सत्यम् लाइव, २२ मार्च २०२०, दिल्ली हेमन्त ऋतु में प्रकृत कफ बसन्त ऋतु में असर दिखाता है ये तो सदियों में आयुर्वेद में लिखा हुआ है और ये मौसम ही है जब कफ आपके शरीर में आयेगा जब कोई वायरस हो तब तो प्लान बतायेगें। भारत में कोई वायरस जीवित ही नहीं रह पाता है इस काल को संक्रमण काल के रूप में लिखा गया है परन्तु मात्र यह संंक्रमण मात्र तीन से चार दिन तक रहता है। इसके बाद ये वायरस अपने आप मर जाता है। कोरोना सिर्फ उतना ही खतरनाक है जितना जुकाम ये सच है डॉ राय की इस बात को मैं भी सिद्व कर सकता हूॅ आयुर्वेद में संक्रमण काल के माध्यम से किसी भी वायरस को शरीर में पनपने ने देने का तरीका ही बताया गया है और आयुर्वेद ही एक मात्र माध्यम है जो किसी भी मौसम में आपको बीमार नहीं पडने देता।
आज मैट्रो, बस सहित पूरा देश को रूकने के पीछे क्या ये कारण तो नहीं है कि हमने सनातन धर्म में जो सूूूूर्य की गति बताई गयी है उसे छोड दिया है वेद आधरित जीवन छोडकर हम सब पश्चिमी सभ्यता के परिचायक बनकर अपने बच्चों को भी उसी मार्ग पर लेकर चले जा रहे हैं। इतना ही नहीं अभी तक तो हिन्दी को अंग्रेजी में लिखना सीखाया जा रहा था अब तो संस्कृत को भी अंग्रेजी में सीखायी जा रही है हम सब जानते हैं कि अंग्रेजी में इतने शब्द नहीं है जितने भारत की क्षेत्रिय भाषा में हैं और हिन्दी में अम्बार लगा हुआ है और जब संस्कृत ही सारी भाषाओं की जननी है तो फिर इस कलयुग में अंग्रेजी के माध्यम से संस्कृत सीखायी जानी चाहिए। क्या ये आपको भी उचित लगता है। भाषा विज्ञान का एक भी जानकार अंग्रेजी केे माध्यम से हिन्दी नहीं सीखना चाहता है बडे तो छोडो अब तो छोटे बच्चे भी कहते हैं कि अंग्रेजी समझ में नहीं आती है पर जबरदस्ती बच्चों को भी अंग्रेजी केे माध्यम से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का परिचय कराया जा रहा है। ये जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता का परिचय अंग्रेजी केे माध्यम से बच्चों काेे कराया जा रहा है इसका ही परिणाम है कीटाणु नाशाक दिन के रूप में आज का दिन घोषित कराना। आर्यभट्ट लिखित सूर्य सिद्वान्त पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह खडा कर रहा है आज का दिन।
आर्यभट्ट लिखित सूर्य सिद्वान्त का पहला ही श्लोक है यह श्लोक ही बताता है कि ग्रहों के चरित्र को जाने बिना वेदों काे समझा नहीं जा सकता है और आज ग्रहों का चरित्र ही अन्धविश्वास वेदों के जानकार ने ही बना रखा हैै। ऐसे में कोई भी संक्रमण आपके पास आयेगा ही क्योंकि अब ये बताया ही नहीं जा रहा है कि सूर्य अपनी गति से संक्रमण काल उत्पन्न करता है और उस संक्रमण काल में वह कीटाणु जन्म लेता ही है हमारे अन्दर बैठे हुए जीवाणु उन कीटाणु का नाश करने केेेे लिए उत्पन्न होते हैं ये कार्य आज का विज्ञान भी कहता है कि कुछ कोशिकाओं की मदद से होता है। परन्तु अब स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा कहा गया विश्वास, अन्धविश्वास बन चुका है और जो पश्चिमी सभ्यता थी उसके परिचायक बनकर हम सब विज्ञान मानकर अपने संक्रमण को स्वयं जन्म देते हैं और फिर ज्ञान मोबाईल और टीवी से लेकर किताब को पढना नहीं चाहते हैं। आज का मोबाईल और टीवी का ज्ञानी इसी दशा में जाकर सोच सकता है जो आज की दशा है २७ डिग्री के तापमान पर कोई वायरस मर जाता है तो २६ डिग्री पर नहीं मरेगा क्या तो नवयुवक आज के विज्ञान वर्ग के छात्र से जब ये पूछा तो उसका जवाब था कि वो तो २७ डिग्री पर मरता है २६ डिग्री पर कैसे मारेगा। ये दशा आपके समाज में आने वाली पीढी की है ऐसे बहुत से उदाहरण है मेरे पास, परन्तु इतना अवश्य कहूॅगा कि इसी तरह से यदि मोबाईल और टीवी से ज्ञानी आते रहे तो सच में कलयुग में ज्ञानी नहीं पैदा होगा। ये जो हमारे शास्त्रों में कहा गया वो सच होगा ही।
किसी भी संक्रमण के आने पर उसके स्वत: समाप्ति काल का वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है।
उपसम्पादक सुुनील शुक्ल
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