ऋतुचर्या के अनुसार भोजन करना ही सूर्य की गति से मेल खाती है, ये योग आपको स्वास्थ प्रदान करता है।
सत्यम् लाइव, 3 अप्रैल 2020, दिल्ली। काल अर्थात् समय का जीवन में बड़ा महत्व बताया गया है या फिर कहा काल के विषय में जितना भी जाना जाये उतना कम है यह विषय न्यायसंगत हो इसलिये ये कहना उचित होगा कि काल का ज्ञान कभी भी उस व्यक्ति के पास नहीं जाता जो सिर्फ प्रकृति पर या ऊपर वाले पर दोषारोपण करके, अपने आपको अलग रख लेता है। जिस व्यक्ति को काल का ज्ञान हो जाता है वो स्वयं को सम्पूर्ण स्वस्थ रखना जानता है इसी को मोझ की पहली सीढ़ी कहा गया है। महर्षि राजीव दीक्षित के रहते मुझे आर्यभट्ट के संकेत मात्रा मिले थे परन्तु उनके देहावसान होने के बाद, दयानन्द सरस्वती की दया से महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी द्वारा लिखित सूर्य सिद्धान्त को समझने का अवसर मिला। महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी के जीवन का उद्देश्य इस श्लोक से ज्ञात होता है।

इस श्लोक का अर्थ है कि जैसे मोर के सिर पर शिखा और नाग के मस्तिक पर मणि शोभायमान होती है उसी तरह से वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के लिये ज्योतिष गणित अर्थात् ग्रहों के चरित्र को समझना आवश्यक है। जैसे ऑखों के बिना संसार में अन्धकार रहता है उसी प्रकार से ग्रहों के ज्योतिष के बिना वेदों को नहीं समझा जा सकता है
यह श्लोक का कलयुगी मानव को कितना ज्ञान है ये बताता है कि आज के महान कलयुगी ज्ञानी ने जिस ज्योतिष शास्त्र को अन्धविश्वास घोषित कर रखा है उसी ज्योतिष शास्त्र की, मनुष्य के मुख्य अंग ऑखों से तुलना की गयी है यदि ऑखेेंं नहीं होगी तो संसार दिखेगा ही नहीं।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल