सत्यम् लाइव, 11 सितम्बर 2020, दिल्ली।। आपदा को अवसर में तब्दील कर देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर से संघर्ष प्रारम्भ हो चुका है। अवसरवादी भारत की सरकारेंं कृषि प्रधान देश में यदि किसी की ना कदरी की जा रही है तो वो अंग्रेजों के समय से किसान ही है और आज भी वैसी ही स्थिति किसान की है। लाल बहादुर शास्त्री से पहले इस प्रसंग पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की याद आती है जिनकी कविता कल भी सच थी और आज भी राष्ट्र्रवादी सरकार होने पर भी सत्य है।

लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों ने कुरुक्षेत्र के पिपली अनाज मंडी में आज 10 सितंबर को रैली का आह्वान किया था लेकिन हरियाणा सरकार ने इस पर रोक लगा दी। बहाना जो बताया वो था कोरोना संक्रमण। कहने का अर्थ साफ है सरकार का कि भूखे मर जाओ परन्तु कोरोना से नहीं मरना है। यहॉ तक किया कि धारा 144 लागू कर दी। मण्डी के गेट पर पुलिसकर्मी भारी संख्या में तैनात कर दिये गये। इस अध्यादेश के तहत कंपनियां एडवांस में ही किसान की फसल खेतों में ही खरीद लेंगी। फिर तो किसान को फसल पैदा करने से पहले ही कीमत मिल जायेगी तो किसान को क्या परेशानी है? इस परेशानी को यदि आम व्यक्ति की भाषा में समझा जाये तभी समझ में आयेगा। किसानों को उसकी फसल का पैसा पहले ही दे दिया जायेगा परन्तु उसके बाद कम्पनी उस अनाज को ले जाकर बाजार मेें बेचेगा और अपनी आदतों केे मुताबित यदि एक भी कम्पनी ने बाजार से किसी आवश्यक वस्तु को लुप्त कर दिया तब क्या होगा आप कहेगें कि इसके लिये सरकार ने पहले ही नियम बना रखा है तो आपको ज्ञात हो कि चैत्र के मास में वायरस का प्रचार सरकार स्वयं कराती है तो फिर उन कम्पनियों केे खिलाफ कभी कुछ बोल पायेगी। यही चिन्ता सभी किसानों को है और आप कहे कि किसान प्रारम्भ में पैसा न ले तो। उसको बाजार में आनाज बेचने की अनुमति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है साथ ही अपने घर पर स्टॉक करके रखने पर भी कार्यवाही की जायेगी। जिसका सीधा सा अर्थ निकलता है कि अब किसान को अपना अनाज इन विदेशी कम्पनियों केे पास रखना ही पडेगा। इस विषय पर मौन सरकार तथा विपक्ष ये दर्शाता है कि सभी पाटियों को कुर्सी बचाने की चिन्ता है और भारत माता की जय बुलना मजबूरी। कृषि भूमि पर पहले ही विदेशियों की नजर थी वही कार्य वो सरकार के साथ मिलकर पूरा करते जा रहे हैं और शेष प्रक्रिया किसी दूसरी पार्टी के आने पर पूरी करा लेगें क्योंकि चिन्ता तो इन नेताओं को अपनी पार्टी केे विप की होती है तभी तो कृषि प्रधान देश में औद्योगिक नगरी बनाकर कृषि को विदेशी कम्पनी के हाथ मेें देने की तैयारी चल रही हैै। ऐसी दशा में लहलहाती हुई फसल भी गुलाम हो जायेगी।
सुनील शुक्ल
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