आयुर्वेद के माध्यम से सदैव सुरक्षित जीवन के लिये एक योजना ‘वेद ज्ञान है सच्चा विकास‘
प्रसंगाद् गात्र संस्पर्शात्रि:श्वॉसात्सहभोजनात्, सहशयासनाच्चापि वस्त्रमाल्यानुलेपनात्। कुष्ठंं ज्वरश्रव शोषच्श्र नेत्राभिष्यन्द एव च, औपसर्गिक रोगाच्श्र संक्रामन्ति नरान्नरम्।। सुश्रुत नि. ५/३२-३३
मैथुन, अंगस्पर्श, नि:श्वॉस, सहभोजन, साथ में शयन एवं बैठने, दूसरे के वस्त्रमाला और अनुलेपन द्वारा कुष्ठ अर्थात् चर्म रोग, शोष, नेत्राभिष्यन्द और औपसर्गिक रोग मनुष्य से मनुष्य में संक्रमित होते हैं। आजकल के समय में वायरस बिना डरे भारत में चला आता है वायरस ये भी नहीं लगता कि भारत में सूर्य इतनी तेजी से चमकता है कि हम जीवित कैसे रहेगें ? वैसे भी पुण्य भूमि भारत में सूर्य भगवान ही पालन हार कहा गया हैै जहॉ पर स्वयं पालनहार का रूप रखकर भगवान प्रतिदिन प्रात:काल ही दर्शन देने स्वयं चले आते हों वहॉ पर वायरस कैसे जीवित रह सकता है वास्तविकता ये है कि हम सबने अपने जीवन की शौली बदल दी है अपनी जीवन शैली को पश्चिमी सभ्यता के तहत पर उतार कर सूर्य की गति से चलना छोड दिया है।

हमारे प्राचीन शास्त्र आयुर्वेद में वायरस अर्थात् कीटाणु का बहुत सूक्ष्म वर्णन मिलता है इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनेक रोगों ऐसे है जो मनुष्य से मनुष्य में और पशुओं से मनुष्य में आते हैं परन्तु आज के वायरस रूप कीटाणु को संक्रमण के रूप में मनुष्य ने स्वयं ही पैदा किया है मॉसाहारी प्रवृत्ति की आदत आने से होते हुए जानवर पर हिन्सा के कारण ही मनुष्य ने संक्रमण को बढावा स्वयं ही तो दिया है। इस हिन्सा को न छोडने की कसम जो आज के मनुष्य ने विकास के पथ की तरह अपना रखी है उसका परिणाम है ये वायरस जो पहले संक्रमण के रूप में आता हैै फिर भारतीय शास्त्रों के अनुसार कीटाणु केे रूप में जन्म ले जाता है और हमारे परिवेश मेें निवास करने लगता है। आज डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस को महामारी के रूप में घोषित किया था अब से पहले स्वानुफलू को भी महामारी केे रूप में घोषित किया था परन्तु मेरी याद में न तो तब और न ही अब वो महामारी की कोई भी प्रक्रिया आज अपनाई जा रही है जो आयुर्वेद मेें दे रखी है। किसी भी बडे अधिकारी से कहो तो कहते हैं हम सब अन्तर्राष्ट्रीय समझौतें से बन्धे हुए है अर्थात् हम अपनी मर्जी से और पर्यावरण के हिसाब से अपनी रक्षा नहीं कर सकते। क्योंकि शास्त्र सदैव अपने पर्यावरण के हिसाब से लिखा जाता हैै।

अत: भारतीय किसान गौरक्षा दल और न्यू सेन्ट पॉल स्कूल ने सत्यम् लाइव के साथ मिलकर आयुर्वेद के इस अध्याय से आने वाली पीढी सहित समस्त जनता को सूर्य सिद्वान्त का ज्ञान सहित आयुुुुुुर्वेद के इस अछूतेे अध्याय को समझाने का काम अपने कन्धों पर लिया है। मेरे द्वारा लिखी एक पुस्तक काया दर्शन को बच्चों को समझाने का बीडा स्कूल की अध्यापिकाओं ने उठाया तो वहीें बाहर निकल कर जनसभा सहित संस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करने के लिये श्रीमती कृष्णा देवी, प्रधानाचार्या श्रीमती शिखा, श्रीमती अंजली एवं श्री हिन्माशु, आलम सहित समस्त भारतीय किसान गौरक्षा दल के कार्यकर्त्ता करेगे।
संक्रमण सदैव आपके शरीर में जीवाणुओं की स्थिति तथा कीटाणु के उत्पन्न के कारण ही कोई भी वायरस आपको पकड सकता है। आयुर्वेद सुश्रुत जी के हिसाब से जीवाणुु एवं कीटाणु मानव शरीर के भीतर और बाहर अपना जीवन बीताते हैं ये आप सब आपके पर्यावरण पर निर्भर करता हैै आपके आस पास का वातावरण कैसा है अर्थात् कितनी मात्रा मेें आपने अपने पास वायु को शुद्वता केे रूप से रख रखा है तथा भोजन के साथ आपका कितना कैसा रिस्ता है? क्या आप अपने समय का सद्उपयोग करके शरीरिक मेहनत करते हो? ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर के साथ किसी भी वायरस से कैसे निपटेें। इसके लिये तैयारी कर चुके हैं हम सब। तो आइये हम सब मिलकर अब सदैव के लिये वायरस को भगाएं।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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