सत्यम् लाइव, 5 अप्रैल 2021, दिल्ली।। होली के बाद की अष्टमी को शीतला या बसौडा अष्टमी कहते हैं ये हिन्दुओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता को प्रसन्न करने के लिये के व्रत और पूजन किया जाता हैं। शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। स्कन्द पुराण में शीतला का वाहन गर्दभ बताया गया है हाथ में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते हैं।
अब चैत्र मास को में सूर्य मेष राशि में प्रवेश पर होता है और मेष राशि का सूर्य से ही भारतीय संस्कृति में नववर्ष भी प्रारम्भ माना जाता है। जब सूर्य 0 डिग्री पर हो तब आयुर्वेद में मसूर की दाल में नीम की पत्ती डालकर खाने को कहा गया है। साथ ही प्रात: दातून करने का विधान नीम से ही बताया गया है।
इसी विषय को लेकर भारतीय वैज्ञानिक गुरू श्री राजीव दीक्षित जी ने भी बसौडा अष्टमी को ही बताया है कि वात, पित्त और कफइसी तिथि को सम रहता है न बढता है न घटता है तो बासी भोजन कर सकते हैं अन्यथा शेष दिनों में वात, पित्त और कफ घटने या बढने के कारण 40 मिनट केे बाद भोजन बासी होने लगता है।
जब मेष के सूर्य को वैदिक गणित के अनुसार समझना चाहा तो सूर्य 0 डिग्री उत्तरायण काल में कहा गया है अत: बढती हुई गर्मी के कारण ये ऋतु पित्त कारक होती हैै जिससे आपके शरीर में पित्त बढेगा ही इसी कारण से हेमन्त ऋतु में संचित कफ असर दिखाता है। परन्तु बसौडा अष्टमी को वात, पित्त और कफ सम रहने के कारण माता शीतला पर सप्तमी को भोजन बनाकर अष्टमी को चढाया जाता है और प्रसाद के रूप में वही ग्रहण किया जाता है।
इस ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार नीम का पेड सबसे ज्यादा उपयोगी है ये ऋतु ही है जो चेचक होती है साथ ही पित्त कारक ऋतु होने के कारण शरीर के त्वचा के अन्य रोग भी हो सकते हैं अत: साफ सफाई के साथ नीम के पत्ते पानी में डालकर स्नान तथा पूरे घर में गंगा जल का छिडकाव किया जाता है। हवा में आये हुए वायरस को मारने के लिये ही गौ माता के गोबर तथा घी से हवन किया जाता है। गौ गोबर से शरीर पर लेपन कर स्नान करने से चेचक या अन्य शरीर पर होने वाले दाने समाप्त हो जाते हैं। वैसे कलश से तात्पर्य ही होता है कि स्वच्छता रखने से स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला माता को, मैं वंदन करता हूं। शीतला माता का यह वंदना मंत्र है कि जो बताता है कि स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी- ये संदेश देती हैंं कि सफाई के प्रति जागरूक होना ही चाहिए।
सुनील शुक्ल
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