क्रांन्तिवीराेें के वशंज, मजबूर है दो वक्‍त की रोटी के लिए- राजीव दीक्षित

सत्‍यम् लाइव, 15 अगस्‍त 2020, नई दिल्‍ली।। आज पूरा देेेेश 74वेें स्‍वतंत्रता दिवस का जश्‍न मना रहा है, ताेे वहीं इस आजादी की लडाई मेें अपनी जान की कुर्बानी देने वाले क्रांन्तिवीराेें के वशंज दो वक्‍त की राोटी के लिए हर दिन जददाजहद कर रहें है । अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले शहीद के कुछ वशंज जहां दैनिक मजदूरी कर अपना पेट भर रहे हैं, तो कुछ सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हैं। 1857 के विद्रोह के नायकों में से एक तात्या टोपे के वंशज के बारे में, स्‍वर्गीय राजीव दीक्षित बताते हैैंं की एक दिन वह कानपुुुर रेलवे स्‍टेेेेेशन से बाहर शहर की तरफ जानें के लिए बाहर की तरफ आ रहे थे । वह उस समय भारत स्‍वाभिमान के कार्य से कानपुर गयेे तो बताते हैं की जैसे मैंं जीेने उतर कर प्‍लेट फार्म नम्‍बर 8 से बाहर निकला तो वहॉ पर एक चाय की छोटी सी दुकान थी जिसमेें एक बच्‍ची और एक बच्‍चा, अपनी मां से बात कर रहे थे। वह बच्‍ची अपनी मां से कहती कि मां हम गरीब क्‍याेें है? जैसे ही यह शब्‍द मेरे कान में पडे, मैंं रूक गया अपने मन में सोचा यह साधारण परिवार नहीं है, जरूर कुछ बात है। श्री राजीव दीक्षित जी उस दुकान पर गये और पूूूूछा आप लोग कौन हो? ताेे उन्‍होंने जवाब दिया हम तात्‍या टोपे के वशंज है। राजीव जी कहते हैं मैं स्‍तब्‍ध रह गया। कि यह हाल है हमारे क्रांंतिवीरों के वशंजाेे का। हर दिन दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने को मजबूर हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के 73 से अधिक नायकों के वंशजों पर कई किताब लिख चुके पूर्व पत्रकार शिवनाथ झा का कहना है कि मैंने तात्या के पड़ पोते विनायक राव टोपे को बिठूर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हुए देखा है। जलियांवाला बाग नरसंहर का बदला लेने के लिए उधम सिंह 1940 में लंदन गए और पंजाब के तत्कालीन उपराज्यपाल माइकल ओडायर की हत्या कर दी। इस घटना ने अंग्रेजों की नींव हिलाकर रख दी लेकिन आज उधम सिंह के भांजे के बेटे जीत सिंह पंजाब के संगरूस जिले में दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं। इसी तरह स्वतंत्रता की लड़ाई में फांसी के फंदे को प्यास से गले लगा लेने वाले शहीद सत्येंद्र नाथ के पड़पोते की पत्नी अनिता बोस की हालत भी बेहद खराब है। मिदनापुर में रहने वाली अनिता दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं। बता दें कि सत्येंद्र नाथ और खुदीराम बोस अलीपुर बम कांड में शामिल थे। दोनों को 1908 में फांसी दे दी गई थी। जिस समय अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा दी उस वक्त सत्येंद्र नाथ केवल 26 वर्ष के थे और खुदीराम महज 18 साल के थे।

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मंसूर आलम

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