सत्यम् लाइव, 27 जुलाई 2020, दिल्ली।। कोरोना काल में ’’कोरोना’’ निजी स्कूलों के लिए बना काल। इस लाॅकडाउन के कारण 45 से 50 फीसदी छात्र मजबूर हुए निजी स्कूल छोड़ने के लिए। तो वही सरकारी स्कूलों में बच्चों की दाखीला आनलाॅक के बाद अनुपात बढ़ रहा है। अभिभावको के लिए सरकारी स्कूल, निजी स्कूल के मुकाबले ज्यादा भा रहा है। गुड़गाव: इस लाॅकडाउन ने लगभग सभी क्षेत्रों में कार्य शैली व्यवस्था को बदल दिया है। खास कर शिक्षा व्यवस्था को इसमें पढाई के पूरे के परे पैटर्न को बदल दिया हैं। अब शिक्षा डिजिटल हो गया है तो उसी के साथ अभिभावको के लिए खर्चा बढा दिया है। वह भी इस समय जब परे देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी पड़ी है। क्योंकि मार्च के आखिरी सप्ताह से पूरे देश में लाॅकडाउन की वजह से सब कुछ बंद हो चूका था। लोगोंं का जीवनयापन बड़ी मुश्किलों से कटी और कट रही है। काम का कुछ पता नहीं, जो बचत थी इस लाॅकडाउन में खत्म हो गये और जब आनलाॅक हुआ तो बच्चों की पढाई को लेकर मुश्किले आ खड़ी हई है। देशभर में कोरोना के मामले और लाॅकडाउन की स्थिति के चलते 2020-21 के स्कूल सेशन में पिछले साल के मुकाबले प्राइवेट से सरकारी स्कूलों का रूख करने वाले छात्रों की संख्या में इजाफा हुआ है क्योंकि निजी स्कूल वाले बच्चों से पूरे के पूरे फीस वसूलने के चलते सरकारी स्कूल, विद्याथियों के लिए एक बेहतर विकल्प बन रहे है। यही वजह है कि अप्रैल से जुलाई के बीच प्रदेश स्तर पर 43 हजार 293 विद्यार्थीयों ने प्राइवेट स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया है तो वही निजी स्कूल के मालिको का कहना है कि अगर हम पूरे पहीने की फीस ना ले तो हमारे स्कूल में काम कर रहे कर्मचारीयों का भुगतान कैसे करे। हमारे सामने भी मजबूरी हैं। उन अभिभावको की बात करें जा कम आय वर्ग वाले हैं या जा निजी जाॅब करते है। उनके लिए अब स्कूल के खर्चे भारी पड़ रहा है। ये अब सरकारी स्कूलों के तरफ अपना रूख कर रहे है। क्योंकि कम आय वाले परिवारों के छात्र हर माह 500 से 700 रूपये के बीच स्कूल फीस देते थे। दरअसल काराना के कारण ऑनलाइन क्लास की फीस, स्मार्टफोन, लैपटाॅप के कारण खर्च बढने और आय के साधन कम या न होने से ये बच्चे निजी स्कूल छोड़ने को विवश है। यह खुलासा सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेश की प्राइवेट स्कूल इन इंडिया रिपोर्ट में हुआ। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने वर्चुअल रिपोर्ट जारी की। उन्होंंने कहा की कोरोना के कारण करीब 45 फीसदी छात्र अब निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों का रूख करेंगे और उन्होने कहा कि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए माॅडल रेग्युलेटरी एक्ट का ड्राफ्ट तैयार कर रही है। सरकार का लर्निंग आउटकम और गुणवत्ता युक्त शिक्षा पर जोर है। इस प्रकार 4.5 लाख निजी स्कूलों में 12 करोंड़ छात्र पढ़ते है। और गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लिए 74 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढाते है।तो वही हिसार में हुए सबसे ज्यादा 3434 दाखिला हुए है। जबकि गु़ड़गांव इस सूची में पांचवे स्थान पर रहा, यहां पर 2453 स्टडेंट ने सरकारी स्कलों में एडमिशन ले लिया। शिक्षा निदेशालय ने राज्य स्तर पर इन छात्रों की सूची जारी की है। वहीं अभिभावकों को भी कहा है िकवह अपने बच्चों को अभी भी सरकारी स्कलों में मुक्त दखिला दिला सकते हैं। गुड़गाव के करीबी जिलों की बात करें तो फरीदाबाद 2074, रेवाड़ी 2122, झज्जर 1502, नूंह 929, पलवल 1290 और सबसे कम दाखिला चरखी दादरी में 546 हुए है। शिक्षा विभाग की जिला परियोजना संयोजक, रिजुचैधरी जी का कहना की कोरोना काल के दौरान प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में एडमिशन ले लिया है। पिछलें साल के मुकाबले यह संख्या इस बार काफी अधिक है। पहले के मुकाबले सरकारी स्कूलों क्वालिटी एजुकेशन भी इसका एक मुख्य कारण है।
मंसूर आलम
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