सत्यम् लाइव, 7 जून 2021, दिल्ली।। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर में अगले वर्ष होने वाले विधान सभा के चुनाव में, अब फील्डिंग सजती हुई दिखाई देने लगी है, 2022 के फरवरी, मार्च में होने वाले चुनाव की तैयारियाॅ सभी पार्टियों ने प्रारम्भ कर दी है सारी ही पार्टियाॅ अब ये सिद्ध करने में लग गयी है कि वो ही जनता की परम हितैशी हैं और नये नये राजनीति में आ रहे हैं वो किसी न किसी पार्टी के संग खडे हुए दिखने लगे हैं जैसा कि ये घोषणा हो चुकी है कि कोरोना काॅल में चुनाव को निश्चित समय पर ही कराया जायेगा और अन्तिम परिणाम 22 मई 2022 तक घोषित किया जायेगा। इसी कारण से सभी पार्टियों के शीर्ष नेता भी अपनी अपनी पार्टी के मेम्बर को तय करने के साथ जनता के बीच भी दिखाई देने लगे हैं। सारी ही पार्टियोें में कुछ न कुछ तो खींचातानी होती ही है उसी तरह से भाजपा में भी है परन्तु अन्दर खाने की खबर बाहर न आ जाये इस कारण से भाजपा सहित सभी पार्टियों के नेता अपनी इन्कार करते हुए नजर आ रहे हैं।
चुनाव से पहले नेताओं का पार्टियों बदलना कोई नई बात नहीं है चुनाव विश्लेषक प्रोफेसर अनिरुद्ध नागर जी का कथन कि ये चलन हो गया है कि आप जमीन पर काम करें यह जरूरी तो है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि जमीनी नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया जाए। वह भले किसी भी दूसरी पार्टी का हो। इसके पीछे का राजनीति शास्त्र यही कहता है कि आपकी पार्टी की मेहनत और किसी भी दूसरे दल के बड़े जनाधार वाले नेता को तोड़कर अपने साथ मिलाने से ताकत निश्चित तौर पर बढ़ जाती है। जो चुनाव के दरमियान बड़े वोट बैंक के तौर पर उस पार्टी के साथ आ जाती है और नतीजे बदल जाते हैं।
सुनील शुक्ल
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