सत्यम् लाइव, 3 अप्रैल 2023, दिल्ली।। हमारी दादी-नानी के ज्ञान की कहानियॉ समाप्त कर जो षड़यत्र वैदिक नारी के साथ किया गया उस पर एक नजर आयुर्वेद के माध्यम से डालकर देखते हैं जरा ……… जल तत्व का बढ़ने या घटने को डिहाइड्रेशन कहते हैं। यदि जल बढ़ गया तो मेहनत करके या पिफर रसोई के जीरे से ठीक किया जा सकता है और यदि घट गया तो शुद्ध जल को ग्रहण करके बढ़ाया जा सकता है। नारियल पानी से बढ़ाया जा सकता है। अंगूर के सेवन से मस्तिष्क रोगों तक से छूटकारा पाया जा सकता है। देशी गाय के पंचगव्य को नाक में डालने से जो नींद पूरी होती है उससे भी मस्तिष्क की जल का स्तर ठीक होता है।
आयुर्वेद में अग्नि और जल को चिकित्सा का प्रधन तत्व बताया गया है और इस तत्व की खोज पर वैश्णिवी सम्प्रदाय भगवान विष्णु का उपासक तथा शैव सम्प्रदाय भगवान शिव का उपासक हुआ करता था। इन दोनों सम्प्रदाय में भी मत-भेद का मुख्य कारण तत्व की प्रधानता पर के विचार पर ही था। कहते हैं कि इसी काल में कम्ब रामायण के लेखन से दोनों के बीच में तत्व मतभेद को समाप्त करने की सफलता प्राप्त हुई।
जिस देश का सम्पूर्ण साहित्य तत्वों के आधार पर लिखा गया हो उसी देश में आज यदि वायु तत्व या जल तत्व के आधार पर कीटाणु अर्थात् वायरस की प्रधानता पर डीएनए बदला जाये तो आश्चर्य ही होना सम्भव है। आचार्य चाणक्य के कथन को ‘‘तुम शास्त्रों की रक्षा करो, शास्त्र तुम्हारी रक्षा करेगें।’’ सत्यार्थ करते हुए यदि एक भी व्यक्ति स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, लाला लाजपत राय, महात्मा गॉधी या राजीव दीक्षित जैसा एक प्रवक्ता खड़ा हो गया तो डीएनए अर्थात् गुणसूत्र जिसे युगों-युगों से पंचतत्व के आधार भारतीय शास्त्र परखता आया है उसे मात्र आने वाली पीढ़ी को समझना होगा
जिसका आधार बिन्दु उसे भारतीय प्रकृति और पर्यावरण होगा। तब अध्यात्म विज्ञान का रक्षक पुनः खड़ा हो जायेगा। अब आवश्यकता है दम्बि के हाथ से प्रचार-प्रयास का कार्यभार बदलने की। कलयुग में दम्बि के हाथ से जो कार्यभार आ जाता है उससे ही पंचतत्व का आधार बदल जाता है और पंचतत्व का ज्ञान कम होते ही, नारी का अस्तित्व समाप्त होने लगता है। वैसा ही आज के दौर पर साफ दिखाई देता है जगजननी के रूप में जो नारी दिखाई देती है वो आज अपने अस्तित्व खोने की जिम्मेदार स्वयं बनी हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रथम कार्यभार वैदिक नारी के हाथ में होता था जबकि आज हमारी अर्थव्यवस्था की जिम्मेदारी अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी ने उठा रखी है।
किसी भी वायरस या कीटाणु को समाप्त करने का कार्य हमारे ऋषियों-मुनियों (वैज्ञानिक) ने परम्परागत वैदिक नारी को सौंप था और इसका आधार था धर्म की वैदिक गणित जो विज्ञान के अनुसार आज भी सिद्ध होता है जिसे अन्धविश्वास बताकर अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रखवाली करने का कार्यभार, भारतीय नारी से छिन लिया गया है।
हमारी माताओं-बहनों को इतनी बड़ी पदवी हमारे ऋषियों-मुनियों से युगों-युगों से सौंप थी उस पदवी से षड़यंत्राकारियों ने वैदिक नारी को हटाकर, युगों-युगों तक अशिक्षित रहने का दावा भी प्रस्तुत किया जबकि ग्रहों की ज्ञाता (वैदिक गणित) होने के साथ भौतिक, रसायन, जीव, वनस्पति विज्ञान की ज्ञाता हमारी दादी-नानी ने हजारों वर्षों तक हमारे देश में अस्पताल की आवश्यकता नहीं महसूस होने दी।
इसी आधार बिन्दु पर भारत सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है और आगे भी इसी आधार कहा जायेगा जब तक हमारे देश में वैदिक नारी पुनः जाग्रत नहीं होगी तब तक भारतीय अर्थव्यवस्था कभी भी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अपनी पकड़ नहीं बना पायेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान देश में, वैदिक नारी ही सम्भारती रही है और आगे भी वैदिक नारी ही सम्भालेगी। इन तथ्यों को निराधर नहीं कहा जा सकता है और न ही इन तथ्यों को किसी वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध करने की आवश्यकता है क्योंकि विज्ञान का जन्म सदैव आवश्यकता के अनुसार होता है। भारतीय शास्त्र कहते हैं कि तत्वों के ज्ञाता ही विज्ञान का ज्ञाता हो सकता है।
सुनील शुक्ल
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