भोजन खुले मिट्टी केे वर्तन मेें बनाया जाये तो 18 पोषक तत्व पूरे उपलब्ध रहते हैं इसका अर्थ ये हुआ कि एक भी रोग आपकेे शरीर आने वाले नहीं हैं और साथ में स्वादिष्ट भोजन तैयार होता है जब शरीर में 18 पोषक तत्व उपलब्ध रहेगें तो एक भी कीटाणु आपकेे पास आने वाला नहीं।
सत्यम् लाइव, 19 अप्रैल 2020, दिल्ली।। भारतीय शास्त्र में पंचतत्व के वर्णन से भरा पडा है इन पंचतत्वों के वर्णन को समझना आज के समय में बहुत परन्तु तुलसीदास जी ने तो श्रीराम चरित मानस में क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा। वैसे तो अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं अर्थात् सम्पूर्ण सृृष्टि के कणकण में भगवान व्याप्त होकर हमारी रक्षा करता है फिर हमको समझानेे के लिये सरलता पूर्ण ईश्वर का वर्णन पॉच तत्वों में किया है पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु इन्हीं पॉच तत्वों से शरीर बना हुआ है। सम्पूर्ण शरीर का आधार पृथ्वी तत्व है क्योंकि पृथ्वी तत्व शरीर के ठोस भाग को कहते हैं। अर्थात् सम्पूर्ण त्वचा या काया तथा हड्डी ये सब पृथ्वी तत्व है और सम्पूर्ण पृथ्वी पर मिट्टी है इस मिट्टी की उपयोगिता, भारत की भूमि तब और बढ जाती है जब ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण विश्व में भारत की मिट्टी जैसी किसी देश की मिट्टी उपजाऊ नहीं है। तब मिट्टी की कीमत और उपयोगी लगने लगती है जब ये ज्ञात होता है कि भोजन से लेकर शरीर की त्वचा के लिये कई प्रकार की मिट्टी भारत में होती है। काली मिट्टी और मुल्तानी मिट्टी के उपयोग करके तो आप सब कई सारे त्वचा के रोगों को समाप्त कर सकते हो। जल जाने पर मुल्तानी मिट्टी का लेप उस शरीर के अंग मेें लगा लेने से, जले अंग में जलन और फफोले नहीं पडते हैं। मिट्टी से प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है।

यूॅ ही भारत भूमि को माता का दर्जा, हमारे ऋषियों मुनियों ने नहीं दिया बल्कि उसके पीछे बहुत बडा वैज्ञानिक कारण है। भारतीय वैज्ञानिक श्री राजीव दीक्षित जी ने परीक्षण करके बताया कि मिट्टी की वर्तन में खाना बनाकर खाने से कई सारे रोग स्वत: ही ठीक हो जाते हैं और नये रोग आते ही नहीं है। भोजन खुले मिट्टी केे वर्तन मेें बनाया जाये तो 18 पोषक तत्व पूरे उपलब्ध रहते हैं इसका अर्थ ये हुआ कि एक भी रोग आपकेे शरीर आने वाले नहीं हैं और साथ में स्वादिष्ट भोजन तैयार होता है जब शरीर में 18 पोषक तत्व उपलब्ध रहेगें तो एक भी कीटाणु आपकेे पास आने वाला नहीं।

महिला पंतजलि योग समिति की समस्तों वहनों ने राजीव भाई को सुनकर मिट्टी के के बर्तन का उपयोग प्रारम्भ किया है इसी समिति की श्रीमती सरिता सिंह कहती हैं कि आज की आम धारणा के विपरीत मिट्टी के बर्तनों में ऊष्मा को अवशोषित करने की क्षमता ज्यादा नहीं होती इसलिए ज्यादा गरम होने पर इनके टूटने का खतरा रहता है। धीमी आंच पर गैस को जलाकर हाण्डी को चढा देते है तो टूटने का डर समाप्त हो जाता है। आप इसे खाली कभी भी आग पर न चढायें। लगभग सभी महिला समिति की महिलाएं पिछले 9 सालों से हाण्डी में रोजाना दाल, चावल और सब्जी पकाती हूॅ। जब से मिट्टी की हाण्डी का भोजन प्रारम्भ किया है तब से शरीर हल्का सा महसूस होता है और शरीर में ऐसा लगता है जैसे नयी ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। भोजन को अधिक ताप में पकाने से और प्रेशर कुकर में पकाने से, जो समस्या थी वो राजीव भाई को सुनकर लगा कि अपनी गलती के कारण ही, रोग उत्पन्न हो रहे थे। 2000 रूपये खर्चा करके कुकर लेने से, कहीं ज्यादा अच्छा है साल भर में एक या दो बार 50-50 रूपये की हाण्डी खरीद ली जाये। मैं सभी सेे यही कहॅूूगी कि स्त्री अपनी रसोई से, सम्पूर्ण परिवार को निरोगी काया प्रदान कर के, अपने पति का तनाव कम कर देती है और अपने सुहाग की रक्षा की रक्षा करती है।
मिट्टी के बर्तन में बने भोजन खाने से बचत :-
- आयुर्वेद के अनुसार भोजन धीरे-धीरे पकने से 18 पोषक तत्व शरीर को मिलते हैं।
- सस्ते और आसानी से मिल जाते हैं मिट्टी के बर्तन अन्य वर्तन की अपेक्षा सस्ते होते हैं।
- भोजन में सौंधी सौंधी सी खुशबू आती हैं।
- मिट्टी के कुल्हड में डालकर चाय पीने से जो महक आती है उसी तरह से यदि सब्जी और दाल भी मिट्टी की कटोरी में डालकर खायी जाये तो स्वाद और बढ जाता है।
- स्वास्थ्य लाभ तो अतिरिक्त में गिना जा सकता है।
- आयुर्वेद के अुनसार खाना पकाते समय उसे हवा का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश मिलना जरूरी है।

अर्थशास्त्रीय भारतीय मिट्टी :-
इस मिट्टी के बारे में जब राजीव भाई के एक अनुयायी अर्थशास्त्र के शिक्षक आलम के पास पहुॅचा और मिट्टी से अर्थव्यवस्था पर इस मिट्टी की विशेषता जानना चाहा तो आलम से कहा कि इस मिट्टी की अद्भूत क्षमता के बारे में, भारत माता के पुत्र होकर, हम भारतीय से अच्छा भला, कौन जान सकता है? मेरे यहाॅ तो पुस्तैनी किसानी होती चली आ रही है आधुनिकता के दौर में, हम नवयुवक ने भले ही खेतों से कुछ दूरी बना ली है। पर, भारतीय मिट्टी पर जन्म लेेने के बाद, मिट्टी से जुड़वा तो खून में आ जाता है। मेरे पिता मोहम्मद मुस्तफा अंसारी, आज भी किसानी ही करते हैं। जब गाॅव जाना होता है तब मुझे उनके साथ किसानी में सहयोग करता हूॅ। पहले किसानी से मन हट सा गया था परन्तु जब से भारतीय वैज्ञानिक श्री राजीव दीक्षित को सुना और भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया तो ज्ञात हुआ कि भारत भूमि की मिट्टी तो सोना उगलती है। राजीव भाई के व्याख्यान को अपने पिता मोहम्मद मुस्तफा अंसारी को सुनाया तो उन्होंने बताया कि ‘‘सही कह रहे हैं राजीव भाई! इस मिट्टी को, दो व्यक्ति भली भाॅति पहचानते हैं एक तो किसान, जो मौसम के हिसाब से, इस मिट्टी को परिवर्तित होते हुए देख, फसल बोकर! भूमि को उपजाऊ बना देता है और दूसरा कुम्हार जिसके पास ईश्वर की हुई शक्ति है कि वो इस मिट्टी को एक नया आकार देकर पात्र के बनाना बेहतरीन तरीके से जानता है और मिट्टी को पहचानता है कि इस मिट्टी से पात्र बनेगा या नहीं।’’ मेरे पिता की एक विशेषता ये है कि वो मिट्टी को हाथ में लेकर बता देते हैं कि किस दिशा की हवा चल रही है। ये ज्ञान मुझे अभी तक पूरी तरह से समझ में नहीं आया, पर इसके लिये प्रयासरत हूॅ। मिट्टी पर एक कविता प्रसिद्ध है जो मेरे जीवन को बहुत प्रेरणा देती है चूॅकि मैं शिक्षक हूॅ इस कारण से, मैं अपने विद्यार्थी को अवश्य, इसका अर्थ बताता हूॅ जिससे इस मिट्टी की उपयोगिता आने वाली पीढ़ी को ज्ञात हो। मेरे ही प्रदेश के किसी कवि ने लिखा है कि-
हम मिट्टी के लोग हैं बाबू, मिट्टी ही सदा उड़ायेगें।
मिट्टी से सने, मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जायेगें।
जब आग लगेगी दुनिया में, तो मिट्टी से बुझायेगें।
जब भोजन दुनिया माॅगेगी, तो मिट्टी पर फसल उगायेगें।
मिट्टी को करके सोना, माथे का मुकुट बनायेगें।
मिट्टी से सने, मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जायेगें।
जब घर को अंधेरा घेरेगा, तो मिट्टी के दिए जलायेगें।
चैखट पर रखी तलवारों को, पिघलाकर मिट्टी कर देगें।
सामाजिक-धार्मिक आयोजन में, मिट्टी के कलश सजायेगें।
मिट्टी से सने, मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जायेगें।
चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है। सच में इस देश की मिट्टी है जितनी उपयोगी है उतनी कहीं की भी मिट्टी नहीं है। सच यदि रोग मुक्त होकर जीवन बीताना चाहते हैंं तो सूर्य की गति के साथ, मिट्टी जाेडेे रहिये और लम्बी उम्र तक निश्चितता पूर्वक जीवन व्यतीत करिये।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल