अब नये रोग से, नयी दिशा की ओर

रामानन्द सागर की रामायण में जब भरत जी अपने पिता दशरथ को मुखाग्नि देने चलते हैं अब एक भजन बजता है कि ‘‘रहे पिता को याद सदा की पुत्र पर कोई आँच न आवे रे” और वही वेटा अपने पिता के शरीर को आग लगा देता है ये रीति-रिवाज हैं जो आज भी नोवेल कोरोना वायरस के रहते निभाये जा रहे हैं। हम प्रथक होकर रह नहीं सकते।

सत्‍यम् लाइव, 7 अप्रैल 2020 दिल्‍ली।। नोवेल कोरोना महामारी के कारण सम्पूर्ण भारत में लाॅकडाउन के तहत समस्त उत्पादन बन्द है और बाजार में माल की माँ नहीं है इसी को अर्थशास्त्र में मन्दी कहा गया है जबकि पिछले कई सालों से हम सब आर्थिक मन्दी से गुजर ही रहे थे और अब समस्त विश्व के अर्थशास्त्रीय कह रहे हैं कि अब महामन्दी हमारे कदम महामन्दी की तरफ जा चुके हैं। इस मन्दी से निपटने के लिये हमारे पास क्या उपाय है ? तो नोवेल कोरोना वयारस की शर्तों में कहा गया है कि एक दूसरे से 1 मीटर की दूरी बनाकर रखें और व्यापार एक मीटर की दूरी बनाये रखकर कैसे किया जा सकता है क्योंकि पेट पालने के लिये कुछ तो करना ही पडेगा। तो इसका उपाय बडा सरल है कि आप डिजिटल इंडिया का सहारा ले लें, जी हाॅ! अपने पर्यावरण और प्रकृति को भूला, आधुनिक तकनीकि की तरफ बढ़ता भारत आज ऑन लाइन की सफलता की कामना करता नजर आ रहा है। ये मजबूरी है या फिर आधुनिकता, इस प्रश्न का उत्तर कम्पनी के विकल्प देखने से ज्ञात होता है। किसी भी कम्पनी ने पहले ही सीईओ – Chief Executive Officer . मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा दूसरा सीटीओ – Chief Technology Officer . मुख्य तकनीकि अधिकारी की पोस्ट अपने यहाॅ पर बना रखी है। इन दो विकल्पों के साथ कम्पनियाॅ पहले ही तैयार है अब तीसरा विकल्प नोवेल कोरोना वायरस के रूप में है। भारतीय समाज अपने आप में एक विशिष्ठ समाज है जिसकी अपनी मान्यताऐं है उस पर विचार करना आवश्यक है अब यहाॅ से दूर भारतीय समाज के अन्दर चलते हैं तो रामानन्द सागर की रामायण में जब भरत जी अपने पिता दशरथ को मुखाग्नि देने चलते हैं अब एक भजन बजता है कि ‘‘रहे पिता को याद सदा की पुत्र पर कोई आँच न आवे रे” और वही वेटा अपने पिता के शरीर को आग लगा देता है ये रीति-रिवाज हैं जो आज भी नोवेल कोरोना वायरस के रहते निभाये जा रहे हैं। हम प्रथक होकर रह नहीं सकते। भारतीय समाज कभी अकेला कार्य करी नहीं सकता और तकनीकि यकीनन भारतीय प्रकृति और पर्यावरण के विरोध में है ये बात भारत पर्यावरण के सभी वैज्ञानिक कह रहे हैं परन्तु विकास अपना मुख मोड़ने को तैयार नहीं है। दूसरी तरफ भारतीय बुजुर्ग माता या पुरूष बुजुर्ग की पेन्शन बैंकों में आ रही है ये वो माताऐं है जिनका जीरो बजट खाता में आ रहा है हलाॅकि वो सभी बुजुर्ग आज भी कार्य कर रहे हैं और आगे भी करेंगे क्योंकि भारतीय समाज एक साथ रहने में विश्वास करता है उनकी सहायता के लिये आज भी कहीं भी नवयुवक या नवयुवती खडी हो जाती है और कल भी खडी हो जायेगी। परन्तु अनिश्चिता के दौर में नवपीढ़ी भी आज स्वयं परेशन दिखाई दे रही है जहाॅ एक तरफ बढ़ती तकनीकि के कारण मोबाईल से फुरसत नहीं है तो वहीं ऐसा भी नवयुवक है जो तकनीकि से दूर रहकर अपना भविष्य भारतीय परिवेश में ही चाहता है ये बात सच है कि बहुत बडी संख्या में नवयुवक भारत से बाहर जाकर रहना स्वर्ग में रहना समझता है तो वही ऐसा भी नवयुवक आज भी है जो भारत भूमि को अपनी मोझ की नगरी समझता है।

अगर आज की भारतीय स्थिति को देखें कि भारत ने अपने कार्यशैली को किस विकल्प में चुन रखा है तो ज्ञात होता है कि टेलीकाॅम, मीडिया, इंजीनियरिंग, प्रापर्टी, मेटल उद्योग, उपभोक्ता सामग्री, वेवरेज केमिकल्स के साथ उनके पैक करने की व्यवस्था आईटी सेक्टर के साथ लगभग 76 प्रतिशत है और अब इसमें शिक्षा व्यवस्था को भी जुड़ा जा चुका है शिक्षा व्यवस्था को जोडने की तैयारी तो बहुत समय से चल रही है। उत्तर प्रदेश के राजर्षि टण्डन मुक्त विवि की विज्ञान विद्याशाखा में आयोजित विषयक सेमिनार में आरएएफ कमांडेंट श्री दिनेश सिंह चंदेल ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों की रूपों में सूचना की जरूरत है इसी बैठक में श्री आर.पी. मिश्रा जी का कथन था कि सूचना प्रोद्यौगिक ज्ञान दे सकती है परन्तु शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता है, संकेत साफ है पर अब सिर्फ और सिर्फ विकास को ही देखा जाता है तो शिक्षा व्यवस्था की भी अब पूरी तैयारी हो चली है। दिल्ली सरकारी स्कूलों में पहले ही बच्चों को मोबाईल अनिवार्य करा दिया गया था अब उनके पास लाॅकआउट में घर पर काम ऑन लाइन भेजा जाने लगा है। यहाॅ श्री आर.पी. मिश्रा जी कथन मात्र उनका ही दर्द सिद्ध हुआ। दस शिक्षक से बात करने पर पता चला कि दसों प्रसन्न हैं।

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अब बात शेष 24 प्रतिशत की तरफ देखते हैं तो उसमें एयरलाइन्स, ऑटोमोटिव, गेम, रिटेल व औषधि, ऑयल एवं गैस ये पूरी तरह से आईटी सेक्टर से जोडे़ हैं। ऑन लाइन की सबसे बड़ी व्यवस्था भारत में उपभोक्ता सामग्री की पूर्ति कराना है क्योंकि भारत पूर्ण रूप से कृषि प्रधान देश है और पर्यावरण बचाने के लिये घर के अन्दर लौकी, तराई जैसी सब्जी लगा लेना कोई बड़ी बात नहीं है। ऑन लाइन में सबसे बड़ा बाजार यहीं से प्रारम्भ होता है कि इस चुनौती को कैसे पूरी करें। भारत के समस्त निवासी किसी न किसी गाॅव से आज भी जोड़े हैं और नौकरी भले ही शहर में करें लेकिन अपने गाॅव से आज भी राशन पानी मॅगवा लेते हैं और बड़े स्टोर खाली पड़े रह जाते हैं। इस चुनौती का क्या होगा ? नोवेल कोरोना के रहते ये तो वक्त ही बतायेगा। वैसे रास्ता निकालने के लिये भारतीय समुदाय से उठाकर सीईओ कम्पनी के पास है अगर उसको नौकरी करनी हो तो वो रास्ता बतायेगा और सीटीओ बैठकर भारतीय तकनीकि को उजागर करने वाला, भारतीय भेषज प्रचारक भी है उनके पास। फिर किसी बात का डर है ऑन लाइन के चालू होते ही, रोजगार समाप्त हो या न हो या फिर भले ही रोजगार के दृष्टिकोण आगे व्यापक हो जाये परन्तु आज की समस्या का समाधान होगा ही। ये कितनी बुद्विमता होगी इसका जवाब भविष्य के लोगों को स्वयं खोजना होगा। नोवेल कोरोना वायरस को दूर रहने की योजना इसी प्रक्रिया से पूरी हो सकती है। रास्ता दूसरा नहीं दिखता और विकास के पैमाने भी गिनाये जा सकते हैं। पत्रकारिता दुनिया में विनोद दुआ जी हों या फिर आज का कोई भी चैनल या कोई भी राजनीतिक दल जब विकास की बात चलती है तो सीधी वो अमेरिका से तुलना करने लगते हैं ये समझाये बिना कि अमेरिका और भारत में संस्कृति और सभ्यता में कितना फर्क है?

उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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