सत्यम् लाइव, 25 जुलाई 2021, दिल्ली।। आदान काल में प्रत्येक व्यक्ति का शरीर मलीन होता है अतः अग्नि भी दुर्बल हो जाती है अग्नि दुर्बल होने के कारण पित्त बिगड़ा ही होता है पिछले ग्रीष्म ऋतु के कारण पृथ्वी तप रही होती है और वर्षा पृथ्वी पर होते ही पृथ्वी से उष्मा निकलने लगती है उससे जल वाष्प के रूप में निकलता है। ये वाष्प न तो गर्म होती है और न ही ठण्डी होती है इसी कारण से प्रकृति में कीटाणु उत्पन्न होते है। शरीर प्रकृति के अनुरूप चलता है और शरीर में 80 प्रतिशत जल होता है वो जल भी दूषित हो जाता है शरीर के इस जल को शुद्ध रखने के लिये इस ऋतु में गर्म पानी ही पीना चाहिए। जिससे पानी में उत्पन्न कीटाणु समाप्त हो जायेगें और शरीर के अन्दर एक भी किटाणु उत्पन्न नहीं हो पायेगें अतः पानी को अवश्य ही उबालकर पियें। जो उबला हुआ पानी हम सब पीते हैं वो पानी मूत्र पिण्ड तक 45 मिनट के बाद पहुँचता है और शरीर में उत्पन्न जो प्राकृतिक कीटाणु को समाप्त करने में बहुत सहायक होता है।
वर्षा ऋतु में सूर्य देव की नर्म और गर्म दोनों अवस्था अकस्मात् ही हो जाती हैं अर्थात् जठराग्नि अक्सर ही मन्द रहती है। मनुष्य के शरीर में पानी की मात्रा कम और ज्यादा होती रहती है, पानी की मात्रा कम या ज्यादा न होने पाये, अर्थात् जठराग्नि और ज्यादा या मन्द न होने पाये तो पानी की अधिकता वाली सब्जी अर्थात् हरी सब्जी खाने पर प्रतिबन्ध होता है। सामान्यतः अग्नि को तीव्र करने वाले आहार-विहार का सेवन करना चाहिए। उसमें द्विल वर्ग का यूष, अर्थात् जिस दल के दो भाग हो जाये जैसे भुट्टा, पुराना चना, अरहर, हल्का मूंग, गेंहू, चावल, पुराना शहद अर्थात् सब कुछ हल्का भोजन ही करें।
कहते हैं यदि मेघ यानि पानी अधिक वर्षे तो उस दिन जो भी आहार सेवन करे, जिसमें सूखा पदार्थ अधिक हो अर्थात् बेसन की पकौड़ी की बात, की जाती है। इस ऋतु में बिना उबाले हुए सत्तू का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। अधिक व्यायाम, दिन में शयन और धूप में बैठना आदि भी नहीं चाहिए। इससे भी बढ़कर यदि मनुष्य एक ही समय खाना खाये तो ज्यादा स्वस्थ रहेगा परन्तु यहां पर ये भी याद रखना है कि शरीर को दुर्बलता न महसूस होने पाये क्योंकि पानी की मात्रा अधिक हो गयी तब भी समस्या पैदा होगी तब भी समस्या खड़ी करती है परन्तु यदि पानी की मात्रा कम हो गयी तो मस्तिष्क सम्बन्धी रोग होने की सम्भावना बढ़ती है।
ये एक ऐसा मौसम है जिसे सारे रोगों की जननी कहा जाता है इसी कारण से चौ-मासे का बहुत महत्व है क्योंकि अब सूर्य की गति दक्षिणायण होने जा रही है और ऋतु शिशिर में भादों एवं आश्विन चालू होता है सूर्य के दक्षिणायण होने पर वायरस जन्म ले सकता है परन्तु भारत की धरा पर कोई भी वायरस जन्म ले उसे पहले ही, भारतीय गणितज्ञों के अनुसार सूर्य और मंगल से निपटना होता है इसके पश्चात् वैदिक नारी अपनी रसोई से उसे मार पाने में सझम होती है।
अतः ये आवश्यक है कि वर्षा ऋतु के भोजन को बहुत ध्यान देने की जरूरत है। दूध के साथ रात्रि में त्रिफला का प्रयोग अवश्य करें। पानी की मात्रा शरीर में न बढ़ने दें न कम होने दें। सुश्रुत ऋषि लिखते हैं कि पानी प्राण है। पानी ही जीवन है। श्लोक इस प्रकार है ‘‘पानीयं प्राणिनां प्राणाः’ विश्वमेतच्च तत्रामयम्, अतोउत्यन्त निषेध्ऽपि न क्वचिद् वारि वर्यात्।।’’ पानी प्राण है विश्व जलमय है और अब सूर्य जब दक्षिणायन में हो उस ओर चलेंगे।
सुनील शुक्ल
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