सत्यम् लाइव, 20 सितम्बर 2020, दिल्ली।। झारखण्ड में सहायक पुलिसकर्मी जो स्वयं को स्थायी करने की मॉग कर रहे थे उन सभी को स्थायी पुलिस कर्मी ने जमकर लाठी चलाई। वैसे आज के समय में आन्दोलन करना ही सबसेे ज्यादा खतरनाक है वो चाहे किसान हो या फिर पुलिस का। पहले तो इस सहायक पुलिसकर्मी पर एक नजर डालते हैं – ये सहायक पुलिसकर्मी नक्सल प्रभावित 12 जिलों में तीन साल पहले रघुवर दास की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट पर, 10 हजार रुपये प्रति माह वेतन पर भर्ती किये गये थे अब तीन साल पूरे हो रहे हैं 31 अगस्त 2020 को। तीन साल पूरे होने पर यदि आवश्यकता होती है तो 1-1 साल बढाकर मात्र 5 साल तक ही अस्थायी तौर रखकर बाहर कर दिया था। अत: ये सहायक पुलिसकर्मी ये मॉग कर रहे है कि इन्हें स्थायी किया जाये। इन्हीं सहायक पुलिसकर्मी में कई पुलिसकर्मी ऐसे भी होगें जिन्होंने कोरोना के लॉकडाउन में गरीब जनता पर अपनी लाठियॉ चलाई होगीं। जो पूर्णतया निर्दोष थी क्योंकि लॉकडाउन हो या फिर कफर्यू, पुलिस का काम जनता की रक्षा करना है और आतंक को रोकना है परन्तु 1860 से पुलिस को कार्य ही निर्दोष जनता को सताना और दोषी को नमन् करना रहा है वो अस्थायी पुलिस हो या स्थायी। अब जब
रांची के मोराबादी मैदान में सहायक पुलिस स्वयं को स्थायी करने की मांग को लेकर आंदोलन कर मुख्यमंत्री आवास पर ज्ञापान देने जा रहे थे तभी सहायक पुलिस कर्मियों ने शुक्रवार को बैरिकेडिंग पर अपनी नाराजगी जताते हुुए, बैरिकेडिंग को उखाड़ दिया गया।

स्थायी पुलिस ने लाठीचार्ज करके, आंसू गैस के गोले छोड़े। मिली जानकारी के मुताबिक इनमें दो दर्जन से अधिक पुलिस कर्मी शामिल हैं। इसके अलावा पुलिसकर्मियों को भी चोटें आई हैं। रांची जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र झा खुद मौके पर पहुंच कर निरिक्षण किया। सरकार इन 2,350 सहायक पुलिसकर्मियों के कॉन्ट्रैक्ट को आगे बढ़ाने के मूड में नहीं है, न ही इन्हें स्थायी नौकरी देने का ठोस आश्वासन दे रहे हैं। सहायक पुलिसकर्मी का कहना है कि तीन साल तक हम लोगों ने जान जोखिम में डालकर नक्सल प्रभावित जिलों में लोगों को सुरक्षा दी।
सुनील शुक्ल
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