डा. एस. बालक जी का कहना है कि ”तुलसी प्राकृतिक एंटीवायरस पौधा है। जिस घर के आसपास तुलसी का पौधा हो घर के लोगों को वायरल इनफेक्शन होने का खतरा काफी कम रहता है। प्राचीन काल से ही वायरल डिजीज में तुलसी के पत्ते का उपयोग किया जाता रहा है।”
भारत देश की परम्परा को समझने का, एक अवसर तब प्राप्त होता है। रूढ़वादी और अन्धविश्वास! आज जिसे कहा जा रहा है उसे आज की आवश्यकताओं से, तुलनात्मक अध्ययन अपने शास्त्रों के अनुसार करें। ऐसे ही कई विषयों पर अध्ययन करने का अवसर भगवान ने मुझे दिया। अत्यन्त उपयोगी, प्रकृति की धरोहर के रूप में, जो सम्पदा, पूरे विश्व में, जो भारत माता की चरणों में है उसका सूक्ष्म ज्ञान ही, जीवन को सार्थकता बनाने के लिये पर्याप्त है। ऐसी उपयोगिता विशेषतया नीम और तुलसी पर विशेष वर्णन करने का मन बना क्योंकि आज इनकी आवश्कता भी है। तो पहले तुलसी पर बात करेंगे फिर कभी नीम की ज्यादा से ज्यादा उपयोगिता बताने का प्रयास करेगें और सभी से यही प्रार्थना है कि आयुर्वेद अध्ययनरत रहें।
तुलसा माता अपना स्वरूप रखकर भारत की भूमि पर उपस्थिति हैं श्यामा तुलसी, रामा तुलसी, मरूता तुलसी, दवना तुलसी, कुढेरक तुलसी, अर्जक तुलसी, षटपत्र तुलसी मानी जाती हैं। श्यामा तुलसी, और रामा तुलसी अधिकांश घरों में पायी जाती हैं इन दोनों में भी श्यामा तुलसी की उपयोगिता अधिक बताई गयी है परन्तु रामा की उपयोगिता भी कम नहीं है। सर्वरोग निवारक जीवनीय शक्ति वर्धक, के रूप में स्वयं देवी माँ हमारे बीच उत्पन्न हुई थीं ऐसा हमारे ऋषिगण ने कहा है। तुलसी का पौधा 2-4 फीट ऊँचा होता है 6-8 इंच लम्बी मंजरी उगती हैं। बीज गोलाकार, चिकना तथा भूरे एवं काले रंग के होते हैं। पाँच अमृतों में गौ-मूत्र, गौ-दुग्ध, गंगाजल, तुलसीदल तथा शहद बताया गया है।
तुलसी का माता सीता ने भी उपयोग सीखाया:- श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के साथ श्रीराम के सम्पूर्ण भारत में श्रीराम के चरण कहाॅ कहाॅ पडे इस विषय पर कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वनवासी श्रीराम, माता सीता और लखन लाल पूरे समय कुछ आवश्यक कार्य धरती पर कराये जैसे राक्षसों से डरे सहमे किसानों को, राम और लखन ने कहीं पर किसानों को हल चलाना सीखाया तो कहीं पर माता सीता ने महिलाओं को अपने परिवार को स्वस्थ रखने के भोजन बनाने की कला सीखती थीं ये शब्द माता कैकयी के माता सीता के लिये हैं कि ‘‘मेरे सीता से अच्छी रसोई कोई नहीं बना सकता।’’ कहते हैं वन में माता अपने साथ तुलसी के बीज अवश्य रखती थीं। इस विषय पर काम आगे किया तो पता चला कि छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक क्षेत्र है जिसे बगीचा के नाम से जानते हैं इस पूरे क्षेत्र में तुलसा के पौधे बहुत हैं। जब माता सीता, श्रीराम और लखन लाल के साथ यहाॅ पहॅुचती हैं तो पता चलता है कि इस पूरे क्षेत्र में इस समय मलेरिया बहुत फैला हुआ है तब माता सीता ने, इस क्षेत्र की महिलाओं को तुलसी का काढा बनाना सीखाया और पूरे क्षेत्र में तुलसा के पौधे का रोपण कराया तथा पूजा पाठ के साथ, औषधि का उपयोग भी बताया आज भी इस क्षेत्र का नाम बगीचा इसी कारण से है। ऐसे ही तुलसा के जब पर्यायवाची देखे तो कायास्था- त्वचा रोग को समाप्त करने वाली, तीव्रा- तुरन्त परिणाम देने वाली, देव दुन्दुभि – देवी गुणों वाली, दैत्यघ्नि – कीटाणु को नाश करने वाली, पावनी – मन, वाणी और कर्म को स्वस्थ करने वाली, सरला – आसानी से प्राप्त होने वाली तथा सुरसा – लालारस अर्थात् मुँह की लार। सुरसा के नाम से याद आता है कि ‘‘जस-जस सुरसा बदन बढावा, तासि दून कपि रूप दिखावा।’’ और फिर हनुमान जी सुरसा के मुँह में प्रवेश करते हैं और वापस आकर विदाई माॅगते हैं तब सुरसा वरदान देती हैं जाओ! रावण की लंका से अजेय होकर लौटो।
गुण धर्मः- सर्वोषधि रसेनैव पुरा आमृत-मंथने, सर्वसत्वोपकाराय विष्णुना तुलसी कृता।
अर्थात् वाणी (मुख, कण्ठ, दाँत, मसूढ़े, श्वास-नली और फेफड़े), मन (हृदय, मस्तिष्क, स्नायुमंडल) और काया (पाँव के अंगूठे से सिर के बालों तक) को तुलसी निरोगी, पवित्र, सात्विक और निर्मूल बनाती है) आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य में आचार्य बालकृष्ण जी ने लिखा है कि कफवात शामक, जन्तध्न, दुर्गन्ध नाशक, दीपन, पाचन, अनुलोमन, कृमिघ्न, कफघ्न, हृदयोत्तेजक, रक्तशोधक, स्वेदजनन, ज्वरघ्न व शोथहर है।
अकाल मृत्युहरणं सर्वव्याधि विनाशमनम् जिसका अर्थ है कि सारे रोगों को हर कर, तुलसा माता अकाल मृत्यु का हरण कर लेती हैं। इसको अर्थ सहित समझे तो ज्ञात होता है तुलसा का पौधा जिस आॅगन में खडा होता है वहाॅ पर मलेरिया का मच्छर नहीं आता। तुलसा के का रस खटमल हुए जिस चारपाई पर डाल दिया जाता है उस चारपाई से खटमल छोडकर चले जाते हैं। एक कहावत प्रसिद्ध है कि ‘‘तुलसी से यमदूत भी भाग जाते हैं।‘‘ ये कहावत बताती है कि सिर्फ खटमल ही नहीं बल्कि साँप, जहरीले मच्छर, बिच्छू और सारे विषैल जीव उस स्थान को छोड देते हैं जिस स्थल पर तुलसा माता का वास होता है। शरीर की व्याधि के बारे में कहा गया है कि तुलसा माता के दर्शन मात्र से रोगों का नाश होता है। इसकी सुगन्ध हवा के साथ घोलकर दसों दिशाओं को पवित्र करके कवच का निर्माण कर देती है जिससे कोई भी कीटाणु आपके अगल-बगल प्रवेश नहीं कर पाता। तुलसी के मंजरी का जादू ऐसा चलता है कि उसे अंग से स्पर्श मात्र करा देने से या फिर मंजरी को भिगोकर बदन पर छीटें देने से, उस व्यक्ति के शरीर के अगल-बगल सुरक्षा कवच निर्मित हो जाता हैै। पद्यपुराण के हिसाब से ‘‘सम्पूर्ण विश्व के फूलों और पत्तों के रस से कहीं अधिक उपयोगी है तुलसी के पत्तों का रस।’’ और जैसे नदियों में सर्वश्रेष्ठ है गंगा वैसे ही पौधों में तुलसी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। कहते हैं कि तुलसी में इतनी शक्ति है कि पूरे शरीर का कवच बन जाती है। तुलसी की माला या गजरे के रूप चेहरे से हृदय तक, करधनी के रूप में कमर, जिगर, आमाशय तथा गुप्त रोग या कलावा के रूप में नब्ज को स्वस्थ बना देती है इसी वैज्ञानिकता के कारण तुलसी पहने का रिवाज था। वो रक्त संचार में आयी रूकावट को समाप्त कर देती है।
पत्रं पुष्पं फलं त्वक् स्कन्ध संज्ञितम्, तुलसी सम्भवं सर्वं पावनं मृत्तिकादिकम्।।
‘‘तुलसी के पत्र, पुष्प, फल, जड, छाल, तना, पौधे के तल की मिट्टी सभी पवित्र और सेवनीय हैं।’’ इस विषय पर जब औरेरूये जिले के सौधेमऊ निवासी पं. सुरेन्द्र तिवारी जी से जब तुलसी की महिमा को लेकर वत्र्ता हुई तो पं. तिवारी जी का कथन था कि तुलसी के पौधे की उपयोगिता तब और कार्यशक्ति तब और बढ़ जाती जब वो गमले की जगह मिट्टी में लागई जाती है क्योंकि तुलसी की जड़ें जो शक्ति गमले की मिट्टी को देती है उसकी एक सीमा होती है परन्तु जमीन पर लगी तुलसा अपनी शक्ति जहाँ तक फैला सकती है वहाँ तक वो कोई भी विषैला जीव को प्रवेश नहीं करने देती। इसके साथ ही उस मिट्टी की उपयोगिता इतनी बढ़ जाती है कि कुष्ठ रोगी भी उस मिट्टी से ठीक हो सकता है। त्वचा रोग के रूप में सफेद दाग जो आते हैं उसके लिये वैद्य ओम प्रकाश पाण्डेय जी का कथन कि इसका मुख्य कारण प्याज और दूध का एक साथ इस्तेमाल है कहने का अर्थ ये हुआ कि प्याज पड़ी सब्जी खा ली फिर दूध पी लिया या साथ में पनीर की सब्जी भी खा ली सफेद दाग कैल्शियम की कमी से होते हैं। वैद्यराज सुनील शर्मा जी घर के वैद्य में लिखते हैं कि सफेद दाग, कुष्ठ रोग से प्रारम्भ होते हैं और इनको आसानी से रोक जा सकता है मात्र तुलसा के पौधे को रोपकर और दूध से बने किसी भी भोज्य पदार्थ के साथ, प्याज नहीं खाना होता है साथ ही तुलसा के नीेचे की मिट्टी से शरीर पर लेप करें, साथ ही तुलसा के पत्ते को सूखाकर उसका पाउडर बनाकर एक चम्मच तीनों समय लेने मात्र से ये चर्म रोग ठीक हो जाता है।
आज नोवेल कोरोना की महामारी पर भारतीय पौधों पर बात करने पर डा. एस. बालक जी का कहना है कि ”तुलसी प्राकृतिक एंटीवायरस पौधा है। जिस घर के आसपास तुलसी का पौधा हो घर के लोगों को वायरल वायरल इनफेक्शन होने का खतरा काफी कम रहता है। प्राचीन काल से ही वायरल डिजीज में तुलसी के पत्ते का उपयोग किया जाता रहा है। आज भी जब हम वायरल इन्फेक्शन के चपेट में आता हूँ तो तुलसी पत्ता का काढा बनाकर पीता हूँ। रामवाण की तरह फायदा पहुंचाता है। कोरोना वायरस के इलाज में तुलसी पत्ता पर काम किया जा सकता है। पर घर की मुर्गी दाल बराबर वाला मुहावरे तो सुनें होंगे आप।”
रोपनात् पालनान् सेकान दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम।
तुलसी दहाय्ते पाप वाढुमतः काय सञ्चितम।।
बात सत्य हैं कि हर ऑगन में शोभा पाती तुलसी हर घर पूजी जाती अब आप कहोगें कि हिन्दु के अलावा कोई नहीं मानता है तो ईसाइ भी इसे मानते हैं और मुस्लिम तो कुरान में रेहान नामक शब्द है जिसके लिये लिखा है कि ”जन्नत का पौधा” है येे तुलसी ही है। ये सभी सम्प्रदाय में अपनी जगह सिर्फ इसलिये बना पायी कि क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं जिसका समाधान इसके पास न हो। रोग सहित इलाज वैद्य राजवीर जी तथा आयुर्वेद की पुस्तकों से निदान चिकित्सा पर शेष भाग
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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