सत्यम् लाइव, 18 जुलाई 2020 उत्तर प्रदेश।। जैसा की आप सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश भारत की अपनी संस्कृति और कला में अपना विशेष स्थान रखती है ऐसी ही बलिया में, इस समय विशेष जो कला देखने को मिली, वो विसारे नहीं विसरती है। बारिश का पानी के साथ खेतों पर अपनी जाति विरादरी को भूला, सारा किसान वर्ग एक साथ खेतों में लोकगीत की परम्परा का निर्वाह आज भी कर रहा हैै जिसमें सावन की बौछार केे साथ भगवान शंकर की महिमा का वर्णन किया जा रहा है। सब खुश हैं पानी में एक साथ उतर कर, भारत की मिट्टी को चूम रहे हैं। पूरा वर्णन ऐसे देखने को मिला की दिल को लगा कि यही वस जाये और घूल-मिल अपना जीवन बिता दें।
पूरा वाक्या ये है कि बलिया (उप्र) जिले के बांगर क्षेत्र में धान की रोपाई का कार्य इस समय जोर- शारे से चल रहा है। यह वह समय है जब मेघ अपने चरम पर होते है, बारिश खूब होती है। जिससे किसानो को धान की रोपाई करने में बहुत मदद मिलती है। और मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून बहुत अच्छा होने वाला है। बारिश के बाद खेतों में महिलाओं और पुरूषों का समूह देखा जा रहा है। पुरूष नर्सरी उखाड़ कर तैयार खेतों में पहुुॅुॅचाने में लगे हैं तो महिलाएं कजरी गीत के मधुर तान के बीच धान की रोपाई में जुट गयी हैं। बीच-बीच में रिमझिम बारिश के बीच कजरी के मधुरतान से खेत गुलजार हो गए है। यह समय खरीफ फसलों का है, पूर्वाचंल जिले में खरीफ की मुख्य फसल धान की सबसे ज्यादा खेती बांगर क्षेत्र में होती है। इस क्षेत्र में कस्बा से लगे गाॅव में धान की रोपाई आधे से अधिक हो गयी है। इस साल अच्छी बरसात के चलते ज्यादातर किसानों ने रोपाई का कार्य पूरा भी कर लिए है। जुलाई के पहले सप्ताह से बारिश होने की उम्मीद की जाती है, और समय भी यही होता है। जैसे ही बारिश की बूंदे धरती पर पड़ती है यह बूंदे धान की फसल के लिए अमृत बूंद बनकर पौधे के हरियाली को बढाने का कार्य कर देती है। मुख्य क्षेत्र सिकंदरपुर, रतसर, सिकंदपुर हनुमान गंज, बलिया, बाॅसडिह, और मनियर से लगे गाॅवो में धान की रोपाई अपने अंतिम चरण में पहुंच गयी है। लाॅकडाउन के चलते बेरोजगार होकर गांव पहुुंचीं, महिलाएं और पुरूष एक साथ सुर में सुर मिलाकर, भारतीय संस्कृति और लोक-कला की परिचायक बन रही है और सावन का महिना भी शुरू हो चुका है, धान की नर्सरी उखाड़ रहे पुरूषों का समूह ‘हरि हरि गउरा भइली कैलास शिव काशी ए रामा’ गाता है साथ तुकबन्दी मिलाते हुए महिलाएं ‘‘निहुरी-निहुरी करीं धान की रोपनिया‘ ‘बदरा आईगइ ले ना अइले पिया परदेशिया ना …….’‘ जबाव देती है। जैसे गीत सावन के सोमवार को सुन मन बाग-बाग हो उठा। बलिया के शिक्षक, कवि व गीतकार डाॅ. शशि प्रेमदेव ने बताया कि देश के जनमानस पर हमेशा लोक संस्कृति का वर्चस्व रहा है। गीत, संगीत व नृत्य जीवन शैली के अभिन्न अंग है। यही कारण है कि गांव की महिलाएं रोजमर्रा के कामों की नीरसता और थकान को दूर करने लिये तथा हर्ष-विषाद की भावनाओं को व्यक्त करते हुए तनाव मुक्ति केे लिये लोकगीत गाती हैंं। डाॅ. प्रेमदेव ने बताया कि कजरी के मुख्यतः चार अखाड़ा है- पं. शिवदास, जहांगीर, बैरागी, अक्खड़ अखाड़ा हैं।
मंसूर आलम
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