
सूर्य ग्रहण के काल में कुछ भी खाना पीना वर्जित किया गया है क्योंकि मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने का कार्य स्वयं सूर्य देव करते हैं और चन्द्र ग्रहण के लिये स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतिनिधित्व चन्द्र देव ही करतेे हैं।
सत्यम् लाइव, 20 जून 2020, दिल्ली।। एक तरफ भारतीय संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने वाले लगे हुए है तो दूसरी तरफ सूर्य की गति से प्राप्त संस्कृति को बचाने के लिये प्राण तक निछावर करने वाले तैयार बैठे हैं। इस सनातन संस्कृति का जन्म ही सूर्य सहित समस्त ग्रहों की गति के अनुसार किया गया था। इस सम्बन्ध में पूरेे आयुर्वेद की रचना की गयी जिसमें ये सिद्ध किया गया कि मानव शरीर के अन्दर समस्त ग्रह अपने प्रभाव के द्वारा, शरीर को क्षति पहुॅचाते रहते हैं यदि हम सब सूर्य की गति को समझ लें तो एक भी रोग आपके शरीर में आने नहीं पायेगा। सूर्य के बारे में, आज तक किसी शास्त्र में वर्णन नहीं मिलता है। हिन्दु शास्त्रों में सूर्य की गति से ही सारे त्यौहार बनाये गये हैं जबकि मुस्लिम में चॉद की गति से सारे त्यौहार बनाये गये हैं। वैज्ञानिकता के माया जाल में फंसा आज हिन्दु भारतीय शास्त्रों में कहीं भी वैज्ञानिकता नहीं देखता है। सूर्य ही पूरे संसार का पालनहार है जिसे कई जगह पर हमारे ऋषियों-मुनियों ने भगवान विष्णु की उपमा दी है। पालनहार सूर्य देव पर जब ग्रहण लगे तो उसे वैज्ञानिक कहा जाये या अवैज्ञानिक, ये प्रश्न विशेषतया उठता है। इस संन्दर्भ मेें जब सूर्य के बारे में भारतीय शास्त्रों को देखना प्रारम्भ किया तो आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही लिखा है कि लगद मुनि के दिये गये श्लोक का वर्णन करते हुए लिखा है कि

इसका जब पूरा विशलेषण किया तो ज्ञात हुआ कि भास्काराचार्य जी ने वेदों के छ: अंग का वर्णन किया है उसमें ज्योतिष शास्त्र को वेदों की ऑखें कहा है और बिना ऑखों के सब कुछ अन्धकार ही रहता है इसी आर्यभट्ट के ग्रन्थ में जब आगे पढा तो ज्ञात हुआ कि सूर्य मेष राशि पर जब आता है तब नववर्ष का आगमन होता है साथ हर राशि पर 30 डिग्री अर्थात् 30 दिन तक रहता है इसी क्रम में 60 डिग्री से 90 डिग्री तक वृषभ राशि पर और फिर 90 डिग्री से 120 डिग्री तक मिथुन राशि में रहता है। इसी मिथुन राशि पर भ्रमण करते हुए यह सूर्य ग्रहण पड रहा है इसी कारण से मिथुन राशि पर कहा जा रहा है।

एक बात आज के वैज्ञानिक जोर जोर सेे कहते हैं कि सूर्य ग्रहण पर कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती ये सब अन्धविश्वास है। इस विषय को जानने के लिये भारतीय शास्त्रों को देखना पडेगा कि क्योंकि कहा गया है कि ये बाधा कहा गया है। आज जो विज्ञान भारत में पढाया जा रहा है वो सब यूरोप से सत्यापित होकर आ रहा है जहॉ पर सूर्य की रोशनी ही नहीं है और जहॉ पर सूर्य कम होगा वहॉ का विज्ञान दूसरा होगा, उनकी संस्कृति दूसरी होगी, उनकी सभ्यता का आधार ही बदल जायेगा। जैसे कोट पहनना उनकी मजबूरी हैै ये विकास की पहचान नहीं है। सूर्य की कमी केे कारण उस क्षेत्र में मौसम ठण्डा ही रहने वाला है और जब सूर्य निकलता ही नहीं तो वो उस पर रिसर्च कैसे करेगें? इसी कारण से भारतीय शास्त्रों में हमारे त्यौहार तक सूर्य की गति को देखकर बनाये गये हैं। दूसरी बात सूर्य की गति से ही भारत देश कृषि प्रधान देश है साथ ही उतने ही खनिज पदार्थ धरती माता अपने उदर से हम सबको उपलब्ध कराती है इसका कारण भी सूर्य की सुनिश्चित गति है। उसके बीच में अगर कोई अवरूद्व आ जाये तो समझ लेना चाहिए कि धरती माता उस समय नहीं फल-फूल रही हैं तो इसे अवनति ही कहा जायेगा और इसी कारण से महान गणितज्ञ जी ने सूर्य ग्रहण को अवनति कहा है परन्तु आज इसी को अन्धविश्वास बताकर वैज्ञानिक तर्क देने लगते हैं। पश्चिमी देश को उसे वैज्ञानिक आधार मान लिया है और अपने ऋषियों -मुनियों को तर्कहीन बताने लगे हैं वो भी बिना समझे।

सूर्य ग्रहण के समय देशी गौ का घी को स्पर्श करना या सूर्य ग्रहण के बाद खाने का सिद्धान्त बताया गया है साथ ही सूर्य ग्रहण के काल में कुछ भी खाना पीना वर्जित किया गया है क्योंकि मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने का कार्य स्वयं सूर्य देव करते हैं और चन्द्र ग्रहण के लिये स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतिनिधित्व चन्द्र देव ही करता है। सूर्य ग्रहण के 12 घण्टे पूर्व से भोजन को वर्जित बताया है परन्तु बालक, वृृृद्ध और रोगी को 4 घण्टे पूर्व कुछ ले सकते हैं। सभी भोज्य पदार्थ में कुश या तुलसी की पत्ती डाल देने से अवनति के समय जो कीटाणु उत्पन्न होते हैं उन सबसे हमारा शरीर सुरक्षित हो जाता है। पक्का हुआ अन्न नहीं खाना चाहिए। 21 जून 2020 को होने वाले सूर्य ग्रहण के बारे मेें बताया है कि इसमें 16,000 मंत्र निरन्तर जाप करने से मेघाशक्ति, कवित्व शक्ति तथा वाक् सिद्धि की प्राप्त होती है। ग्रहण पूरा होने के बाद वस्त्र सहित गंगा जल से स्नान करना चाहिए और ग्रहण-काल में जिस वस्तु का स्पर्श किया हो, उसे बाद में अथवा उसी समय धो लेना चाहिए जैसे आज कोरोना महामारी में धो रहे हैं। भगवान वेदव्यास जी कहते हैं कि सूर्यग्रहण के समय जप करने से 10 लाख गुना फल होता है और यदि गंगाजल पास में रख कर जप किया जाए तो 10 करोड़ गुना फल होता है। ग्रहण के समय यदि मंत्र-जप ना करें तो मंत्र मलिनता को प्राप्त होता है। साधकों को सलाह दी जाती है कि सूर्यग्रहण के प्रकोप से बचने के लिए मन को शान्ति करें और ईश्वर-प्राप्ति का उद्देश्य बना ले, तो उनके लिए आने वाला समय सुखदायक होगा। बच्चों को ग्रहण-काल में मोबाइल और इन्टरनेट से प्रयत्नपूर्वक दूर रखें। मोबाइल का उपयोग बड़ो को भी गंदे-शौचालय की तरह करना हितकर है। आप सब भी टीवी न देखें। चूड़ामणि योग में मंत्र जाप अवश्य करेंं। मन को शान्त करें। ग्रहण के बाद गौ माता के देशी घी का पान सभी को करायें। ग्रहण के समय नीच कर्मों के विचार तक मन में न आने दें। ग्रहण के समय ब्रह्मज्ञानी संत का सत्संग सुनाएं सुने। ग्रहण के समय उपयोग में आने वाली चीजों पर गंगाजल अवश्य डालें।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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