मानव शरीर पंचतत्व से निर्मित है, पृथ्वी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व एवं आकाश तत्व
सत्यम् लाइव, 26 जुलाई, 2021, दिल्ली।। पंचतत्व से निर्मित शरीर के जब तत्व बिगड़ता है तो कौन सा दोष उत्पन्न होता है? आज यहॉ मात्र इसको ही समझ लेते हैं क्योंकि ये विषय बहुत विकराल है और अध्यात्म विज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है जो वैदिक गणित को सम्पूर्ण समझने के पश्चात् भी अधूरा सा लगता है।
पृथ्वी तत्व मानव शरीर में अस्थि, त्वचा, मासपेशियां, नाखून, बाल का प्रतिनिधत्व करता है पृथ्वी तत्व मानव शरीर में घुटनों प्रतिनिधत्व करता है अत: घुटनों ही मनुष्य के जड सबसे पहले होते है तथा सारे ही शरीर के ठोस भाग को संचालित करने का कार्य पृथ्वी तत्व ही करता है।
जल तत्व मानव शरीर में रक्त, मल, मूत्र, मज्जा, पसीना, कफ, लार का प्रतिनिधत्व करता है । जल तत्व मानव शरीर में जो पानी से सम्बन्ध रखता है वो जल तत्व के आधीन होता है, जल तत्व को मुख्य भाग पेट में माना गया है और पेट से ही मनुष्य को 85 से 90 प्रतिशत की बीमारी होती है, जल में हम सब को पता है कि वायु तत्व प्रधान होता है अत: जल ही गर्म होकर वाष्प का रूप धारण कर लेती है और फिर पेट में गैस के रूप में परिवर्तित हो जाती है तथा जल ही रूक्ष होकर कब्जियत पैदा करता है
अग्नि तत्व निंद्रा, भूख, प्यास, आलस्य, शरीर का तेज, क्रोध, पाचन, शरीर का तापमान का प्रतिनिधत्व करता है इस तत्व को प्रमुख तत्व ही समझना चाहिए क्योंकि इस अग्नि तत्व के कारण ही मनुष्य अपने भोजन को पचाने का कार्य करता है तथा इसी अग्नि तत्व के कारण ही मनुष्य आने वाली पीढी को जन्म देने कार्य करता है परन्तु यहां पर ये समझना भी है कि यही अग्नि तत्व न वश में होने वाले क्रोध को करने पर अपने आप को सबसे पहले समाप्त कर लेता है, अग्नि तत्व सूर्य के आधीन हाेकर कार्य करता है और सूर्य के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सामन है।
वायु तत्व सिकोडना, फैलना, चला, बोलना, धारण करना, उतारना, चिन्तन, मनन, स्पर्श, ज्ञान। वायु तत्व सम्पूर्ण शरीर काे संचालित करने का कार्य करता है, वायु तत्व के पांच भागों में विभक्त किया गया है प्राणवायु के रूप में हम जो श्वॉस लेते है वो पहला भाग है, तथा सम्पूर्ण शरीर में घूम घूम कर खून काे व्यवस्थित करने का कार्य व्यान वायु का है, उदान वायु बन भोजन को पचाने का कार्य करती है, समान वायु शरीर को शक्ति देने कार्य सम्पूर्ण करता हुआ अपान वायु दूषित वायु को शरीर से बाहर निकाल देता है।
आकाश तत्व काम, क्रोध, मोह, लोक, लज्जा, खालीपन, दुख, चिन्ता का मानव शरीर में प्रतिनिधत्व करता है, आकाश तत्व मानव शरीर में मस्तिष्क काे नियंत्रण करता है, आकाश तत्व का दूसरा अर्थ शून्य तत्व के रूप बताया गया है
और हम सभी जानते है कि शून्य तत्व सदैव कुछ भी विचार करता ही रहता है या नहीं भी करता रहता है वैसे तो सभी तत्व आवश्यक है परन्तु शून्य तत्व ध्यान योग करने वाले के लिए प्रधान माना जाता है और इसी तत्व के माध्यम से तीन चक्र को नियंत्रण करने का तरीका बताया जाता है जब तक कि आकाश तत्व नियंत्रण में नहीं आता है तब तक ध्यान करने वाला मनुष्य को शान्ति की प्राप्ति नहीं होती है
सुनील शुक्ल
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