सत्यम् लाइव, 29 मार्च 2021, दिल्ली।। आज की सबसे की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है इनको ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण इत्यादि नाम से जाना जाता है यदि इनका कारण निष्पक्ष होकर स्वयं समझना चाहें तो आपको प्रदूषण का मुख्य कारण, आज का भौतिकवादी विज्ञान ही समझ में आयेगा। ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण आज भागती हुई जीवनशैली है तो दूसरी तरफ, दोषी नये जवाने का संगीत भी कहा जा सकता है। जिसका नया दोषी स्वरूप, डिजिटल होता भारतीय समाज है।
जबकि सामवेद में संगीत के महत्व को समझाया गया है फिर भी पश्चिमी सभ्यता से आया हुआ संगीत ने आज अपना स्थान बनाया है। जल प्रदूषण का मुख्य कारण यूरिया, डीएपी या जानवर की हत्या है जबकि मुख्य दोष भारतीय त्यौहार होली को दिया जाता है परन्तु अमीरों के घरों से, गलत दिनचर्या के कारण पानी खराब किया जा रहा है वो विकास कहलाता है। ताज्जुब इस बात पर भी है कि जल ही जीवन है का प्रचार करने के लिये भी यही अमीर घराने आते हैं और फिर से रूपया कमाते हैं। प्रकाश प्रदूषण में बिजली बचाव अभियान में आयी हुई एलईडी लाइट आपके ऑखों पर असर डाल रही है, साथ ही गर्मी बढ़ाने में भी सहयोग कर रही है, पर इसे विकास के पैमाने के अन्तर्गत गिनाया जाता है सौर ऊर्जा के बढ़ते प्रकोप तब दिखाई देते हैं जब प्रकृति स्वयं को ठीक करने का उपाय करती है।
अब बारी आती है वायु प्रदूषण की। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण किसानों द्वारा पराली जलाना बताया जाता है ऐसा सारी ही सरकारें कहती हैं और साथ में वैज्ञानिक भी इस विषय पर चुप हैं क्योंकि आज का मीडिया वही दिखाता है जो दिखाने को उससे कहा जाता है क्योंकि अब मीडिया वाले भी सरकारी महकमें में पहुॅचकर, अब ऐशोआराम का जीवन बीता रहा है। ये बात लगातार रविश कुमार जी कहते रहते हैं परन्तु उनकी बात को जनता सुनती है पर समझती नहीं है। प्रदूषण पर सारी ही मीडिया और सरकारें कह रही हैं कि किसान पराली जलाता है तभी प्रदूषण होता है।
तो पहला प्रश्न बनता है कि किसान पराली तो करोड़ वर्षो से जला रहा है, कण्डे में डालकर पराली को चूल्हा भी जलाया जाता था और सब लोग जलाते थे जैसे ही आप ये प्रश्न करेगें तो जबाव आता है कि जनसंख्या तब कम थी। ये सब कहने की बातें है कौरव 100 भाई थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम की सेना को कई दिनों तक नहीं गिनी जा सकती थी परन्तु वाल्मीकि रामायण पर विश्वास नहीं है क्योंकि पढ़ी-पढ़ाई नहीं जा रही है सिर्फ राजनीति की जा रही है राम के नाम पर। जनसंख्या की समस्या आज भी नहीं है।
समस्या है व्यवस्था की, समस्या है भौतिकवादी विज्ञान, समस्या है आज का विकास। क्योंकि विकास सदैव अपनी प्रकृति के अनुरूप ही किया जाता है प्रत्येक देश की प्रकृति और पर्यावरण का चित्र, उस देश के मानव की चित्रवृत्ति से उभरकर, उस देश के साहित्य में चित्रित होता है। ऐसा नहीं होता है कि साहित्य किसी दूसरे पर्यावरण और प्रकृति के अनुरूप लिखा गया हो। और भारत का साहित्य ही बताता है कि विकास यदि करना है तो सूर्य की गति के अनुरूप करो और इसी के अनुरूप सदैव विकास होता ही आया है भगवान कृष्ण के भाई बलराम जी को कोई शौक नहीं था कि वो अपने कंधे पर हल रखे घूम रहे थे। कम्बन रामायण के अनुसार लक्ष्मण जी डरे सहमे लोगों को खेती करना सीखा रहे थे। तो फिर पराली कैसे समस्या हो सकती है?
वायु प्रदूषण पर आज के विकास जिम्मेदार है जैसे सिगरेट लगभग 40 करोड़ प्रतिदिन बेची जा रही हैं उससे प्रदूषण के साथ, कैंसर तक के रोग हो रहे हैं पर कभी भी कोई कलियुग देवता (फिल्मी कलाकार या क्रिकेटर) प्रचार नहीं करता है क्योंकि कोई भी कम्पनी या सरकार इस पर पैसा नहीं देगी। जबकि पराली जलाने से कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, मिथेन जैसी गैसे निकलती हैं। यही गैस प्रतिदिन भारत में दौडने वाली करोड़ो गाड़ियों से भी निकलती है। यहाँ भी महॅगी से महॅबी गाड़ी विकास के पैमाने हैं उन महॅगी गाडी में ऐशो आराम के लिये लगा, एसी विकास का नया पैमाना है जबकि एसी से निकलने वाली गैस कोलोराफोलोरो कार्बन ने ओजोन लेयर में छेद कर दिया है ये बात आप सभी जानते हो।
ओजोन लेयर में छेद होने के कारण यूवी अल्ट्रावाइजरेज धरती पर आने लगी और गर्मी बढ़ती गयी। दशा यहाॅ तक पहुॅची की धन की खेती को नुकसान होने लगा है तो कलयुगी दुष्ट बुद्धि ज्ञानियों ने धन की खेती पर प्रतिबन्ध लगाने का विचार बना डाला। दूसरी तरफ दुष्टि बुद्धि इन्सान ने ओजोन लेयर पर कार्य चालू किया और उस पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बना। ओजोन गैस को उत्पादित करने वाले उपकरण पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित हुआ ये कार्य 1991 से प्रारम्भ हुआ और हर वर्ष सिर्फ मीटिंग में पैसा खर्च होता रहा साथ ही एसी, फ्रिज जैसी तमाम उपकरण का प्रचार और ज्यादा कराया जाता है। ओजोन लेजर पर जब रिसर्च चालू हुआ तो ज्ञात हुआ कि यूवी से लेजर कटिंग की जाये तो बहुत ही बारीक से बारीक कटिंग सफाई से की जा सकती है तब आयी यूवी लेजर कटिंग मशीन और फिर से नया विकास के पैमाने गिनाये जाने लगे। इस मशीन से जो कटिंग की जा रहीे थी वो आमतौर भारत का कारीगर कभी हाथ से बना लेता था। जैसे बेलना हमारे यहाँ कई युगों से बनता चला आ रहा है उसके लिये किसी मशीन की आवश्यकता नहीं पड़ी। फिर दुष्ट बुद्धि इन्सान ने देखा कि यूवी लेजर मशीन की प्रिन्टिग का जबाव नहीं है। वो भी आ गयी अब यूवी से थ्री डी मशीन कोरोना काल में कई जगह पर लगाई जा रही हैं जिसे हाईटेक का नाम दिया जा रहा है और दोष पराली पर लगाया जा रही है। इस यूवी मशीन से कैंसर तक हो रहे हैं। ये प्रदूषण का घातक रूप धारण कर पूरे विश्व को तबाह कर सकता है परन्तु भारतीय मानस भी ये मानकर बैठा है कि अभी दुनिया तबाह नहीं होगी, अभी बहुत समय लगेगा और दुष्ट बुद्धि इन्सान स्वर्ग की सीमाओं को खींचकर धरा पर लाने की तैयारी कर रहा है।
सुनील शुक्ल
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