सत्यम् लाइव, 3 जुलाई 2020, दिल्ली।। सदैव जीत का अर्थ ये नहीं होता कि सच्ची लगन और निष्ठा के साथ ही जीत आयी है। अक्सर दूसरे के खराब प्रदर्शन के कारण भी जीत का सेहरा बॅॅध जाता है गलत दिशा की ओर बढते कदम, गलत ही कहे जायेगें वो कोई भी बढाये। तालियों की गूॅज भी सदा जीत के जश्न को नहीं बताती है। भगवान को मनाने के लिये भी बजती हुई नजर आती है ऐसी ही तालियों की गूॅज जनता की तरफ से जो आ रही है उससे ये पता चलता है कि जनता समझ चुकी है कि कटना हर बार बकरे को ही पडता है वो नवरात्र हो या फिर ईद। इतनी सी बात शेष सबको समझ लेनी चाहिए। दिल्ली केे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि “राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा 10 कमियॉ का वयां किया हैं।
- शिक्षा का अधिकार तो एजुकेशन ऐक्ट के तहत लाने पर भी इस पॉलिसी में स्पष्ट नहीं कहा गया है कि आठवीं तक शिक्षा फ्री है।
- कम उम्र के बच्चों को आंगनबाड़ी और प्री प्राइमरी दोनों तरह की शिक्षा की बात इसमें कहीं गई है ऐसे में उनके लिए समान शिक्षा कैसे संभव होगी? एक बच्चे को आंगनबाड़ी सेविका पढ़ाएगी और दूसरे को स्कूल में प्रशिक्षित टीचर से शिक्षा मिलेगी तो उनके बीच बराबरी कैसे आएगी?
- नई शिक्षा नीति पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है इसमें सोच तो नई है पर जिन सुधारों की बात की गई है, उन्हें कैसे हासिल किया जाए, इस पर चुप्पी या भ्रम है. सिसोदिया के अनुसार नई शिक्षा नीति के बुनियादी सिद्धांत अच्छे हैं, लेकिन इनका अनुपालन कैसे हो, स्पष्ट नहीं है।
- बच्चों को उच्चस्तरीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना सरकार का दायित्व है। पूरी दुनिया में जहां भी अच्छी शिक्षा व्यवस्था है, वहां सरकार खुद इसकी जिम्मेदारी लेती है लेकिन इस शिक्षा व्यवस्था में सरकारी स्कूल सिस्टम को इस ज़िम्मेदारी को लेने पर सीधा जोर नहीं दिया गया है बल्कि इसमें प्राइवेट संस्थानों को बढ़ावा देने की बात कही गई है। सिसोदिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने भी प्राइवेट संस्थाओं को शिक्षा की दुकान करार दिया था इसलिए हमें प्राइवेट स्कूलों के बदले सरकारी शिक्षा पर जोर देना चाहिए।
- नई शिक्षा नीति में वोकेशनल कोर्स को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है लेकिन इस कोर्स के बच्चों का यूनिवर्सिटीज में एडमिशन नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे स्नातक की डिग्री के बाद भी सिविल सर्विसेज की परीक्षा में भी नहीं बैठ सकते हैं।
- नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर उच्च शिक्षा में एडमिशन के लिए इस एजेंसी द्वारा टेस्ट होने हैं, तब बोर्ड की परीक्षा क्यों कराई जा रही है?
- पॉलिसी में बोर्ड परीक्षा को आसान करने की बात कही गई है, जबकि मुद्दा आसान और कठिन का है ही नहीं। बच्चों की समझने की क्षमता का मूल्यांकन करना है न कि उनकी रटने की क्षमता का मूल्यांकन करना। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पॉलिसी पुरानी मान्यता के बोझ से ग्रसित है। आज दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में क्या नए प्रयोग क्या हो रहे हैं, इस पर विचार करने में नई शिक्षा नीति पूरी तरह से विफल है।
- नई नीति में मल्टी डिसीप्लिनरी उच्च शिक्षण संस्थाओं की बात कही गई है लेकिन विषय केंद्रित स्पेशलिस्ट संस्थाओं को खत्म करने की बात कही जा रही है जबकि देश में दोनों तरह के संस्थान हैं और सबकी अपनी जरूरत है। यह पॉलिसी सेक्टर स्पेसिफिक संस्थाओं को बर्बाद करने पर आधारित है। ऐसा लगता है जैसे आईआईटी में एक्टिंग सिखाने और एफटीटीआई में इंजीनियरिंग सिखाने का काम किया जाएगा। सेक्टर स्पेसिफिक संस्थाओं की जरूरत दुनिया भर में है। आईआईएम में मेडिकल की पढ़ाई और एम्स में मैनेजमेंट की पढ़ाई नहीं हो सकती है।
- नई पॉलिसी दिशा देने के बदले भ्रमित करती है ओवर रेगुलेशन की मोह माया से बाहर निकलने और स्कूलों को स्वायत्तता देते हुए इंस्पेक्टर राज खत्म करने का सुझाव दिया है।
- नई शिक्षा नीति में स्पोर्ट्स की बात मिसिंग है. शिक्षा में खेलकूद को शामिल न करना आश्चर्य की बात है।
इस बने शिक्षा नीति पर अब मैं कुछ कहूॅ तो अतिशोक्ति होगी, क्योंकि भारतीय शिक्षा आज तक पूरी दुनिया में फैलाने का कार्य जिसने किया है उसमे कोई साधारण नाम नहीं आते हैं महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध जैसो के नाम आते हैं जिनकाे भगवान की श्रेणी में रखा गया है। इस पर अगर आज का राजा कहे कि दुनिया की विद्या में अच्छी शिक्षा व्यवस्था है तो यह सोचना पडता है कि भारतीय को अपनी शिक्षा व्यवस्था का कितना ज्ञान है? अर्थव्यवस्था सभ्यता का अंग है और संस्कृति सूर्य की गति है। भारतीय शास्त्रों में सूर्य की गति से त्यौहार मनाये जाते हैं।
सुनील शुक्ल
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