सत्यम् लाइव, 20 अक्टूबर, 2020, दिल्ली।। इस कोरोना काल में लोगों को एहसास दिला दिया है कि शुद्ध शाकाहारी, स्वस्थ भोजन करने से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को संतुलन करके ऐसे अनेको वायरस से बचा जा सकता है वैसे भी भारतीय सभ्यता में सात्विक भोजन का बहुत महत्व है। भारत भूमि पर उगने वाली ऐसी कई प्रकार के फसल है जो इस दुनिया की किसी भी धरा पर नहीं होती हैंं। भारत में बिकने वाले फल सब्जियॉ, यह मुश्किल से खेत से 24 घंटे में ही बाजार में आ जाती है जो यूरोप के मुकाबले बहुत ताजी होती है। यूरोप में अगर आपको कोई ताजी सब्जी चाहिए तो उसके लिए आपको कई किलोमीटर की दूर तय करनी पडेगी और जो सब्जी प्राप्त होगी वह भी 1 सप्ताह से 15 दिन तक पुरानी होगी उसी सब्जी वो ताजी कहते हैंं पर हमारे लिए वो बासी हो चुकी हाेेेेती है। भारत के पूरा आयुर्वेद को जाननेे वाले सभी जानकार सात्विक भोजन करने को कहते है यहॉ सात्विक भोजन का अर्थ अन्सिात्मक भोजन से कहा जाता है। आज डा. विश्वस्वरूप राय चौधरी, सात्विक भोजन से ही मरीजों का इलाज करते है जब भी इनके पास कोई मरीज आता है, तो वह उस मरीज की पूरी की पूरी जीवन शैली सात्विक भोजन के माध्यम से उसका इलाज करते है और वह बताते है की मैं मरीजो के लिए दवाई का प्रयोग नहीं करता हूँ। आयुर्वेद पर आज के विज्ञान केे जानकार राजीव दीक्षित जी ने इस कला को पुन: जीवित करके भारत का आत्मसम्मान वापस जगाया है। अब सवाल है, की क्या हमारा भोजन पूर्ण रूप से स्वस्थ है? यह सवाल थोड़ा अटपटा सा जरूर लगेगा लेकिन वाकई यह प्रश्न सोचने के लिए मजबूर करता है की जो हम भोजन प्राप्त कर रहे है जिसे हम सात्विक कह रहे है, क्या पूर्ण रूप से हमारे स्वास्थय के अनुकुल है? भारत मेंं हरित क्रांति के साथ ही यूरिया, डीएपी का इस्तेमाल सरकार ने स्वयं चालू कराया। इससे पहले हमारे देश में यूरिया का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। भारत सरकार द्वारा चलाये गयेे प्रचार ने फ्री यूरिया, डीएपी देकर खेतो में डालने के लिए कहा साथ ही प्रचार किया गया कि इस यूरिया से उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है । यह खेती के लिए उत्तम है। इसके इस्तेमाल से किसान मालामाल हो जायेगें। उस समय से रासायनिक खाद्य कुछ राज्यों में पडना प्रारम्भ हुई और अब यह रासायनिक खाद्य किसानोंं कि खेती का अहम हिस्सा है। और यूूरिया के परिणाम से फसल पर कीडा आया साथ ही अब भूमि बंजर होती चली गयी। साथ ही भारत जो निरोगी काया लेकर घूम रहा था अब कैंंसर जैसी बीमारी से ग्रसित होता चला जा रहा हैै। फसलों के ऊपर डाली गई रासायनिक खाद्य जो हमारे घरों में फल, सब्जी और फसलों के रूप में आ रहे है जिसको भारतवासी इस्तेमाल कर रहेे हैंं। रसायनिक युक्त फसलो ये रसायन अब मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता जा रहा है और दूसरी तरफ सरकार स्वयं ही प्रतिरोधक क्षमता बढाने को कहती है ये कैसी बिडम्बना है ? हमारे देश की सरकारे कह रही है लोगो से कि अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाओ इस रसायनिक खेती से भारत की फसल सहित मानव शरीर में प्रवेश कर यूरिया, डीएपी ने हम सबको बीमार बनाया है और दूसरी तरफ दवाई के क्षेत्र में आयुर्वेद को अन्धविश्वास बताने को जो सिलसिला चालू हुआ उसने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अरबो रूपये का फायदा पहुॅचाया है अगर दवाईयों के माध्यम से स्वस्थ जीवन होता तो फिर हमे भोजन की क्या जरूरत? अगर आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, तो बस बाजार जाइये और उसके लिए सप्लीमेंट्री के रूप में दवाई खाईये। इन सब चीजो के देखते हुए कहीं न कहीं ये विकास भी पश्चिमी अटपटा सा लगता है हमने अपनी संस्कृती और सभ्यता को छोड़कर जो पश्चिमी सभ्यता को श्रेष्ठ मान लिया है, वही हमारे मानसिक एवं चरित्रक पतन का कारण है अगर वाकई स्वास्थय जीवन जीना है तो उसके लिए हमे अपनी सभ्यता के हिसाब से चलना होगा। हमें अपनी पारम्परिक खेती की तरफ लौटना होगा जिसे आज जैविक खेती कहते हैं क्याेेकि भारतीय सम्प्रदाय में पशु से आत्मिनिर्भर होता है किसान, बातों से नहीं।
सुनील शुक्ल
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