गति परिवर्तित हो जाती है तो फिर भारत के निवासी अपनी संस्कृति से अलग थलग पडे अर्थात् सूर्य की गति को न समझकर उसे अन्धविश्वास मानकर हार मान लेते हैं। अन्यथा सूर्य की गति से आयुर्वेद का जन्म हुआ है और सूर्य स्वयं किसी वायरस को पनपने नहीं देता।
किसी भी वायरस को समाप्त करने के लिये संस्कृति कार्यक्रम होने चाहिए या समाप्त होने चाहिए यहाॅॅ तक भूल चुके हैं और आज रावण का वही काम हो रहा है जो कहता था कि ऋषियों मुनियों को यज्ञ नहीं करने देना चाहिए। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जाने बिना जब संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की जायेगी तो ऐसा ही परिणाम आयेगा। भगवान सूर्य को पालनहार कहकर बुलाया जाता है विकास के नामपर आज के विकास ने ही प्रदूषण पूरे भारत में फैलाया है परन्तु अभी राजीव दीक्षित के अनुसार यूरोप ८२.५ करोड अरब टन कार्बन इस साल उत्सर्जन करता है जबकि एशिया १८.२ करोड अरब टन कार्बन उत्सर्जन करता है पर सारी शर्ते उसी पर लागू होती है जो अपने कंधे पर भार उठाने को नहीं सोचता है।
इतना जानने के बाद अब मैं दावा कर सकता हूॅ कि मुस्लिम न सिर्फ चन्द्रमा की गति से अपने त्यौहार नहीं मनाते बल्कि मुस्लिम में ग्रह और नक्षत्रों का वर्णन मिलता है। राशि चक्र भी उपस्थिति है पूरी जानकारी पूर्ण परिणाम के बाद लिखूगॉ।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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