सत्यम् लाइव, 13 अप्रैल 2021, दिल्ली।। भारतीय शास्त्रोंं में पंच अंग का महत्व सभी जगह पर बताया गया है और इस पंच अंग का विश्लेषण सौर मण्डल से प्रारम्भ होता है इसी सौर मण्डल के साथ वनस्पति का सम्बन्ध जोडकर पंच अंग का महत्व वनस्पति में बताया गया है सौर मण्डल से उत्पन्न जीव का सम्बन्ध जोडकर पंचतत्व का वर्णन ”क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंचतत्व यह उद्यम शरीराा” का वर्णन तुलसीदास जी ने किया है।
इसी तरह से सौर मण्डल के पॉच अंग का वर्णन करता पंचाग, सम्पूर्ण वैदिक गणित पर आधारित है। इसी वैदिक गणित के आधार पर महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी ने काल अर्थात् समय का वर्णन किया है। इस वैदिक गणित का आयोजन 14 अप्रैल से वैदिक शिक्षा केन्द्र प्रारम्भ करने जा रहा है जो आने वाली पीढी को इसकी वैज्ञानिकता बतायेगा।
चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। पंचाग के अनुसार, चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि के पहले दिन से ही नव-संवत्सर 2078 के आरंभ होता है धार्मिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को ही सृष्टि की रचना की थी। अष्ठदशभुजाधारी मॉ प्रारम्भ के नव दिन धरती पर निवास करती है इसी कारण से चैत्र नवरात्रि का उत्सव होता है।
माता के स्वागत के साथ ही चारों ओर पकी फसल का दर्शन, आत्मबल और उत्साह को जन्म देता हुआ शक सम्वत् 2078 का स्वागत चहूॅ ओर से होता है साथ ही खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हसिये का मंगलमय खर-खर का गुंजता स्वर और खेतों में ऋतु के स्वागत के महिलाओं द्वारा गाये जाते गीत। जरा दृष्टि को प्रकृति की वैज्ञानिकता पर नजर डालें तो भारत का आभा मंडल के चारों ओर से चैत्र मास में धरती माता की प्रसन्नता से लहलहाता हुआ दिखाई देता है।
सुनील शुक्ल
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