”दिनकर की कलम कहॉ से लाऊॅ?” आयुर्वेद से जाने तो ऑनलाइन के कारण वात प्रधान देश में बिना मेहनत करे, व्यक्ति कफ का रोगी बनेेेगा। और आज लॉकडाउन नोवेल कोराेेना के कारण हैं जिसका पहला लक्षण ही कफ का बढना है।
सत्यम् लाइव, 23 मई 2020 दिल्ली।। नोवेल कोरोना वायरस पर जब तक जनता को जब तक ये पता था कि नोवेल कोराना महामारी के चलते ये औपचारिकता के तौर पर कुछ दिनों केे लिये ये शिक्षा व्यवस्था आयी है, तब तो डॉ. और शिक्षकगण सहित अभिभावक शान्त था परन्तु अब डॉक्टर और शिक्षक सहित कुछ अभिभावक भी ऑनलाइन शिक्षा पर प्रश्न खडे करने लगे हैं। जैसे डाक्टर का कहना है कि अब बच्चा मोबाईल पर 2 से 3 घन्टे ही बीता रहा था तब तो छोटी सी उम्र में मिर्गी के मरीज बडे हैं अब तो बच्चा समाजिकता के दूर, भारतीय संस्कृति और सभ्यता का मात्र लवादा ओढे हुए 7 से 8 घंटे तक मोबाईल पर बीता रहा है उससे ऑखों के साथ मस्तिष्क के रोग और बढ जाने की सम्भावना है। और आयुर्वेद का जानकार कहता है कि आयुर्वेद से जाने तो ऑनलाइन के कारण वात प्रधान देश में बिना मेहनत करे, व्यक्ति कफ का रोगी बनेेेगा। और आज लॉकडाउन नोवेल कोराेेना के कारण हैं जिसका पहला लक्षण ही कफ का बढना है। साथ ही समाज केे चिन्तक का कथन है कि ये मोबाईल तनाव और ज्यादा बढा रहा है अब जब इसे शिक्षा व्यवस्था के साथ जोडा जा रहा है तब तो तनाव बढेगा ही। साथ ही शिक्षक ने भी इस सवालिया प्रश्न प्रारम्भ कर किये हैं। भारत के सभी अर्थव्यवस्था के अनुसार जब 70 प्रतिशत व्यक्ति के पास रोटी की कमी दिख रही है और 40 प्रतिशत लोगों की, नौकरी की समस्या बन चुकी है तो ऑनलाइन के माध्यम से किसी परदेशी कम्पनी के हाथ में इतनी बडी शिक्षा व्यवस्था कैसेे दी जा सकती है फिर उनको भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में कितना पता है? क्योंकि संस्कृति सदैव सूर्य की गति के अनुसार ही चलती है और अर्थव्यवस्था का बनती है यही अर्थव्यवस्था सभ्यता के रूप में विकसीत होती है अत: ये तो तय है कि योग के माध्यम से जो योगी बनाने की योजना प्रारम्भ हुुई है वो अब साधक को योगी बनाने में बाधक बनने वाली है। इस देश में खेल-खेल में, हिन्दी कविता के माध्यम से सुन्दर ढग से, बच्चों को चारो दिशाओं का ज्ञान करा दिया जाता है, जो भविष्य में इसी सूर्य की गति से, भारतीय त्यौहार को मनाते हैं उसी देश ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था कैसे चलेगी ये इस पर आपकी क्या राय है? अवश्य ही बतायें और भारतीय संस्कृति और सभ्यता के लिये, भारतीय शास्त्रों से प्रेेरित, आपकी राय शीर्षक ”दिनकर की कलम कहॉ से लाऊॅॅ?” में अवश्य शामिल की जायेगी।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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