कूलर, अलमारी, फर्नीचर का काम करने वाले हिन्दु – मुस्लिम दोनाेें ही हैंं और सब एक साथ बैठकर खाना खाते है
सत्यम् लाइव, 22 अप्रैल 2020, दिल्ली।। दिल्ली हो या उप्र, मप्र हो राजस्थान सब जगह पर पिछले तीन चार वर्षों से निराशा का महौल बना हुआ है दिल्ली के व्यापारी से मिलने केे कई मौके मिलें पहले तो नोट बन्दी ने बाजार पर असर डाला तो दूसरी बार इन्तजार करता रहा कि जीएसटी में क्या नया होगा ? ये दोनो ही समय ऐसा था जब भारत में शादी कामकाज होते हैं और यही वो समय होता है जब भारत की बाजार में रौनक होती है। नव विवाहित जोडे को अपनी रसोई को जोडने के लिये उपहार के रूप में, लडकी लडके के परिवार वाले मिलकर कुछ न कुछ देते हैं जिससे उन्हें रसोई सजाने में आग समस्या का सामना न करना पडे। अब इस वर्ष एक ऐसी मार पडी है जो व्यापारी ने सामान कम्पनी से उठाया था या जो आर्डर किया था वो सब उनके गोदाम में या कहीं रास्ते में ही गाडी में है। कुछ व्यापारी का तो कहना है कि मैं पेमेन्ट कर चुका हूॅ अब वो माल मेरा है गाडी वाले को या कम्पनी मालिक को तो मानवता के तहत पर चिन्ता हैै परन्तु पैसा तो मेरा लग चुका है अब उस माल को सड जाये तो मेरा पैसा जायेगा और बेच लूॅ तो मुझे पैसा मिल जायेगा। ये बात तो तब व्यापारी गण से हुई थी जब नोट बन्दी हुुुई या फिर जब जीएसटी लागू हुआ। उस समय व्यापारीगण ये सोच कर चुप था कि आगेे आने वाला समय अगर अच्छा काम चले तो इस कष्ट को सह लेगें। जिस व्यापारी से मिलो वही ये कहता हुआ नजर आता था कि जरूरी था अब काम और अच्छा होगा परन्तु इस बार व्यापारीगण अपनी किस्मत कोसता हुआ नजर आ रहा है और कह रहा है कि किसी ग्रह का चक्कर नहीं है बल्कि गलती नितियों के कारण हम सबका काम बन्द हुुुुआ है।

कोरोना वायरस महामारी से कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जिसको इस महामारी के कारण आथिर्क क्षति ना हुई हो।ऐसा ही हाल दिल्ली के कूलर बाजार का है। कूलर बाजार से जुडे व्यापारियों ने तहलका संवाददाता को बताया कि गर्मी का एक महीना अप्रैल अब समाप्त होने को है.। पर कूलर, फ्रिज एवं एसी का व्यापार शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा है। वजह कोरोना वायरस के कारण लाँकडाउन का होना। व्यापारियों का कहना है कि अगर मई के महीनें में भी लाँकडाउन रहा तो कूलर विक्रेताओं के सामने विकट विषम समस्या पैदा हो जायेगी। क्योंकि कूलर का व्यापार मई के महीने में जोरों पर ही होता है। नोवेल कोरोना ने भारत में ऐसे समय पर प्रवेश किया है जब भूतपूर्व भारतीय महान गणितज्ञों की गणित को गलत साबित कर दिया है इस नोवेल कोरोना जैसे व्यापक विषय को लेकर जब व्यापारीगण के पास पहुॅचे तो पहले तो समझ ही नहीं आया कि ये सब मुझसे नाराज हैं या फिर अपना क्रोध नोवेल कोराना पर उतार रहे हैं। कुछ देर उन्हें शान्ति के साथ बात करने पर समझ में आया कि कुछ सरकार से नाराज है तो कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी किस्मत को दोष दे रहेे हैं। जब बात आगे बढी तो पता चला कि दीवाली से लेकर जून ही भारत की बाजार विशेष तौर पर चलती है अर्थशास्त्र के ज्ञाता अमित चौधरी जो व्यापार मण्डल में पदाधिकारी भी है का कहना था कि नोट बन्दी नवम्बर मेें होती है उस समय भी शादी-कामकाज का समय था फिर जीएसटी जुलाई में लगती है चलो वो जरूरी था पर अब किस्मत को दोष दें या फिर सरकार को जब बाजार अपनी उठान होती है तब ये वायरस आ जाता है। कोराेेेेना को लेकर जब दूसरे समुदाय तक बात पहुॅचे तो पूरा व्यापार मण्डल एक साथ बोल पडा कि कूलर, अलमारी, फर्नीचर का काम करने वाले हिन्दु – मुस्लिम दोनाेें ही हैंं और सब एक साथ बैठकर खाना खाते हैं और एक दूसरे का मजाक मानवता के साथ भी उडाते रहते हैं मैं देखा है कि कभी कुछ नहीं होता है। फिर ये सब राजनीति के तहत आप मीडिया वाले ही गलत खबर दिखाते हैं। इस पर मैं उन्हें कुछ जबाव न दे सका क्योंकि इस बार मीडिया पर बहुत उॅगली उठी हैं। मीडिया के पुराने पत्रकारों ने भी मीडिया पर उॅगली उठाने से नहीं चुके हैं। बिना नाम लिये हुए कहता हूूॅूॅ कि एक बुर्जुग पत्रकार ने तो यहॉ तक कह दिया कि न्यूज एंकर अब न्यूज के साथ ही ये भी बताते हैं कि किस कम्पनी का सामान बाजार में आपके लिये उपलब्ध है आगे बोले कि मैं उन एंकारो ये नहीं पता कि जनता को उनके जीवन में उपयोगी या गलत जो होने जा रहा है उसके लिये समाचार सुना रहे हो या फिर उन कम्पनी से अपनी जीविका लेकर उनका प्रचार कर रहे हो। अपनी कारखाना और दुकान को बन्द पडा देखकर दु:खी व्यापारीगण जो कह रहा था वो उसके दिल से निकली हुई सत्यता सी प्रतीत हो रही थी। एक जगन नाम के मजदूर ने बताया कि मेरी बेटी का विवाह था मालिक से मैने 50,000 रूपये लिये थे। मेरे सभी साथी (जिसमें हिन्दु और मुस्लिम शमिल हैं) ने मिलकर 20,000 रूपये और देने को कहे थे मैनें 50,000 रूपये उठाकर शादी के लिये तैयारी में लगा दियेे थे। शेष पैसा घर परिवार में अब बैठे-बैठे खर्च हो गया अब बेटी का विवाह कैसे होगा? ऐसा दृश्य देखने को कई जगह मिला तो मेरा दिल तो कठोर हो गया है परन्तु जो सत्य है वो ये कि मेहनती गरीब आदमी ही परेशान है जो अलमारी या फर्नीचर का कारखाना लगाकर बैठा है वो भी ज्यादा से ज्यादा छ: माह बैठकर खा सकता है उसको भी मेहनती गरीब आदमी ही समझें। जब ये पूछा कि ये सन्नाटा बाजार में कब तक रहने वाला है तो व्यापारीगण कहता है कि अगर कोई दूसरी गलत योजना न आयी तो लगभग दो साल। पैसा किसी के पास नहीं है। लॉकडाउन समाप्त होेनेे पर क्या होगा ये तो नहीं पता पर अभी तो चालान होेनेे का समय तब ज्यादा आयेगा जब लॉकडाउन समाप्त होगा। ऐसी खबरें उप्र और मप्र से आयी भी हैं। दिल्ली में अभी इतने दुकानों के चालान नहीं हुए हैं पर एक प्रतिशत चलती गाडी में उनके 25 प्रतिशत गाडी के चालान हुए हैं।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
Discover more from Satyam Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.