कम नम्‍बर आने पर भी खाते-खिलाते थे लड्डू

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Suicide 2

सत्‍यम् लाइव, 16 जुलाई 2020, दिल्‍ली।। 1991 से पहले तो भारतीय शिक्षा व्‍यवस्‍था ऐसी थी कि मेेेेरे शिक्षक मुझे कुर्सी बना दिया करते थे जो आज कल बाबा रामदेव अपने भक्‍तों को प्राणायाम में, बना देेते हैं। शिक्षक जब अपने गले से लगा लेते थे तो ऐसा लगता था कि मानो स्‍वर्ग की ऊॅचाई पा ली हो। खेल-खेल में या पढने मेें जो सजा मुझे शिक्षक ने दी उसी के कारण ही आज मेरी कलम इस निर्णय तक पहुॅच चुकी है। उस समय जब शिक्षक अपने बच्‍चों को, ज्ञान देते थे तो दूसरे से तुलना के आधार पर शिक्षा नहीं देते थे। 36 प्रतिशत आने पर शिक्षक के घर मेें सहित सभी को मिठाई खिलाई जाती है परन्‍तु आज 92 प्रतिशत पर आत्‍महत्‍या की जा रही है ऐसी ही कुछ खबरे लगातार आ रही हैं। नम्‍बर आने से यदि ज्ञान मिल जाता तो आगे सब परीक्षा बन्‍द करके इसी अंक के आधार पर जीवन चलाया जाता आज आप देखो कि जो जितना ज्‍यादा पढा लिखा है वो उतना ही ज्‍यादा परेशान है और जो कम पढा लिखा है उसको कोई बीमारी भी नहीं लगती है। यूपी बोर्ड में कप्तानगंज थाना क्षेत्र के बनकटा जगदीशपुर गांव निवासी एक छात्रा ने बोर्ड की परीक्षा मे नंबर कम आने पर फांसी लगाकर बुधवार की रात जान दे दी। कप्तानगंज बनकट जगदीश गांव निवासी 15 वर्षीया प्रिया मौर्य पुत्री राजेश मौर्य के परिजनों ने बताया कि प्रिया यूपी बोर्ड में 10 वीं की परीक्षा दी थी। परीक्षा परिणाम आने पर उसे 72 प्रतिशत अंक मिला है। जिससे व संतुष्ट नहीं थी, अपेक्षित अंक न मिलने से तनाव में थी। बुधवार की शाम वह किचेन में खाना बना रही थी। वह किचेन के रोशनदान से साड़ी के सहारे फांसी लगाकर आत्महत्या कर दी। काफी समय बाद उसके भाई किचेन में गए तो लटकाता हुआ शव देखा। जानकारी होते ही गांव के लोग मौके पर आ गए। ग्रामीणों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। प्रिया के पिता कप्तानगंज बाजार में एक इलेक्ट्रानिक दुकान पर तथा मां ब्यूटी पार्लर काम करती है, ये दो भाई में अकेली थी। ऐसा ही एक खबर मेें एक बालक ने आत्‍महत्‍या कर ली है जिसके अपनी पढाई के अनुसार अंक की प्राप्ति नहीं कर सका।

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अंक जीवन को नहीं चलाता है जीवन बिना अंको के आधार पर आज तक चलता आया है और आगे भी चलता रहेगा। अंकों के आधार पर तो अव्‍यवस्‍था ही चलती है जो आज चल रही है। इतना पढने के बाद भी एक बडा अधिकारी अनपढ को जी सर नहीं कहता फिर रहा है अंग्रेजीयत शिक्षा व्‍यवस्‍था में कुछ सिखाने को नहीं है इसी कारण सेे एक दूसरे केे बीच में नम्‍बर लाने का कम्‍प्‍टीशन स्‍वयं शिक्षक उत्‍पन्‍न करा रहे हैं और मॉ-बाप भी उसे हवाई पूल बनाने में सहयोग कर रहे हैं जीवन सदैव शान्‍त चलाने के लिये पर्यावरण से शिक्षा लें। विदेशी मूल की पढाई को, आत्‍महत्‍या का कारण सब मिलकर बना रहे हो।

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सुनील शुक्‍ल

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