सत्यम् लाइव, 1 सितम्बर 2020, दिल्ली ।। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं। अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहना है कि जीडीपी ठीक वैसी ही है, जैसे ‘किसी छात्र की मार्कशीट’ होती है। छात्र ने सालभर में जितनी मेहनत की है उसी हिसाब से उसको परिक्षाफल आता है उसी तरह जीडीपी आर्थिक गतिविधियों के स्तर पर दिखाई देता है।

केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020-21 वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से लेकर जून तक के बीच विकास दर में 23.9 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अपने उस समय की जीडीपी के 23.9 प्रतिशत कम हो गयी है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा हैै कि ये 18 प्रतिशत तक गिर सकती है। जीडीपी के इन नए आंकड़ों को साल 1996 के बाद से ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी गिरावट बताया गया है। इस मुख्य कारण है कि जीडीपी के आंकड़े बताते हैं कि मार्च तिमाही में उपभोक्ता ख़र्च धीमा हुआ, निजी निवेश और निर्यात कम हुआ। जीडीपी की गिरावट तभी से प्रारम्भ हो गयी थी। जिस दिन से नोट बन्दी की घोषण प्रारम्भ की गयी थी और वो नोट बन्दी करने का मुख्य कारण गलत दिशा में लगातार कराया जा रहा निवेश था जबकि सफलता पूर्वक शासन और प्रशासन ने यूवी जैसे कई कार खरीदी। परन्तु अब आयी नयी रिपोर्ट में मंत्रालय ने कहा है कि 25 मार्च से देश में लॉकडाउन था और अब अधिकतर निकायों ने कानूनी रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा बढा दी गयी है। कहने का अर्थ साफ है कि जनता से टैक्स केे रूप लेकर ही जीडीपी बढा सकते हैं ये अर्थशास्त्र है या अनर्थशास्त्र ये विचार करना ही पडेगा। भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपना काम करती चली जा रही है और हम सब जीडीपी बढेगा ये प्रतीक्षारत है यही कार्य जब विपक्ष कर रहा था जब FDI का जमकर विरोध बीजेपी प्रधान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित सभी बीजेपी केे नेता ने किया था

और अब जीएसटी को लेकर तथाकथित राजनीतिज्ञों में खींचा तानी प्रारम्भ हो गयी है। एक भी अर्थशास्त्र अभी तक ये बताने को तैयार नहीं हैै कि GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के घटक में उपभोगता और निवेशक की आवश्यकता है इसमें सबसे ज्यादा खर्चा सरकारी व्यय पर किया जा रहा है जबकि शुद्ध निर्यातक तो है वो भी स्वयं GNP सकल राष्ट्रीय आय के नाम पर विदेशी मुद्रक है। ऐसी दशा में आप अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि आपका GNP बढ जायेगा और GDP में व्यक्तिगत घरेलू व्यय जैसे भोजन, किराया, चिकित्सा साथ ही अन्य व्यय जैसे चोरी, डकैती अर्थात् पुलिस का खर्चा शामिल है परन्तु घर में उपभोगता के बनायी गयी वस्तु शामिल नहीं है अर्थात् घर में बनायी गयी उपभोग की वस्तु जैसे रोटी, सब्जी, अचार या अन्य उपभोग की वस्तु जो स्वयं घर में बनाकर उपयोग की जाये वो शामिल नहीं है तो कैसे मान लें यहॉ पर जो बुद्धिजीवि जो बात कर रहे है जो वो GDP पर कर रहे हैं जबकि देश केे GNP सकल राष्ट्रीय आय पर विदेशी मुद्रा लगी हुई है और जो फायदा उठायेगा वो मुद्रा लगाने वाला ही उठायेगा ये तो व्यापार का नियम है कोई यूूॅूॅ ही नहीं पैसा लगाता है और फिल्मी पटकथा की तरह, दोषी भगवान को बता दिया जाता है। आप कहते हो विपक्ष कमजोर है मैं कहता हॅू खेल उसी ने प्रारम्भ किया था ये सहयोगी बनेे हुए हैं और इसके बाद जो भी सरकार आयेगी वो भी इसी प्रोटोकॉल केे तहत् यही मार्ग पकडेगी।
सुनील शुक्ल
Discover more from Satyam Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.