सत्यम् लाइव, 24 मई 2020 दिल्ली।। पहले तो मैं यही जानता था कि हिन्दु सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा-आराधना होती हैै और उसको बाकी सब अन्धविश्वास कहते हैं पर ऐसा नहीं है धर्म-कर्म से पीछे हटता आज का कलयुगी मानव अपने ही शास्त्र को नहीं पढता है जी हॉ। कुरान में भी तुलसी का जिक्र है अरबी भाषा में रेहान अर्थात् तुलसी को इस्लाम में मुफीद और पाक बताया गया है। रेहान का अर्थ होता है ”जन्नत का पौधा”। कुछ विशेष व्यक्तियों द्वारा ज्ञात हुआ कि कुरान में 54 आयुर्वेदिक पौधों का वर्णन मिलता है। आज भी इजराइल में ”धार्मिक, सामाजिक, वैवाहिक और अन्य मांगलिक अवसरों पर तुलसी का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाता है। मलय द्वीप में, कब्रों पर तुलसी पूजन की प्रथा चली आ रही है जिसका वैज्ञानिक कारण बताते हैं कि मृतक के शरीर की सडन का दुष्प्रभाव वायुमण्डल में नहीं फैलने देता है। होम्योपैथी में ”मेटेरिया मेडेका” तुलसी रस ही है।

मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव डॉ तस्लीम रहमानी के अनुसार इस्लाम में एक शब्द है रेहान. इसके मायने हैं पवित्र पौधा। रेहान को हिंदी में तुलसी का पौधा कहते हैं। कुरान में भी इसकी खूबसूरती और खुशबू का जिक्र मिलता है। कुदरती तौर पर फायदेमंद होने की वजह से ये पौधा मुस्लिम घरों में भी लगाया जाता है। दुबई शहर में बेहद लोकप्रिय कुरान पार्क 29 मार्च 2019 को उद्घाटन हो चुका है और कुरान पार्क में जितने पौधों का वर्णन मिलता है उन सबको यहॉ पर लगाया गया है जिससे आने वाली पीढी को आयुर्वेद का ज्ञान हो सके। जिसमें से कुछ का वर्णन है तुलसी, अंगूर, अंजीर, लहसुन, लीक, प्याज, मकई, मसूर, गेहूं, सेम, अदरक, केले, अनार, जैतून, खरबूजे, चिमनी, तुलसी, कद्दू और खीरे के पौधे लगाए गए हैं। साल 2017 में RSS से जुड़ी संघ के मुस्लिम संगठन ”मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” ने कहा था कि कुरान में जिस जन्नत के पौधे के बारे में बात होती है, वो और कुछ नहीं, बल्कि असल में तुलसी का पौधा है। कुछ वक्त पहले इस मंच ने ये भी कहा था कि वो हर मुस्लिम के घर पर तुलसी का पौधा लगाने का अभियान चला सकता है। हिंदू में तुलसी के पौधे का बेहद खास महत्व है।
डॉ. एस. बालक का तुलसी पर कहना है कि इस्लाम में हजरत मोहम्मद साहब ने स्वयं रेहान अर्थात् तुलसी के औषाधियों गुुुुुुुणों का वर्णन किया। किसी भी पौधे के औषधि केे फायदेे को लेकर, कभी भी सम्प्रदाय के आधार पर नहीं बांटा जा सकता है। भले ही सम्प्रदाय और भाषा के अलग हो। कुरान में तुलसी का वर्णन दो स्थानों पर मिलता है। सूरह रहमान की 12वीं आयात में इसे धरती पर पाये जाने वाले अल्लाह की नेमतों कहा गया है। वहीं सूरह वाकिया की 89वीं आयात में इसका वर्णन ”जन्नत का पौधे” के रुप में हुआ है। ” अम्मा इन का-न मिनल मुकर्रर्बीन, फरौहुव-व रैहान व-व जन्नत नअइम।” अर्थात जो खुदा के निकटवर्ती हो जिसके खूशबू मात्र से मन प्रसन्न हो जाता है। वही रेहान या तुलसी है। हिन्दुस्तान में जब मुसलमानों का शासन कायम हो गया तो वैद्य का ही अरबी शब्द हकीम है। तुलसी, नीम, पीपल, अकोन इत्यादि पुरानी औषधिया हैंं। सेनाओं के छावनी में, ज्वरनाशक के लिये रेेहान का प्रयोग मुगलकाल में मिलता है। इसके बीज, तना, पत्तियों और खुशबुओं को अलग-अलग बीमारियों में प्रयोग किया जाता था। कई युग आये और गये, पर तुलसा का औषधीय गुण, आज भी कायम है। आज भी वायरस इन्फेक्शन के चेचक और पीलिया, हैजा आदि की बीमारी के उपचार के लिये, मौलवी और पंडित, नीम और तुलसी के पत्ते का प्रयोग ज्यादा करते है। आज धर्म कहकर सम्प्रदाय के आधार पर राजनीति की जा रही है। ऐसे में तुलसी को धार्मिकता के चश्मे से देखना उचित नहीं है। इनके औषधीय गुण को बिना भेदभाव किये लोगों के कल्याणार्थ के लिये उपयोग किया जाना जरुरी है।

डॉ. एस. बालक यहां तुलसी के पौधे से जोड़ते हुए कई आध्यात्मिक बातों और घटनाओं का हवाला दिया जाता है कि भगवान विष्णु को तुलसी प्रिया है किसी भी देवी-देवता को भोग चढ़ाते हुए तुलसी की पत्तियां डाली जाती हैं इससे प्रसाद पूर्ण माना जाता है इसके सेहत से जुड़े फायदे भी बताए गए हैं। सर्दी-खांसी और मौसमी बुखार में तुलसी के पत्तों का सेवन काफी फायदेमंद होता है।
तुलसी शक्ति वर्धक है:
- 20 ग्राम बीजचूर्ण मेें 40 ग्राम मिश्री महीन पीसकर 1 ग्राम शीत ऋतु में सेवन करने से कफ रोगों से बचाव होता है।
- धातु दुर्बलता में 1 ग्राम तुलसी का बीज, देशी गाय के दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
- गठिया के दर्द के तुलसी के पंचाग का चूर्ण 3 ग्राम सुबह, शाम देशी गाय के दूध के साथ।
- सियाटिका होने पर तुलसी क्वाथ का पीड़ाग्रस्त वात नाड़ी पर बफारा दें, काली तुलसी ज्यादा उपयोगी है न मिलने पर सफेद का उपयोग करें।
- ऊध्र्वगत वात, अस्थिगतवात, संधिवात तथा पारद दोष जनित विकारों में तुलसी का पंचाग का बफारा उपयोगी है।
- अपच में तुलसी की मंजरी को पीसकर नमक के साथ लेना चाहिए।
- तुलसी पत्र मंजरी सहित 50 ग्राम, अदरक 25 ग्राम, कालीमिर्च 15 ग्राम, 1/2 लीटर पानी में डालकर उबालें जब पानी एक चैथाई रह जाये तो तब 10 ग्राम इलायची बीज महीन पीसकर डालें साथ ही 200 ग्राम धागे वाली मिश्री डालकर पकायें। अब चाशनी तैयार हो गयी है। इसको एक चम्मच बच्चें को, दो चम्मच बडों को सेवन करके खाॅसी, श्वाॅस, काली खांसी, पुरानी खाॅसी, कुक्कुर खांसी गले की खराश आदि समाप्त करती है। जुकाम या दमा में गर्म पानी के साथ ले सकते हैं।
- तुलसी की मंजरी, सौंठ, प्याज का रस और शहद मिलाकर भी सुखी खाॅसी और बच्चों का दमा ठीक होता है।
ज्वर :-
- तुलसी का पौधा छूकर जो वायु चारों ओर फैलती है उससे मलेरिया का मच्छर स्वयं भाग जाते हैं इसके पश्चात् यदि मलेरिया हो ही जाता है तो तुलसी के पत्रों का क्वाथ बनाकर तीन-तीन घंटे के अन्तर से सेवन करायें।
- आंत्र ज्वर मेें तुलसी पत्र 10 पत्ते, जावित्री 1 ग्राम पीसकर शहद के साथ चटायें।
- काली तुलसी, वन तुलसी तथा पोदीना का बराबर स्वरस लेकर सुबह, दोपहर, शाम 3 दिन या फिर 7 दिन तक पिलाने से आंत्र ज्वर समाप्त हो जाता है।
- साधारण ज्वर में श्वेत, जीरा, छोटी पीपल तथा शक्कर, चारों को कूटकर प्रात-सायं देने से लाभ होता है।
- कफ प्रधान ज्वर में 5 लौंग, आधा ग्राम रस, 21 तुलसी दल लेकर पीसकर गर्म करे फिर इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर पिलायें।
- सफेद दाग झांईः तुलसी की जड़ को पीसकर सौंठ मिलाकर, जल के साथ लेने से दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है।
- तुलसी के नीचे की मिट्टी में तुलसी का रस घोलकर, उबटन की तरह प्रयोग करने से भी लाभ होता है।
- मिर्गी के रोगी को इस तुलसी दल या मंजरी रास्ते में जाते समय अपने साथ रखनी चाहिए। अपने समयानुसार उसे सूॅघने से ऐसी समस्या से राह में नहीं आती है, साथ ही यदि भोजन में चैलाई, बथूआ, पालक के साथ हल्का भोजन करें और सर्पगन्धा घनवटी का सेवन करे तो इस समस्या से निजात मिल जाती है।
- कान में दर्द होने पर तुलसी के पत्तों का रस कान में दो-चार बॅूद डालते ही राहत मिल जाती है यदि सुनाई कम देता है तो भी इस क्रिया को अपना सकते हैं।
- स्वरभंग होने पर तुलसी की जड़ को मुलेठी के तरह चुसते रहने से लाभ हो जाता है।
- तुलसी दल चबाने से दाँतों में कीड़ा नहीं लगता है।
- सूर्य-चन्द्र ग्रहण के समय भोज्य पदार्थ में तुलसी दल डाले जाने का वैज्ञानिक कारण है कि सौर मण्डल की विनाशक गैसों से खाद्यान्न दूषित नहीं होता।
- जीरे की जगह पुलाव आदि में तुलसी दल डलने से उसकी पाैिष्टकता और महक बढ़ जाती है।
- तुलसी का आध्यात्मिक आधारः-
- तुलसी रस के उपयोग से तन-बदन निरोगी रहता है साथ मस्तिष्क को भी शान्त कर स्वभाव से सात्विक बना देता है।
- तुलसी के सामने रहकर, ध्यान लगाने से ध्यान अच्छा लगता है इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि तुलसी के पास रहकर पढ़ने, विचारने, दीप जलाने या पौधे की परिक्रमा करने से दसो इन्द्रियाॅ के विकार दूर हो जाते हैं।
- तुलसी की माला, कंठी, गजरा और करधनी पहननने से मन निर्मल, रोगमुक्त तथा सात्विक धारणा बनाता है।
- तुलसी का कार्तिक माह में पूजन करने से, उसके पास रहने से और प्रसाद के रूप में सेवन करने से साल-भर तक बीमारी नहीं आती हैं। कार्तिक माह में तुलसी दल या पान एक ही चीज खानी होती है।
- तुलसी सेवन के बाद 1 घंटे तक दूध पीने से चर्म रोग होने का डर रहता है।
- तुलसी को अंधेरे में तोड़ने से शरीर में विकार आता है इसका कारण बताते हैं क्योंकि इसकी विद्युत तरगं प्रखर हो जाती हैं।
- तुलसी को माता का दर्जा प्राप्त है तो फिर ऐसा कोई रोग नहीं है जो इससे माता से बच के जा सकता है तुलसी माता ‘‘नारी के रोगों पर भी गुणकारी है स्तन-पीड़ा, भगोष्ठ-वेदना, सीने में तनाव, खुजली, भारीपन, मूत्र संस्थान, प्रजनन संस्थान के रोग पर भी अत्यन्त उपयोगी है। तुलसी का तेल टीवी के रोगों को मारने में सझम है।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल