- भययुक्त शिक्षक, भयमुक्त समाज नहीं बनाता
- ”वासुधैव कुटुम्बकम्” की भावना समाप्त करती आज की शिक्षा व्यवस्था
- कलयुगी सैनेटाइजर ने युग के गंगाजल का स्थान ले रही है। कारण शिक्षा व्यवस्था
- भारतीय संस्कार को अन्धविश्वास बताकर पश्चिम अपने व्यापार को मजबूत कर रहा है।
- सूर्य की गति पर अब पश्चिमी शिक्षा भारी पड रही है जबकि पश्चिम में सूर्य डूबता है उगता नहीं।
सत्यम् लाइव, 10 सिम्बर 2020, दिल्ली।। केन्द्र सरकार के दिये गये गाइडलांइस पर स्कूल और कॉलेज खोलने की तैयारी की जा चुकी है वहीं पर जो भी नियम स्कूल में छात्रों, अभिभावक या शिक्षक पर लागू होगें। वो सब काल्पनिक भययुक्त भारत का निर्माण करने जा रहे हैं। भययुक्त शिक्षक कभी भी भयमुक्त समाज की स्थापना नहीं कर सकता है। आज का अभिभावक को कह सकते हैं कि भयमुक्त है और जिस शिक्षक का कार्य ही है भयमुक्त समाज का निर्माण करना है आज वहीं शिक्षक भययुक्त होकर सरकार केे गलत नियम का विरोध करने की जगह सत्ता के साथ खडा हुआ दिखाई दे रहा है और आप सब चाहते है कि कलयुग समाप्त हो जाये तो ये कैसे सम्भव है? सरकार केे बनाये गये नियमों में 50 प्रतिशत स्टाफ स्कूल आयेगा तो फिर ये तय है कि 50 प्रतिशत में छॅटाई की जायेगी क्योंकि सरकार का खाता पहले ही खाली पडा है। सम्पूर्ण विश्व की एक मात्र धरती जहॉ पर श्रीराम, कृष्ण, गौतम, महावीर स्वामी, नानक जैसों ने जन्म लेकर इस धरा को धार्मिक सिद्ध किया जिससे एक निकला ”वासुधैव कुटुम्बकम्” उसी देश में आज सोशल डिस्टिेसिंग के नियम स्कूल के शिक्षक ही बालकों को सीखायेगें। सोशल डिस्टिेसिंग का सीधा सा अर्थ है सामाजिक दूरियॉ। प्रार्थना सभा नहीं करायी जायेगी। तो बालक को भारतीयता का ज्ञान समाप्त करने का प्रथम चरण ही श्रीराम भक्त को भी राजनैतिक दल दल में फंसा कर सत्ता पाने वालों किया है परन्तु सारे अंग्रेेेेजी के महान जानकार अब शान्त हैं। स्कूल में बच्चे अब खेल कूद भी नहीं करेगें। शिक्षक और छात्र आपस में कोई सामान लेन देन नहीं कर सकेगें। इस कारण से समाज में दूरियॉ जो बढनी आज प्रारम्भ होगीं उसका असर 5 साल बाद दिखाई देगा। थूकने तक पर प्रतिबन्ध लगाने का सीधा सा अर्थ है कि आज का शिक्षक या ये पश्चिमी शिक्षा सूर्य के बारे मेें कुछ नहीं जानती है। उस पर भी श्रीराम भक्त की कलयुगी भक्तों ने सारे रिकार्ड तोड दिये है जब गंगा जल को अन्धविश्वास बनाकर या व्यापारिक दृष्टिकोण देकर पैसा कमाया जा रहा है तो गंगा जल से भी ज्यादा कलयुगी सैनेटाइजर का छिडकाव चारों ओर किया जा रहा है और आज तक किसी भी धर्म के स्थापक बने मठ ने या वेदों को प्रचारित करने का दावा करने वाले मठ ने इसका विरोध नहीं किया है क्या धर्म का प्रचार भी पार्टी को देखकर किया जाता है। अगर सच किसी भी वायरस से निजात पानी है तो पहले आप अपने अगल बगल को देशी गाय के गोबर को जलाकर ही कर सकते हैं। परन्तु ये बात डब्लूएचओ को स्वीकार नहीं होगी इसी कारण से अवैज्ञानिक हो जाती है और प्रतिदिन यज्ञ कराकर अपने मठ की जीविका चलाने वाले भी इस विषय पर शान्त है जिससे साफ पता चलता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के चलो वेद की ओर को उनके कुछ विरोधयों निजि स्वार्थ के लिये चलो अंग्रेजों केे पीछे जो बनाया था वो आज स्वामी के चेले बनकर स्वामी जी को बदनाम कराने मेंं लगे हुए हैंं।
सुनील शुक्ल
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