सत्यम् लाइव, 14 सितम्बर 2020, दिल्ली।। हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। वर्ष 1918 में गॉधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेेेेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। आगे समझें तो 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय को प्रतिपादित करने के लिये राट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को हिन्दी-दिवस घोषित किया। राट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की स्थापना 1936 में की गयी और उनके संस्थापकों में जो नाम शामिल हैं उसमें महात्मा गॉधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राजर्षि पुरूषोत्तमदास टण्डन, पं. जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, आचार्य नरेन्द्र देव, आचार्य काका कालेलकर, सेठ जमनालाल बजाज, बाबा राघवदास, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, श्री नाथसिंह, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, बृजलाल बियाणी एवं श्री नर्मदाप्रसाद सिंह प्रमुख थे और भी कई प्रसिद्ध नाम और हिन्दी के जानकार इसमें शामिल हैं। हिन्दी के लिये लम्बे समय से चले आ रहे इस संघर्ष में काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्ता, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने अथक प्रयास किया। उस प्रयास का परिणाम आज कहॉ पर आ पहॅुुचा है उस पर एक उदाहरण चित्र सहित प्रस्तुत करता हूॅॅ।

इस पुस्तक के चित्र को देखकर कुछ समझ में आता है ये कक्षा 10 की दिल्ली केे सरकारी स्कूल में 2020-21 की कोरोना काल में बच्चों को बॉटी गयी मैटल मैथ की पुस्तक है और इससे भी बढकर ताज्जुुब इस बात का है कि इस जहॉ पर विधालय लिखा है उसके ऊपर भारत के उच्चकोटि के गणित के जानकार है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जो कोर्स मैकाले के सामनेे प्रस्तुत किया था उसमें गतिण सबसे जरूरी विषय था। वो भी वो गणित का ज्ञान देने को कहा था जिससे सारे विषय का जन्म होता है और ये पुस्तक उसी गणित को सत्यापित करते हुए नहीं पढाई जा रही हैै बल्कि अब स्थिति ये आ चुकी है कि हिन्दी दिवस पर विद्यालय की पुस्तक पर विधालय ही गलत लिखा जा रहा है। ये क्या आदर्श समाज की स्थापना है या फिर हिन्दी का नाम लेकर अंग्रेजी को बढाने की व्यवस्था। जिस गणित में किसी को भी Sin समझ मेें नहीं आता है तो ज्या लिखने मेेंं क्या अपनी बेइज्जती समझ रहा है? या गणित की समझ अब समाप्त हो गयी है। आज हिन्दी केे प्रति जो अरूचि सरकार तंत्र की तरफ से स्वयं दिखाई जा रही हैै इसका कारण कहीं वहीं तो नहीं है जो राजीव दीक्षित ने हिन्दी दिवस पर कहा है। बहराल हिन्दी है तो भारत है अन्यथा ये हम आज भी अंग्रेजी के आधीन है।
सुनील शुक्ल
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