भारतीय संस्‍कृति को पहचानो

सुनील शुक्‍ल उपसम्‍पादक

सत्‍यम् लाइव, 5 जुलाई, 2020, दिल्‍ली।। वैदिक काल से ही, भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिये जाना जाता रहा है इसी संस्कृति और सभ्यता का यदि आधार देखें तो ज्ञात होता है कि युगों-युगों से भारत में जो शिक्षा व्यवस्था रही है वो ही उसकी आधार शिला है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था ही थी जो हर भारतीय को सुशिक्षित और सभ्य बनाती थी और सभ्यता भी ऐसी कि वो अहिन्सावादी हुआ करती थी अर्थात् सूर्य की गति के साथ स्वयं को स्वस्थ रखती थी और अन्य को भी जीने का अधिकार देती थी। आज की हिन्सात्मक हुआ इन्सान के पास, भारतीय शिक्षा का ज्ञान नहीं है जिसके कारण हिन्सात्मक रवैया अपनायें, वायरस से परेशान है परन्तु अपनी कमियाॅ नहीं देखती हैं। नोवेल कोरोना, चैत्र मास में आता है और बड़ा-बड़ा ज्ञानी चुप रहता है तो इसके पीछे एक ही कारण है और वो है अपने शास्त्रों को विसारना। नोवेल कोरोना के आगमन के पहले ही, ऑनलाइन शिक्षा देने की सारी तैयारियाॅ पूरी हो चुकी थी अब बस इंतजार था तो नोवेल कोरोना पर शोर होने का, पिछले चार सालों से, स्कूलों को आदेश हो चुके थे कि ऑनलाइन पर काम कराया जा रहा था परन्तु कोई बहाना तो चाहिए अन्यथा कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा तब समय आता है कि इसे स्वीकार कराने का और स्वीकार भी ऐसे कराया जाये जो हर व्यक्ति डरा सहमा सा मान ले। भूतपूर्व भारतीय वैज्ञानिक महर्षि श्री राजीव दीक्षित के अनुयायी चाहे जितना वायरस को व्यापार बताये परन्तु उनके साथ बैठे हुए बाबाओं ने भी विदेशी दबाओ में नतमस्तक दिख रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था अब अगले पाॅच वर्षो के अन्दर पूरी तरह से लागू कर देने की योजना का स्वरूप को आगे प्रस्ताव चालू हो गये हैं परन्तु इतना अवश्य समझ लें कि इस ऑनलाइन व्यवस्था में, सिर्फ डिग्री का महत्व रह जायेगा और ज्ञान का महत्व समाप्त हो जायेगा और भारत सदैव अपने ज्ञान के लिये ही जाना जाता रहा है। ऑनलाइन शिक्षा के प्रारम्भ होते ही जो बीमारियाॅ व्यापक रूप से आयेगीं, उनका वर्णन मानसिक तौर की बीमारियाॅ में गिना जा रहा है। पहले ही तनाव भरी जीवन शैली व्यक्ति निभा रहा है और अब तनाव का कारण, मुख्य रूप से ऑनलाइन ही होगा। गणित के विषय में तो कह सकते हैं कि तब नहीं समझ में आयी जब अध्यापक स्वयं खडे होकर कई बार समझाता था अब तो सिर्फ रिकाॅर्डिग ही समझायेगी। राज की बात ये है कि गणित का जन्म ही सूर्य और समस्त ग्रहों की गति से हुआ है उसको तो पहले ही अब अन्धविश्वास कहा जाता है और अब तो मैन्टल मैथ पढ़ाकर, मैन्टल बनाया जा रहा है। लगद मुनि ने गणित के लिये लिखा है कि

Ads Middle of Post
Advertisements

गणित ही एक अकेला विषय नहीं है जो भारतीय अपनी ज्योतिष गणित को छोड़कर, अंग्रेजों से उधार लेकर पढ़ रहे हैं बल्कि सारे ही विषय वहीं से लाकर पढ़ रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा अभी पूरी तरह से लागू भी नहीं हुई और परिणाम पहले ही हमारे सामने हैं। भारत की वो जगह जिसे उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है जिसे धरती पर ऋषि वाल्मीकि ने रामायण, तुलसी दास जी श्रीराम चरित मानस लिखी। इसके साथ इस क्षेत्र में हिन्दी ने महान लेखको को जन्म दिया जिसमें जय शंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी, पं. प्रताप नारायण मिश्र, भगवती प्रसाद वर्मा, श्रीराम चन्द्र शुक्ल, श्री कृष्ण शंकर शुक्ल, नन्ददुलारे वाजपेयी, राम विलास शर्मा, मुंशी प्रेम चन्द्र, महादेवी वर्मा, चन्द्र भूषण द्विवेदी आदि महान विभूतियों ने हिन्दी भाषा की गरिमा को पहचाना और आगे बढ़ाया। इस वर्ष 2020 के उत्तर प्रदेश के आये परिणाम में सबसे ज्यादा बच्चे हिन्दी में ही फेल हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, अयोध्या, इलाहाबाद, बनारस और चित्रकूट का ये वो भाग है जिस क्षेत्र में हिन्दी ने अपना वर्चस्व बना रखा है और इसी क्षेत्र में हिन्दी में, लगभग 28 प्रतिशत तक, बच्चें हिन्दी में फेल हुए है और ये स्थिति तो तब है जब अभी तक ऑनलाइन शिक्षा प्रारम्भ नहीं हुई है। परन्तु डिजीटलाइजेशन ने पूरे देश के बच्चों को, मेहनत न करना भरपूर सिखाया है और अंग्रेजों की विदेशी कम्पनी की एक ही चाह रही है कि किसी भी तरह से, पूरा भारत मेरे इशारे में नाचे, फिर हम सब उनको अपने अनुसार चलायेगें और आराम से बैठकर खायेगें। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था में, न सिर्फ बच्चे बीमारी को पाल रहे हैं बल्कि अपने से बड़ो की इज्जत करना भी भूल चुके हैं। अभी भारतवासी परेशान हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता समाप्त हो रही है अब क्या होगा ? जब तन न ढ़कने को, पुरातन परम्परा से जोड़ा जा रहा है।

आज का नवयुवक को इतना ज्यादा भटकाया जा रहा है कि वो सिर्फ प्रतिशत लाकर ही अपने को, ज्ञानी समझ बैठा है। जिसके पास अच्छे प्रतिशत नहीं है वो अनपढ़ है वैसे ही माॅ-बाप भी यही समझ बैठें हैं कि अपने बच्चे को एक छोटी मोटी नौकरी मिल जाये तो बस सब ठीक हो गया। गर्व से सर ऊँचा हो गया समझते हैं भले ही वो अनपढ़ नेताओं के पीछे पीछे घूमता हुआ जीवन बीता दे। भले ही वो किसी भी गलती नीतियों के साथ खड़ा रहे। पैसे को भगवान समझने वाले ये नहीं समझ पा रहे हैं कि मोझ पाने का कारण ही भगवान कृष्ण ने गीता में ज्ञान बताया है पैसा नहीं। और ज्ञान कभी भी डिग्री से नहीं देखा जा सकता है। ये कोई समझना भी नहीं चाहता कि ज्ञान के साथ जिन्दा रहा जा सकता है ये सब जानते हैं कि पैसे के बिना जीवित नहीं रहा जा सकता है। किसी भी माॅ-बाप अपनी बेटी को रसोई में नहीं देखना चाहता है और देखना भी चाहता है तो किचन में देखना चाहता है। छठ रस के निर्माण के लिये भारतीय ऋषियों-मुनियों ने जो रसोई बनाई थी वो अब किचन बन चुकी हैं जहाॅ पर पेट भरने के लिये खाना बनाया जाता था। जबकि ये भारतीय घरों में वो पवित्र स्थान बनाया गया था जहाॅ से आयुर्वेद चालू किया गया था। ये कोई समझना भी नहीं चाहता और समझाओं तो अपने आप को पिछड़ा समझता है। ऑनलाइन शिक्षा या रसोई या मोबाईल के सभी टाॅवर तब तक ही चल सकते हैं जब तक कि प्रकृति अपने को स्वस्थ करने की पुनः योजना को स्वरूप नहीं दे सकती है क्योंकि सब कुछ बिजली से चलाया जा रहा है जबकि 1897 तक भारत में बिजली नहीं है और सारे कार्य हो रहे हैं वर्तन भी बनते हैं और मशीनें भी चल रही हैं बस फर्क इतना है कि प्रकृति के साथ हो रहा है। बढ़ती बेरोजगारी का मुख्य कारण ही विकास है अब आॅनलाइन शिक्षा व्यवस्था में, जो आज शिक्षक बेरोजगार हुआ है वो तो कम है परन्तु कल पढ़ने लिखने के बाद जो बच्चा अपना खर्चा, छोटे बच्चों को पढ़ाकर निकाल लेता था वो सब बन्द हो जायेगा और शिक्षा व्यवस्था में भी बेरोजगारी बहुत ज्यादा खड़ी हो जायेगी। पूरी दुनिया में सारे देश अपने व्यापार की व्यवस्था ऐसे ही चलाते है जिससे सब को काम मिले परन्तु भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाॅ पर बेरोजगारी बढ़ाने वाला प्रयास कर विकास किया जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था जीवन का आधार है इसके एक भी प्रयोग नहीं किये जा सकते हैं इसी शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा पर ले जाकर पुनः चाणक्य ने पूरे राज्य की व्यवस्था को ठीक किया था परन्तु आज जो कुछ हो रहा है वो तो वैसा ही व्यापक रूप रखता चला जा रहा है और चिन्ता सिर्फ विकास की है। आज का नवयुवक-नवयवुती फिल्मी कलाकार को देखकर कपडे पहनता है और बाल बनाता है जबकि महान व्यक्ति की तरफ दिखाकर उसे सिर्फ घृणा दिखाई जाती है। अहिन्सा को डरपोक बताया जा रहा है और सूर्य की गति से त्यौहार को अन्धविश्वास बताकर, चैत्र मास में वायरस फैला दिया जाता है। ये कैसा व्यवहार है ? अहिन्सा डरपोक करता है या फिर वायरस का डर बिठाकर डरपोक बनाया जा रहा है। अहिन्सा यदि डरपोक का काम होता तो महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी ने क्यों अहिन्सा पर जोर दिया ? क्योंकि अहिन्सा सूर्य की गति के अनुसार धर्म के दस लक्षण में से एक लक्षण है। आज का विज्ञान भी कहता है कि दो तरह के जीव होते हैं एक मित्र जीव, दूसरा शत्रु जीव। हिन्सा के कारण ही शत्रु जीव का जन्म होता है जिसे वायरस का नाम दिया गया है। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था कभी सफल नहीं होगी बस होगा इतना कि हजारो करोड़ रूपये खर्च करके पुनः वासुधैव कुटुम्बकम् की भावना की तरफ लौटना ही पड़ेगा। सोशल डिस्टिेंसिग से काम चलने वाला तो नहीं है और अगर चल सकता है तो पहले भारतीय शास्त्रों को समाप्त कर देना चाहिए जो धीरे धीेरे समाप्त किये जा रहे हैं उसको छोड़कर पूरी तरह से पश्चिमी सभ्यता को अपना लेना चाहिए और हर घर में, हर बालक के हाथ में, एक रिवाल्वर दे देनी चाहिए आत्म रक्षा का नाम देकर। ये काम बहुत धीमे धीमे किया जा रहा है। दोनों में एक पंथ को पकड़ कर अपना अपने अन्तिम समाज के दर्शन को तैयार हो जाना चाहिए। परन्तु ये बात भली-भाॅति समझ लेनी चाहए कि सनातन धर्म के चार चरण और दस लक्षण बताये गये हैं जो उनको अपनायेंगा वो धार्मिक कहलायेगा और उसका अहित कभी नहीं हो सकता है क्योंकि वो ही है जो सूर्य की गति को समझ लेगा। सूर्य की गति के साथ चलने का अर्थ है काल को जान लेना और जो काल को जान लेता है उसकी रक्षा स्वयं महाकाल करते हैं।

अन्य ख़बरे

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.