बढाई जा रही हैंं, काल्‍पनिक स्‍वर्ग की सीमाऐं

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पं. नेहरू ने ही उन्‍हेंं राज्‍यसभा सदस्‍य बनाया परन्‍तु कुर्सी की अप्रेमी कलम न रूकी ”देखने में देवता सदृश्‍य लगता है, बन्‍द कमरे में बैठकर गलत हुक्‍म लिखता है। जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्‍यार हो, समझो उसी ने हमें मारा है।”

सत्‍यम् लाइव, 9 मई, 2020 दिल्‍ली।। एक तरफ जहॉ भारत सरकार सहित सब राज्‍यों की सरकारें, जनता की किसी भी गलती, पर चालान कर रही है और चालान भी कैसे कि दिल्‍ली में अगर पहली मंजिल से खडेे होकर, गली से निकल रही कूडे वाली गाडी पर, कूडा फेंकगा तो पॉच हजार रूपये का चालान किया जायेगा और साथ ही कूडे की गाडी एलान करती घूम रही है कि आधुनिक कैमरे जो लगाये गये हैं उससे आप निगरानी में हैं। अर्थ ये निकलता है कि भारतीय समाज में, चोरी न होने पाये इसलिये कैमरे नहीं लगाये गये हैं बल्कि आपके निगरानी करके दुकान खोलने पर या अन्‍य कानून कार्यवाही जनता पर करने केे लिये कैमरे लगाये गये थे। आज कल नोवेेल कोरोना यानि कोविड-19 के तहत पर बिना अनुमति के दुकानें खोलने पर, दुकानें सील की जा सकती है। बाजरों को लेकर छत्‍तीसगढ रायपुर में कहा गया है। थोक व रिटेल सब्‍जी के विक्रेता को कई बडी कॉलोनियों में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जायेगी। कारण है कोरोना फैल सकता है तो यह ये कोरोना सदैव ही भारत का निवासी होने वाला है और बिना सूर्य भगवान की अनुमति के, वो भी भारत देश मेें। जहॉ पर सूर्य देव विशेष रूप से मेहरबान रहते हैं। रायपुर में बिना मास्‍क पहने निकलने वालों से 56,180 रुपए और सार्वजनिक जगहों पर थूकने वालों से 31,370 रूपये और सामाजिक दूरी बनाकर न चलने वालों को 59,050 रुपए जुर्माना लिया गया है। सारी स्थिति को देखते हुए लगता है कि लॉकडाउन खुलने केे बाद हम सब 21वीं शताब्‍दी में प्रवेश कर चुके होगें। हर चीज ऑन लाइन होगी। बिना मास्‍क के बाहर निकलने पर चालान होगा 5000 रूपये का। आप ये कहेगें कि गरीब आदमी की तो पूरेे माह की इन्‍कम समाप्‍त हो जायेगी तो समयानुसार कम कर दिया जायेगा अभी तो नियम पर नियम बनाकर मनु स्मृति अपने शब्‍दों में लिखी जा रही है। साथ ही कोरोना वायरस वासुदेव कुटुुुुम्‍बकम् वाले देेेश में सोशल डिस्‍टेंसिंग यानि एक से दूसरे में फैलने की खबर बुद्धूूवक्‍सा अर्थात् टीवी के माध्‍यम से ऐसी फैलाई गयी है कि कल शाम को एक सब्‍जी बेचने वाली महिला को लोगों एक जगह खडे होकर सब्‍जी बेेेचने पर बहुत सारी बातेंं सुनाई वो गरीब महिला क्‍या करती? सिवाय रोने के, क्‍योंंकि वो विवश है उसे अपने बच्‍चों को पेट पालना है ये तो मात्र एक उदाहरण है। पूरा ही समाज ऐसी घटनाऐं लगातार सामने आ रही है मध्‍य प्रदेश में एक महिला एक टिफिन खाना दिखाकर कह रही है कि क्‍या इतने खाने में पूरा परिवार खाना खा लेगा? बाहर निकल नहीेंं सकते] कोरोना पकड लेगा खाना लेने निकलते हैं तब नहीं पकडता पर कमाने में पकड लेगा और यदि मास्‍क न लगायें तो मार खायें या फिर जुर्माना देना पडेगा। पैसा बचा नहीं है बच्‍चे की तबियत खराब है सारे डाक्‍टर केे क्लिनिक बन्‍द है करे तो क्‍या करें?कोरोना तो नहीं भूख से जरूर मर जायेगें। क्‍या कहें याद आती? मुझे 1865 में हरियाणा के गुरूग्राम में श्री बालमुकुन्‍द गुप्‍ता ही का जन्‍म हुआ। एक प्रबल आलोचक थे उन्‍होंने एक कहानी लिखी है ”एक दुरााश” एक बार अवश्‍य पढे आपको पता चला जायेगा कि अंग्रेज कैसे स्‍वर्ग की सीमा को बढाकर धरा तक लाना चाहते हैं ऐसा कलकत्‍ता से लेकर दिल्‍ली तक प्रतिदिन लोग भूख से मर रहे हैं पर सब तरफ सिर्फ विकास ही विकास है बिजली के खम्‍भे लगाकर बाहर ही रोशनी की जा रही है और लोगों के अन्‍दर अन्‍जाना भय का अन्‍धेरा छाता जा रहा है लोगों के घर की छते गिर रही हैं और स्‍वर्ग की सीमाऐं बढाई जा रही हैं। ये दशा बदली नहीं है सिर्फ शीरमौर बदला है। विकास की तरफ बढते कदम पर चलते चलते, हम सब भूल गये हैं कि जब जैन समुदाय के सायंकाल की बेला में मुॅह पर कपडा लगा लेता है तो उसे अन्‍धविश्‍वासी कहा जाता है परन्‍तु केन्‍द्रीय होते व्‍यापार ने आज इस स्थिति पर लाकार खडा कर दिया है कि आप अगर अब शर्ट खरीदने जायेगेें तो उसके साथ मास्‍क फ्री में मिलेगा और उसी कपडे का और उसी कलर का होगा। कुछ अच्‍छाई भी होगी कि गमछा रखना अब मजबूरी होगी, याद रखें जरूरी नहीं। ऐसी के राष्‍ट्रकवि‍ रामधारी सिंह दिनकर जी भी बात याद आती है और उनका 23 सितंबर 1908 को होता है और मृत्‍यु 24 अप्रैल 1974 को होती है और स्‍वतंत्र भारत के उन कवियों में गिनती होती है जो भारतीय के शासक से कभी भी सन्‍तुष्‍ट नहीं हुए और उससे भी बढकर 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्‍यसभा सदस्य चुनेे गये दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और फिर दिल्ली में आकर रूकना पडा। रामधारी सिंह दिनकर जी की भाषा सौम्य और मृदुभाषी लगती है परन्‍तु ऐसी बेबाक टिप्पणी होती है कि संसद में सभी की गर्दनें झुक जाती थीं। सबसे दिलचस्‍प बात ये है कि पं. नेहरू ने ही उन्‍हेंं राज्‍यसभा सदस्‍य बनाया परन्‍तु कुर्सी की अप्रेमी कलम न रूकी ”देखने में देवता सदृश्‍य लगता है, बन्‍द कमरे में बैठकर गलत हुक्‍म लिखता है। जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्‍यार हो, समझो उसी ने हमें मारा है।” संसद में आते हुए और शायद किसानों केे लिये बहुत कुछ करनेे का प्रयास किया होगा जब नहीं कर सके होगें तब फिर कलम ने आग उगली आज फिर कुुछ ऐसी स्थिति हैं कि राष्‍ट्रकवि‍ रामधारी सिंह दिनकर जी की वो कविता याद आती है जो उन्‍होंने दिल्‍ली के लिये ताज के लिये लिखी थी –

Ram Dhari

आज दिनकर कहॉ से लाऊॅॅ ? फिर भी उनका अनुसरण करके ”ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको वो देकर भी मरते हैं” इसी उनकी लिखी पंक्ति को जब समझने का प्रयास किया तो सच में महर्षि राजीव दीक्षित, स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती, आर्यभट्ट से लेकर लगद मुनि तक ने जो भारतीय विज्ञान का वर्णन किया है वो सामने आ गया। अब भारत के सूर्य सिद्धान्‍त की बात करे तो ये कहा जा सकता है कि भगवान सूर्य देव की नाराजगी सामने आने लगी है पिछले कुछ दिनों से सूर्य देव ने अपने कदम पीछे हटायें है और पानी को खुली छूट जो दे रखी है उसका एक उदाहरण छत्‍तीसगढ और बिहार में देखने को मिला परन्‍तु दुभार्ग्‍य लेकर फिर वही सामने आया तो गरीब था मात्र 15 मिनट के ओले ने छत्‍तीसगढ और बिहार के हाल विहाल कर दिया। इस तरह के मौसम ने अधिकांश फसल को चौपट हो चुकी है और सारा विकास धरा रह गया। सदैव विकास अपनी प्रकृति के हिसाब से होता है आज का ये विकास निसंदेह सूर्य की गति के विरोध में हाेे रहा है वाेे विदेशों से आगेे निकलने की होड में, उनकेे बताये मार्ग पर चलकर। इस विकास से सूर्य देव को हम भूलकर ये समझ बैठे हैं कि सूर्य हमारी रक्षा न करे, तो भी चलेगा। उसकी तैयारी 1840 से प्रारम्‍भ हो गयी थी और 1947 के बाद तो पूरी तरह से हुई। ये अवश्‍य कहा जा सकता है अपनी परिस्थितियॉ से और भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता की राहों से दूर, हम सब एक ऐसी दुनिया मेें प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं जो भविष्‍य में भी चुभती हुई कहानी दिल्‍ली की अच्‍छाईयॉ और अपने आने वाली पीढी के लिये काल्‍पनिक स्‍वर्ग की सीमा बढा रही है। सच्‍चाई की दशा कुछ भी हो परन्‍तु दिल्‍ली के राजा सहित, दुनिया के राजा ने भी कुछ नया करने को सोचा है। दूसरी तरफ अब ऐसा लगता है कि जैसे सौर मण्‍डल के राजा ने सभी ग्रहों को आदेश दिया है कि आओ अब नया विकास कराते हैं मुझे समस्‍या तो इन गरीबों की ही लगती है जो शायद पिछले जन्‍म के किसी जुर्म की सजा भुगत रहे हैं।

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सच कह रहा हूॅ ओले का आकार इतना बडा था कि लोगों की छत टूट गयी। पानी की टंंकी में बडा सा छेद हो गया। फिर वही गरीब आदमी करे तो क्‍या करें? घर भी टूट गये, बाहर जा नहीं सकता। आज हर समस्‍या उसी के सामने आती है जो पहले से ही अपनी समस्‍याओं को गिना रहा होता है परन्‍तु ये भी हमें समझ लेना आवश्‍यक है कि प्राकृतिक आपदा कभी जाति-पाति पूछकर नहीं आती है अत: काल्‍पनिक स्‍वर्ग की रचना को भूलकर, वास्‍तविक जीवन के दर्शन आने वाली पीढी को कराने चाहिए। हम सबने आने वाली पीढी के लिये, काल्‍पनिक स्‍वर्ग की ऐसी रचना कर रहे हैं जिसमें केवल सुख रहेगा और ये स्‍वर्ग वैसा ही होगा जिसकी कल्‍पना भौतिकवाि‍दियों ने की है जबकि भारत की संस्‍कृति और सभ्‍यता कहती है कि आप सभी अध्‍यात्‍मवादी हो परन्‍तु एक ऐसा स्‍वर्ग अब धरा लाने की ठानी है जिससे मनुष्‍य का जन्‍म लेने वाले को कुछ भी मेहनत न करनी पडे। सिर्फ और सिर्फ लेटा रहे उठे, बैठे भी तो मशीन होनी चाहिए। इतना विकास होना चाहिए कि कई पीढियॉ लेटे-लेटे खाऍ। ऐसी ही तैयारी में विकास चल रहा है और ये विकास वही है तो बाल मुकुन्‍द गुप्‍ता ने एक दुर्राशा’ में लिखा या फिर राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी दिल्‍ली के बारे मेें लिखा है। दूसरी तरफ ऑनलाइन में सोशल मीडिया पर लोगों केे व्‍यग्‍य भी चालू हैं ऐसा नहीं है जिसे लोग समझ नहीं रहे हैं तो देखें अब व्‍यग्‍य क्‍या है ?

  • बुजदिल, मूर्खो से यह ग्रह भरा पड़ा है
  • अब शायद स्कूल की आवश्यकता नहीं, ऑनलाइन क्लास है न!
  • बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है।
  • यह मान लिया गया है कि सभी बच्चे या उनके माता पिता न केवल एंड्रॉयड रखने की हैसियत रखते ही नहीं, बल्कि उन्हें चलाना भी जानते हैं।
  • जितनी पढ़ाई स्कूल में नहीं होती, अब ऑनलाइन होने जा रही है।
  • होमवर्क के नाम पर टीचर एक लिंक ठोंक देते हैं, किस्सा खत्म।
  • अब आप जूझते रहिए कि जवाब कहां से मिलेंगे। ग्रुप बनाया है। 40 का है तो 35 बच्चे कम से कम रोज चार विषयों के होमवर्क ठोंक रहे हैं।
  • शिक्षक का ज्ञान अब ऑन लाइन के सहारे चल रहा है। जो ऑनलाइन हो वही बच्‍चे को पढाओ
  • प्रेजेंट मैडम और गुड मॉर्निंग भी उपलब्‍ध है ऑनलाइन में।
  • स्क्रॉल करते-करते उंगलियाँ दर्द देने लगती हैं तो बोल के काम चला लो तब तो आयेगी सिर दर्द की भी बारी।
  • देश में सारे काम ठप्प पड़े हैं, सिर्फ बच्चों की पढ़ाई एडवान्‍स में चलानी पड रही है क्योंकि शिक्षक को पढना है और सिलेबस का टारगेट पूरा करना आवश्यक है।
  • अपने मुल्क में नौकरशाहों गुलामो का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है।
  • कोई ज्ञानी सज्जन हो तो कृपया बताएं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल को दीर्घकाल में होने वाली बीमारियों के बारे में कुछ कहता है क्या? या इसकी रेडिएशन के नुक्सान का भी
  • वायरस की तरह कोई टीका बनाने का मन है ?
  • इसे शिक्षा कहेंगे या साक्षरता ?

उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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