सत्यम् लाइव, 15 अक्टूबर 2020, दिल्ली।। 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम अंसार परिवार में इनका जन्म हुआ उनके पिता जैनुलाब्दीन मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। पांचवी कक्षा में पढ़ते समय उनके अध्यापक उन्हें पक्षी के उड़ने के तरीके की जानकारी दे रहे थे, लेकिन जब छात्रों को समझ नही आया तो अध्यापक उनको समुद्र तट ले गए जहाँ उड़ते हुए पक्षियों को दिखाकर अच्छे से समझाया, इन्ही पक्षियों को देखकर कलाम ने तय कर लिया कि उनको भविष्य में विमान विज्ञान ही पढना है। कलाम के गणित के अध्यापक सुबह ट्यूशन लेते थे इसलिए वह सुबह 4 बजे गणित की ट्यूशन पढ़ने जाते थे। कौन जानता था कि ये बालक आगे चलकर मिसाइलमैन के नाम से जाना जायेगा और भारत का राष्ट्रपति बनेगा। साथ ही भारत सरकार द्वारा भारत रत्न, पद्य भूषण, पद्य विभूषण, वीर सावरकर जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सन् 2002 में राष्ट्रपति पद पर आसीन होने पर डा. ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम ने बच्चों केे लिये कम्प्युटर शिक्षा अनिवार्य की थी उस शिक्षा व्यवस्था में मुझे बच्चों के साथ कार्य करने का अवसर श्याम नगर, कानपुर के आर्चीज एजूकेशन सेन्टर में करने को मिला। वो सिद्धान्त था कि बच्चों को खेल-खेल में पढाना चाहिए इस सिद्धान्त को बदलकर कमाओ नेताओं ने बच्चों को खिला खिलाकर पढाने पर जोर दिया क्योंकि उससे उनका अपना पालन पोषण होने लगा। इसी शिक्षा व्यवस्था में कम्प्युटर को एक मात्र माध्यम बनाया गया था जबकि असली शिक्षा व्यवस्था उस बालक को बिना मस्तिष्क पर जोर डाले कागज पर स्वयं करनी होती थी। जिससे उस बच्चे की लेखन सहित कला बिना सिखाये अच्छी हो जाती थी। इसी कला को लेकर जब राजीव दीक्षित के कथनानुसार स्वामी दयानन्द सरस्वती को पढा तब महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी को समझने का अवसर मिला तब आज शिक्षा व्यवस्था से अलग हटकर बच्चों को, भारत के गौरवशाली शिक्षा व्यवस्था से अवगत कराना प्रारम्भ किया तब ज्ञात हुआ कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था को मैकाले ने क्यों प्रतिबन्धित किया था। गीता, रामायण और कुरान के गहन अध्ययन के पश्चात् ही श्रीराम सेतु पर कहे गये शब्द मुझे आज भी याद हैं कि रामसेतु नहीं तोडा जाना चाहिए। अब्दुल कलाम जी को जब भी अपने गॉव की याद आती थी तब वो श्रीराम के वनयात्रा का ज्रिक अवश्य करते थे और कहते थे कि जब पढता हॅू या सुनता हूॅ तो लगता है कि उसी गली से कभी श्रीराम निकले होगें और धनुषकोटी के उस स्थल पर श्रीराम की सेना ने पडाव डाला होगा। परन्तु आज केे सॉफ्टवेयर ‘प्लेटिनम गोल्ड’ से जो श्रीराम के काल की गणना की जा रही है उसका काल सही है ये असम्भव है क्योंकि समस्त ग्रह एक निश्चित समय के अनुसार सौर मण्डल में भ्रमण करते हैं और एक निश्चित समय पर अपनी पूर्वा स्थिति में आते भी हैं परन्तु इस बात से इन्कार डॉ. कलाम साहब को भी नहीं था वो भी इस बात को कहते थे कि समय निर्धारण पर और कसौटी चाहिए अभी। जीवन के लक्ष्य पर उनका विचार था कि अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा। एक वाक्य में विद्यार्थी से कहा कि अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो पहले आपको सूरज की तरह तपना होगा। आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत, असफलता नामक बीमारी को मारने के लिए सबसे बढि़या दवाई है। वो कहते थे कि इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।
सुनील शुक्ल
Discover more from Satyam Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.