14वीं शताब्‍दी में यूरोप में महामारी प्लेग

भारत में प्लेग के लिये पुरानी कहावत प्रसिद्ध थी कि ‘‘सिन्धु नदी को नहीं पार कर पाता है प्लेग’’। इस वाक्य की वैज्ञानिकता, भौगौलिक के आधार पर बताई गयी हैं कि ‘‘प्लेग भूमध्य रेखा के अत्यन्त उष्ण प्रदेश को छोड़कर संसार के किसी भी भाग में हो सकता है।”

सत्‍यम् लाइव 11 अप्रैल 2020, दिल्‍ली।। आज कल कोरोना वायरस पूरे विश्‍व में फैला हुआ है तो बात महामारी की हो रही हो। पिछले महामारी में क्या हुआ ? इस पर नजर अवश्य डालनी चाहिए। विश्व में अब तक पाॅच बड़ी महामारी से हम सब गुजरें हैं। महामारी व्यक्ति को विवश कर देती है अपने रहन-सहन को परिवर्तित करने के लिये। प्रारम्भ में तो ये रहन-सहन क्षणिक बदलाव समझ में आता है परन्तु कुछ अभ्यस्त हो चुका मानव फिर परिवर्तन को अपना परिवेश बना लेता है। समय निकल जाता है परन्तु बदलाव आदत में शमिल होकर एक नयी रीति को जन्म दे देती है वो बात अलग है कि कोई महार्षि उस रीति के डर के माध्यम से आयी रीति को बयां करता है तो विरोध होता है परन्तु पुनः प्रकृति के संरक्षण में पहुॅच कर जीवन यापन करने लगते है। आज की महामारी में मास्‍क लगा लेनी की रीति जैन सम्‍प्रदाय में अभी भी अपनायी जाती है बस फर्क इतना है कि उसे उन्‍होंने अहिन्‍सा से जोडा हुआ है तो इसमें कोई नयी बात तो नहीं लगती कि आज का विज्ञान भी कह रहा है कि हिन्‍सा ने ही नोवेल कोरोना नामक महामारी को जन्‍म दिया है। महामारियों के इतिहास को देखने से ज्ञात होता है कि ये महामारियों पूरे का पूरा साम्राज्य ही लील गई तो सिमटा सा साम्राज्य स्थापित हुआ। मौसम के उतार चढाव में, आने वाले कीटाणु को संक्रमण काल बताया गया है आयुर्वेद में इनको समाप्त करने के लिये सूर्य की गति के अनुसार, त्यौहार बनाये गयें। इन्हीं त्यौहार के निर्वाह में, आस्था के साथ दिनचर्या को अपना कर, मौसम के हिसाब से उत्पन्न संक्रमण काल में कीटाणु को समाप्त कर दिया जाता है और आम मनुष्य को ज्ञात भी नहीं होता कि कीटाणु पैदा भी हुआ था सूर्य की गति के साथ जीवन यापन स्वतः इसे मार देता है। दुनिया के यूरोपीय भाग में, कोई भी कीटाणु जन्म लेने के बाद विकराल रूप रखकर महामारी के रूप में लम्बे अरसे तक रहता ही है क्योंकि सूर्य देव अपनी गर्मी उनको देने में संकोच करते रहे हैं महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने भी उत्तरायण और दक्षिणायन से समस्त ग्रहों की गणना बताई है।

बहुत पीछे न जाकर चैंदहवी सदी के पाचवें और छठे दशक की ओर देखते हैं तो ज्ञात होता है कि ब्यूबोनिक प्लेग जिसे ब्‍लैक डेटा कहा गया है ने यूरोप की एक तिहाई आबादी को काल के गाल में सम लिया था। इतनी बडी संख्या में लोगों की मौत हुई तो दिमाग में ये बात अवश्य आयी कि कैसा मंजर रहा होगा वो और कैसे जीवन यापन किया होगा वहाॅ के लोगों ने इतनी मौतों के बाद। तो ज्ञात हुआ कि मजदूर बहुत कम पड गये अब जीवित लोगों अपने जीने की नयी राह निकाल ली वो कहलाया ‘‘मशीनरी युग’’। अपनी सुुस्त अर्थव्यवस्था को स्वयं मशीन से सुदृढ़ करने लगे तो दूसरी तरफ अब बारी थी समुद्र की यात्रा पर चलने की। ये मानव को पहले ही ज्ञात था कि समुद्र के पार जीवन है। अच्छा या बुरा ये ज्ञात हो या न हो। प्लेग के डर ने समुद्र का डर मन से समाप्त कर दिया होगा और प्रारम्भ हो जाती है समुद्र की यात्रा। कहते हैं आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है समुद्र पार करके आये तो समुद्र पार तो ‘‘मशीनरी युग’’ नहीं है अब बारी थी। इधर के लोगों को मशीनरी से परिचय कराने की या फिर अपने अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिये अपनी ‘‘मशीनरी युग’’ को आगे बढाने की। सारे ही इतिहास कहते हैं कि इस सदी के अन्त तक समूचे विश्व में ‘‘मशीनरी युग’’ को बढावा प्रारम्भ हो चुका था। एक तरफ इग्लैण्ड के निवासी कोलम्बस ने सन् 1492 में अमेरिका की खोज की तो दूसरी तरफ सन् 1498 में वास्को डि गामा के एशिया की तरफ कदम बढे कदम ने भारत की।

प्‍लेग का एक दृश्‍य

प्लेग के बारे आज कहा जाता है कि ये 9 प्रकार का होता है और भारत में एक पुरानी कहावत मिली कि प्लेग सिन्धु नदी नहीं पार कर पाता है। परन्तु 19वीं सदी के सन् 1815 में गुजरात के कच्छ और कठियाबाड़ में प्लेग ने अपने पाॅव पसारे फिर हैदराबाद, अहमदाबाद होते हुए सन् 1836 में मेवाड़ पहुॅचा परन्तु रेगिस्तान में भगवान भास्कर के सामने उसकी बहुत दिनों न चल पायी। उधर केदरानाथ से होता हुआ दक्षिणी क्षेत्रों में फिर 1898 में अपनेे पाॅव पसारे हैं। भारतीय इतिहासकारों से जब बात अकाल पर की जाती है तो ज्ञात होता है कि इस समय अकाल भी पडा है अर्थात् प्रकृति बदलते परिवेश को सहने को तैयार नहीं थी और हम अपनी पश्चिमी सभ्यता को अपना बैठे थे। चीन में सन् 1644 में मिंग राजवंश के शासनकाल के समाप्त होने के तीन कारण बताये जाते हैं पहला भष्टाचार इतना अधिक बढ कि दूसरा कारण प्लेग महामारी ने तबाह मचाई और फिर उत्पन्न हुआ अकाल पड़ा इसी से लगभग 40 प्रतिशत आबादी का समाप्त हो गयी।

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1897 में भारत के उत्‍तरी क्षेत्र का एक दृय

भारत में प्लेगः- प्लेग के बारे में कहते हैं कि प्लेग जब चूहे मरते हैं तो उनके शरीर में पिस्सू नामक कीटाणु पैदा हो जाता है जो मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने में सक्षम हैं। ये पिस्सू न्यूमोनिया प्लेग श्वाॅस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं या फिर पिस्सू के काटने पर रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। भारत में प्लेग के लिये पुरानी कहावत प्रसिद्ध थी कि ‘‘सिन्धु नदी को नहीं पार कर पाता है प्लेग’’। इस वाक्य की वैज्ञानिकता, भौगौलिक के आधार पर बताई गयी हैं कि ‘‘प्लेग भूमध्य रेखा के अत्यन्त उष्ण प्रदेश को छोड़कर संसार के किसी भी भाग में हो सकता है।” बहराल महामारी कोई भी हो, आयुर्वेद कहता है कि सूर्य की गति के अनुसार जीवन यापन करो तो किसी भी प्रकार केे संक्रमण काल जन्मे हुए कीटाणु या वायरस को स्वयं सूर्य देव सहित समस्त ग्रह मिलकर समाप्‍‍‍त कर देते हैं। जब तक अस्तग उदय रहता है तब तक कीटाणु भारत की भूमि पर रहते हैं जैसे ही अगस्त तारा उदय होता है सारे कीटाणु का नाश कर देता है, चन्द्रमा भी अपनी गति से कीटाणु का नाश करता है। भारत देश में सूर्य अपनी गति से जो खेल खेलता है वो हमें लगता है कि गर्मी बहुत बुरी गलती है परन्‍तु सत्‍य ये है कि वो हमारा रक्षक बना हुआ अपनेे कर्त्‍तव्‍य को पूरा करता रहता है ऐसे में उसे पालनहार भगवान विष्‍णु कहा तो अतिशोक्ति न होगी।

कुछ विशेष विवरण के साथ डॉ. एस बालक (रामकृष्‍ण महाविद्यालय मधुवनी से पीएचडी) ने प्रकाश डाला। अगला विवरण आपके समझ।

उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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