सत्यम् लाइव, 16 फरवरी 2021, दिल्ली।। ”कहॉ राजा भोज कहॉ गंगूतेली” की कहावत आपने सुनी होगी परन्तुु ये बात कोई नहीं बताता है कि राजा भोज का जन्म बसन्त पंचमी को हुआ था। महाराजा भोज माता सरस्वती के वरदपुत्र भी थे। तपोभूमि धारा नगरी उनकी तपोस्थली रही है। कहा जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था ।
तब उसका नाम भोजपाल नगर था । जो कि कालान्तर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया। इनका कार्यकाल आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक माना जाता है। और इसी स्थल पर साधना से प्रसन्न हो कर माँ सरस्वती ने स्वयं प्रकट हो कर दर्शन दिए।
माँ से साक्षात्कार के पश्चात उसी दिव्य स्वरूप को माँ वाग्देवी की प्रतिमा के रूप में अवतरित कर भोजशाला में स्थापित करवाया जहाँ पर माँ सरस्वती की कृपा से महराजा भोज ने ६४ प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त की। उनकी अध्यात्मिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक अभिरुचि, व्यापक और सूक्ष्म दृष्टी, प्रगतिशील सोच उनको दूरदर्शी तथा महानतम बनाती है। महाराजा भोज ने माँ सरस्वती के जिस दिव्य स्वरूप के साक्षात् दर्शन किये थे
उसी स्वरूप को महान मूर्तिकार मंथल ने निर्माण किया। भूरे रंग के स्फटिक से निर्मित यह प्रतिमा अत्यन्त ही चमत्कारिक, मनोमोहक एव शांत मुद्रा वाली है, जिसमें माँ का अपूर्व सोंदर्य चित्ताकर्षक है। माँ सरस्वती का प्राकट्य स्थल भोजशाला हिन्दू जीवन दर्शन का सबसे बड़ा अध्यन एवं प्रचार प्रसार का केंद्र भी था जहाँ देश विदेश के लाखों विद्यार्थियों ने १४०० प्रकाण्ड विद्वान आचार्यो के सानिध्य आलोकिक ज्ञान प्राप्त किया । इन आचार्यो में भवभूति, बाणभट्ट, कालिदास, धनपाल, बौद्ध संत बन्स्वाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात है।
सुनील शुक्ल
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