संक्रमण रोग सदैव हमारे शरीर में आते जाते रहते हैं परन्तु जो काल को जानता है उसकी रक्षा महाकाल करते हैं।
आयुर्वेद के माध्यम से सदैव सुरक्षित जीवन के लिये एक योजना ‘वेद ज्ञान है सच्चा विकास‘ आइये वायरस से बचाव अभियान में एक कदम और आगे बढाते हैं सुुुुुुुुुुुुुुरक्षित और शान्त जीवन आने वाली पीढी को देने का प्रयास। वैज्ञानिक स्व. श्री राजीव दीक्षित एवं गायत्री परिवार का आभार है जिनकी पुस्तकों से सहयोग मिला।
सत्यम् लाइव, 14 मार्च 2020, दिल्ली सर्वप्रथम ‘यथा ब्रम्हाण्डे तथा पिण्डे’नामक वाक्य से ये अर्थ निकलता है कि समस्त ब्रम्हाण्ड मेें जैसी शक्तियॉ विद्यमान है वैसे ही हमारे शरीर में भी विद्यमान हैं। शरीर के छठ चक्रों केे स्वामी छठ ग्रह हैं मूलाधार चक्र का स्वामी सूर्य का बताया गया है। यदि कोई कीटाणु शरीर में पहुॅचना भी चाहे तो पहले उन जगहों से होकर निकलता पडता है जहॉ से इन ग्रहों की शक्ति विद्यमान रहती हैै अर्थात् कोई भी वायरस आप पर आक्रमण करे तो पहले उसे उस गर्मी से लडना पडता है लेकिन उससे भी पहले रक्षात्मक झिल्ली हमारे शरीर में होती है िजिससे टकराकर वायरस समाप्त हो जाता है उसके बाद ग्रहों की शक्ति का सुरक्षा चक्र, इसके बाद आपकी सात्विक भोजन एवं शुद्व पानी (गुनगना पानी) से निर्मित आपकी अपनी शक्ति ऐसे मेें कोई वायरस पनप नहीं सकता। वैसे तत्काल भी संक्रमण जन्म ले लेता है, जो गलत भोज्य या पेय पदार्थ के कारण जन्म लेता है इसके कारण आन्त्रशोध या अतिसार जैसी बीमारी जन्म ले लेती है ये भी एक संक्रमण ही है इसके लिये आप कितनी बार तो स्वयं ही ये रोग कुछ समय के बाद ठीक हो जाता है इसका कारण होता है कि सूर्य अपनी गर्मी के कारण हमारे शरीर में एक घंटे के अन्दर गये हुए कीटाणु काेे मार देता है सूर्य का ताप मूलाधार चक्र पर पहुुॅॅचता ही रहता है। प्रात:काल देर से उठने पर भी एक संक्रमण आपके शरीर में पनपता रहता है जिसके कारण कोष्ठ: क्रूरो मदुर्भध्यो मध्य: स्यात्तै: समैरपि। अर्थात् वात की वृृद्वि हो जाती है और मल त्याग का कष्ट प्रारम्भ करके 103 बीमािरियों को जन्म देता है। ऋतु केे अनुसार भी संक्रमण जन्म लेते हैं कालार्थकर्मणां योगो हीनमिध्याअतिमात्रक:। सम्यग्योश्च विज्ञेयो रोगो रोग्यैक कारणम्।। अर्थात् काल (वर्षा, शीत, ग्रीष्म), अर्थ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध), कर्म (वचन, गमन, आदान, आनन्द, त्याग) सम्यक हों तो स्वास्थ्य प्रदान करते हैं और यदि इसके विपरीत काल, अर्थ और कर्म का असंतुलन ही रोग का कारण बनते हैऋतु को भारतीय शास्त्रों में छ: भागों में बॉटा गया है शिशिर, बसन्त, गीष्म उत्तरायण काल तथा वर्षा, शरद, हेमन्त दक्षिणायण काल। मानव शरीर में वात, पित्त, कफ तीन प्राकृत दोष बताये गये है। फिर शारंगधर ऋषि ने सूर्य के राशि पर जाकर सौर माह का वर्णन किया और संक्रान्ति कहा इसके साथ ही संक्रमण नामक शब्द का भी प्रयोग बहुतायत मिलता है जैसे मेष संक्रान्ति या मेेष संक्रमण या अन्य राशि संक्रमण। मेरी समझ में यहॉ पर मेष राशि पर भमण करता सूर्य जिस जीवाणु (कीटाणु नहीं) को जन्म देता है उससे जुडा होना चाहिए परन्तु अभी सिर्फ मेरा अनुमान है। ऋतुओं के अनुसरण के क्या भोजन ग्रहण करें इसका एक लम्बा वर्णन मिलता है परन्तु मुख्य समझने की बात है कि हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु में प्रकृत दोष अर्थात् कफ बसन्त ऋतु में असर दिखाता है बसन्त ऋतुु का आगमन होनेे वाला है। अर्थात् कफ का संक्रमण बढता है।
ग्रीष्म काल मेें कफ का संक्रमण कम हो जाता है वायु का संक्रमण बढ जाता है। इसी कारण आलस्य आता है। वर्षा ऋतु मेें शरीर मलीन हो जाता है क्योंकि वर्षा केे कारण शरीर की अग्नि दुर्बल हो जाती है। इस कारण वर्षा ऋतु में भूख कम लगती है। वर्षा काल मेंं पित्त असर दिखाता है। ये ऋतु केे अनुसार संक्षिप्त वर्णन है। वायरस अर्थात् संक्रमण रोग सदैव हमारे शरीर में आते जाते रहते हैं परन्तु जो काल को जानता है उसकी रक्षा महाकाल करते हैं। इसी कारण से कहा गया है।
वायरस अर्थात् कीटाणु के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् एक निश्चित समय होता है जब वो स्वयं समाप्त हो जाते हैं जब तक हमारे शरीर में उनका निवास रहता है उसे सम्प्राप्ति काल कहा गया है तथा दूूूूूसरी बार न प्रवेश कर पाये उसके समय को अर्थात् विशेष ध्यान रखना पडेगा उसेे उत्सर्जन काल कहा गया है।
संक्रमण की संक्रमण काल सहित जो व्याख्या मिलती है वो सच ही दिखती है क्योंकि थोडी सी सावधानी के साथ ही यदि दिनचर्या व्यतीत की जाये तो सच में श्रेष्मक सन्निपात अर्थात् कफ के रोग जैसे जुकाम 1 दिन से ही समाप्त होने लगता है फिर भीी चौथे दिन तो जुकाम स्वयं समाप्त हो जाता है। नॉवल कोरोना वायरस में अब जितनी भी बात की गयी है वो श्रेष्मक सिन्निपात पर ही आधारित है अब मत भूलिये कि समय ही है अब श्रेष्मक सन्निपात का। एक स्वस्थ्य रहने की प्रकृति के अनुसार के साथ जो इन सभी संक्रमण के लिये जो बचाव, औषधि तथा संक्रमण पूर्ण निवारण का जो वर्णन है वो अब क्रमश: करेंगें तब तक के लिये ………. जय गौ मातरम्
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
Leave a Reply