गुरू पूर्णिमा का वैदिक गणित के साथ महत्व

सत्यम् लाइव, 24 जुलाई 2021, दिल्ली।। भारतीय शास्त्रों में काल का चित्रण करने के लिये पूरा जीवन कम पड़ता है यही सर्वधा सत्य है आज के समय में जब गणित का जनक भारत अपने शास्त्रों की गणित को भुला हुआ है और दूसरे के बताये मार्ग पर विकास की परिभाषा आने वाली पीढ़ी को समझा रहा है तब तो ये और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है कि काल को समझा या समझाया जाये।

भारतीय शास्त्रों में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ‘‘गुरू पूर्णिमा’’ की संज्ञा हमारे पूर्वजों ने ही दी है। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

सर्वप्रथम गुरू का अर्थ समझना परमावश्यक है। गुरू का अर्थ है जो अन्धकार को समाप्त कर प्रकाश की ओर ले जो उसे गुरू कहा जाता है। जो तिमिर को उजाले में बदल दे उसे गु अर्थात् तिमिर रू अर्थात् निवारण अर्थात् उज्जवल भविष्य की ओर। आषाढ़-सावन में सूर्य की गति को 60-90 डिग्री और 90-120 डिग्री बताई गयी है आषाढ़ में मिथुन संक्रान्ति पड़ती है जिसके स्वामी सूर्य देव हैं। सूर्य अग्नि तत्व होने के मानव शरीर में मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा सावन के मास में कर्क संक्रान्ति होने के कारण स्वामित्व चन्द्रमा को प्राप्त है जो वायु तत्व और जल तत्व प्रधान है अतः इस माह हृदय सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो सकते हैं।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा से चौ मासे में एक स्थल पर ही रूकने के साथ में, गुरू द्वारा दिये गये ज्ञान को स्वीकार करते हुए, भारतीय शास्त्रों की वो चर्चा की जाती थी जिसे वैदिक गणित अर्थात् भूमण्डल का ज्ञान कहा जाता है। ज्येष्ठ मास में सूर्य के ताप से तप्त होती धरती के साथ शरीर को भी न बहुत ज्यादा गर्मी और न ही बहुत ज्यादा सर्दी का प्रारम्भ इसी पूर्णिमा से माना गया है शीतल तन और शीतल मन की प्राप्ति के लिये ये अवसर गुरू के सानिध्य में और ज्यादा प्रखर हो उठता है जब वैदिक गणित के अनुसार दिनचर्या और ऋतुओं का वर्णन में मिलता है।

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पंचतत्व से बनी सम्पूर्ण धरा में, मानव को इस ऋतु में स्वयं को समझने का अच्छा अवसर मिलता है क्योंकि मुख्यतया पॉच तत्व में अग्नि और जल तत्व ही प्रधानता से कार्य करते हैं। मिथुन संक्रान्ति के साथ अग्नि तत्व और कर्क संक्रान्ति के साथ जल तत्व का प्रतिनिधित्व एक साथ होने के कारण। हम सबको अपने शरीर को समझने में बहुत आसानी होती है क्योंकि अग्नि का स्वभाव होता है ऊपर की तरफ उठना और जल का स्वभाव होता है नीचे की तरफ चलना, बस्स इनके इस स्वभाव को अपने शरीर में आपको महसूश करना है यदि इस स्वभाव को इस चौमासे में हमने समझ लिया तो बहुत सारी समस्याओं का निदान पल में कर लिया करेगें।

भारतीय शास्त्र स्वस्थ रहने की कला से भरे पड़े हैं परन्तु दुर्भाग्य हमारा ये है कि मैकाले शिक्षा पद्वति ने ऐसा अन्धविश्वास नामक जहर हमारे अन्दर घोल दिया है कि हम सबको हमारे ही कलयुगी ज्ञानीजन अध्यात्म विज्ञान को अन्धविश्वास बताकर पश्चिमी विज्ञान को विकास बताते हैं और फिर रोना रोते हैं कि बलत्कार हो रहे हैं, चोरी हो जाती है, बहुत भ्रष्टाचारी फैली है, नयी नयी बिमारियॉ आ रही हैं जबकि इन सबको समाप्त करने बहुत सरल तरीका है और वो निकलता है भारतीय शास्त्रों से नारी को पुनः वैदिक नारी के मार्ग पर ले चलने से। ये नारी सशक्तिकरण से वैदिक नारी बहुत छोटा शब्द है और मैण्टल मैथ वैदिक गणित भी नहीं है अतः राजीव दीक्षित के बताये मार्ग पर चलकर वास्तव में भारत को भारतीय आधार पर खड़ा किया जा सकता है। रास्ता सरल मात्र अपनाना कठिन है इसको अपनाकर ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। अन्यथा मैकाले का सिद्वान्त फल-फूल रहा है।

सुनील शुक्ल

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