देश का जीडीपी गिराने का वे सभी जिम्मेदार है जो हर गलत को राह को, विकास मानकर अपनाते चले जा रहे है।
सत्यम् लाइव, 28 सितम्बर 2020, दिल्ली।। कोरोना महामारी के कारण जो ऑनलाइन कक्षाऐं चालू की गयी है उस पर पिछले छ दिनों से छात्रों केे बीच मेें जाकर उनसे मिलने तथा कक्षाओं केे बारे में समझने का अवसर मिला। इस अवसर को मैं वैसे छोडना इसलिये भी नहीं चाहता था क्योंकि शिक्षा ही समाज सहित पूरे राष्ट्र का भविष्य निर्धारित करती है। यदि शिक्षा अपनी परम्परा को सीखाती है तो स्वयं के देश का विज्ञान समझ में आता है और यदि पराई होती है तो सदैव ही दूसरी की थाली अच्छी लगती है जो अंग्रेजों के आने के बाद आज तक चलता रहा है। इस विषय पर जानने का अवसर मुझे तब से मिलना प्रारम्भ हुआ जब महर्षि राजीव दीक्षित को समझने का अवसर मिला। फिर स्वामी दयानन्द सरस्वती के द्वारा बताई गयी जो शिक्षा व्यवस्था मैकाले को दी गयी थी उस पर कुछ अध्ययन प्रारम्भ किया। मैं ये बात पूरी विवेक के साथ कह सकता हॅू कि आयुर्वेद भारतीय रसोई के माध्यम से घर परिवार की रक्षा करता आया है और साथ ही ज्योतिष शास्त्र ने ही पूरे विश्व को गणित जैसे विषय के बाद विज्ञान सीखाई है। आज की इस शिक्षा व्यवस्था मेें बालक को अपनी गणित का कोई ज्ञान नहीं दिया जा रहा है और न ही दिया जा सकता है क्योंकि मानवता का आधार सूर्य की गति से निकलती है और ये ऑनलाइन का विकास ही सूर्य की गति का विरोध करता है। आयुर्वेद में दो भाग करके स्वस्थ रहने का तरीका बताया गया है एक है प्राकृतिक तौर पर तथा दूसरा है मानसिक तौर पर। इस ऑनलाइन सुविधा में कोरोना से बचा कर आपके बच्चे को मानसिक तौर पर बीमार बनाये जाने की कोशिश सौ प्रतिशत है यदि आयुर्वेद को समझे तो मानसिकता के विरोध में पूर्ण रूप से ये ऑनलाइन काम करता है। दूसरी तरफ विज्ञान दो आधारों पर खडा है एक है अध्यात्मवादी विज्ञान और दूसरा है भौतिकवादी विज्ञान। ये ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था भौतिकवादी विज्ञान से प्राप्त हुई है परन्तु आज भौतिकवादी विज्ञान अवश्य पढाई जायेगी क्योंकि इस विज्ञान में मात्र पैसा ही पैसा कमा कर सुख की प्राप्ति करनी है जबकि अध्यात्मवादी विज्ञान को यदि भारत के बालक को पढा दिया गया तो उसे ज्ञात हो जायेगा कि किस काल में कौन सा संक्रमण (वायरस) आने से कौन सा रोग आता है तब ये भौतिकवादी विज्ञान की कहीं भी जगह नहीं रहेगी साथ ही ये भी ज्ञात हो जायेगा कि अपनी धरा से प्राप्त होने वाली सभी वस्तुऐं ही हमारी प्रकृति के अनुसार हमारे जीवन की रक्षक बनती है विदेश से आया हुआ न ही संस्कृति हमारे लिये उपयोगी है और न ही सभ्यता। भारतीय संस्कृति का आधार ही सूर्य गति है इसी संस्कृति के आधार पर अर्थव्यवस्था का निर्माण किया गया है और अर्थव्यवस्था ही सभ्यता का निर्माण करती है। आप लोग विदेशी परम्परा को पूर्ण रूप सेे कभी अपना नहीं सकते हैं परन्तुु जैसे जैसे आप उस तरफ बढ रहे हैं आप वैसे वैसे शरीरिक एवंं मानसिक रोगों को निमंंत्रण दे रहे हैं। आज के अभिभावक से एक बात सुनने को अवश्य मिली कि स्कूलों को फीस नहीं देगें परन्तु एक ने भी ये बात नहीं बताई कि खेती हमारी लूट रही है। सबको अपने बच्चे को, एसी में बिठाना है, साहब बनाना है और आटा की जगह डाटा पर पैसा खर्च करना है। जरा सोचो कि ये निर्णय आपके सहित आनेे वाली पीढी को कौन से विकास केे मार्ग पर ले जायेगा? देश का जीडीपी गिराने का वे सभी जिम्मेदार है जो हर गलत को राह को, विकास मानकर अपनाते चले जा रहे है।
सुनील शुक्ल
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