
सत्यम् लाइव, 1 जनवरी 2023, दिल्ली।। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की कलम सदैव सत्य लिखने को इतनी बेताब रहती थी कि उनकी कविता के अर्थो को समझे तो अष्टांग योग के आठ नियमों के यम में बताये गये सत्य की प्रमाणिकता के दर्शन होने लगते हैं। उनकी कविता कभी इतिहास के पन्ने पलटने को विवश कर देती हैं तो कहीं पर मानव को राह दिखाती हुई प्रतीत होती हैं। दिनकर जी की कलम, उच्चकोटि के आलोचक की कलम बनकर, सत्य की राह पर कुछ कहने या लिखने की शक्ति प्रदान करती है। वैसे तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की कलम का विश्लेषण करना ‘‘सूर्य देव को दीपक दिखाने जैसा प्रतीत होता है।’’
अंग्रेजों की दासी दिल्ली को कई बार ललकार है। ‘‘हाय छिनी भूखों की रोटी, छिना नग्न का अर्द्ध वसन है। मजदूरों के कौर छिने हैं, वैभव की दीवानी दिल्ली।’’ ……….. यह पंक्तियाँ ऐसी ही प्रेरणा की देन है। वैसे सत्य की कलम थामने की ताकत देने वाले राष्ट्रकवि जी ने लिखा कि ‘‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, ये अपना त्यौहार नहीं।’’ नव वर्ष पर यह पंक्तियॉ बताती हैं कि उस समय भी भारतीय शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान, वैदिक गणित के अनुसार जीवित था।
सच है क्योंकि इन पंक्तियों को वैदिक गणित के बिना समझे यदि गुरू अपने शिष्य को समझाता है तो वो स्वयं को भी धोखा दे रहा है। यदि सच्चे एवं महान आलोचक राष्ट्रकवि को समझना है तो सबसे पहले यम में बताये गये, दूसरे नियम अहिन्सा को वैदिक गणित के अनुसार समझना होगा।
जी हाँ! यहॉ फिर से मैं जोर देकर कह रहा हूॅ कि वैदिक गणित के अनुसार भारतीय शास्त्रों को समझना होगा। तभी प्रमाण जुटाकर आज के उपभोगवादी विज्ञान को पश्चिम दिशा की ओर भेजा जा सकेगा। अध्यात्म विज्ञान की प्रमाणिकता वैदिक गणित के अनुसार भारतीय शास्त्रों में सिद्ध है। इसकी सिद्धता को पश्चिमी विज्ञान से, कभी सिद्ध नहीं किया जा सकता है क्योंकि वो धर्म को अफीम मानते हैं और वैदिक गणित की कल्पना ही, धर्म के 4 चरणों एवं 10 लक्षणों के आधार पर की गयी है जिसके आधार पर मैं भी कह सकता हूॅ कि

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